“आंटी यहाँ कोई कमरा किराये पर मिलेगा क्या ?” धूप मे बैठ ऊंघ रही सविता अचानक एक मधुर आवाज़ से हड़बड़ा कर जागी।
” आआआ ..कमरा हां मिल जायेगा पर कितने लोग रहेंगे ?” सविता ने अपनी हड़बड़ाहट और नींद पर कुछ काबू पाते हुए पूछा।
” जी आंटी बस मुझे ही रहना है असल मे यही पास मे जो बैंक है उसमे मेरी नौकरी लगी है ।” वो लड़की बोली।
” पर बेटा अकेली लड़की को यहाँ मुश्किल ही कमरा मिलेगा !” सविता ने कहा।
” आंटी मेरा नाम रिया है मेरे माता पिता अलीगढ़ मे रहते है एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हूँ मैं । पापा ने बड़ी मुश्किल मुझे पढ़ाया है अब मेरे ऊपर छोटे भाई की भी जिम्मेदारी है । यहाँ दिल्ली जैसे शहर मे नौकरी लगने का मोह छोड़ नही पाई और बस चली आई कि कहीं ना कहीं आशियाँ मिल ही जायेगा !” वो लड़की बोली।
” तुम कोई महिला छात्रावास भी तो ले सकती हो ना जहाँ तुम सुरक्षित भी रहोगी !” सविता उसे बैठने का इशारा करती हुई बोली।
” आंटी कोई छात्रावास मुझे यहां आसपास नही मिला और दूर से आने पर बेवजह किराये मे पैसा लग जाना है और मुझे पैसा बचा कर भाई की इंजीनियरिंग की फीस जुटानी है !” रिया बैठते हुए बोली।
” देखो बेटा मेरे यहाँ कमरे खाली तो है पर अकेली लड़की को देते मुझे थोड़ा संकोच हो रहा है !” सविता बोली।
“आंटी प्लीज मेरे लिए इस वक्त एक कमरा बहुत जरूरी है मैं आपको शिकायत का कोई मौका नही दूँगी । ये मेरा आधार कार्ड है आप मेरे माता पिता से भी बात कर सकती है साथ ही जिस बैंक मे मेरी नौकरी लगी वहाँ से भी छानबीन कर सकती है । फिर भी आपको कोई शिकायत हुई तो मैं दूसरी जगह कमरा देख लूंगी फिलहाल के लिए मुझे कमरा दे दीजिये !” रिया हाथ जोड़ लाचारी से बोली।
” ठीक है बेटा तुम्हे अगर सच मे कमरे की इतनी जरूरत है तो तुम आकर कमरा देख लो । पर चुंकि मैं यहाँ अकेले रहती हूँ तो कोई भी बाहर का व्यक्ति यहाँ नही आएगा । सीढ़ियां पीछे की तरफ है तुम वही से आओ जाओगी । और हां जहाँ मुझे कुछ गलत लगा तुम्हे तुरंत घर खाली करना होगा !” सविता बोली ।
” ठीक है आंटी मुझे सब शर्ते मंजूर है और कमरा देखने की भी जरूरत नही आप किराया बता दीजिये और ये दो हजार एडवांस रख लीजिये । मैं थोड़ी देर मे आती हूँ बस !” रिया ये बोल पैसे पकड़ा जल्दी से निकल गई । उसके चेहरे की चमक देख सविता समझ गई लड़की जरूरतमंद है । उसने उस कमरे की चाभी निकाली और रिया का इंतज़ार करने लगी ।
शाम को रिया अपना सामान लेकर आ गई । सामान क्या था बस दो बैग ही थे ।
” आंटी मैं कमरे की सफाई कर लेती हूँ आप बता दीजिये किधर है कमरा !” रिया दरवाजे से बोली।
” सफाई मैने करवा दी है , चलो तुम्हे कमरा दिखाती हूँ !” ये बोल सविता उसे घर के पीछे की तरफ ले आई । वहाँ पर लोहे की सीढ़ियां बनी हुई थी दोनो उससे चढ़कर ऊपर आ गई । साफ सुथरा सा घर था ऊपर के हिस्से मे तीन कमरे बने थे। कभी सविता जी का पूरा परिवार था सास ससुर , बेटा , पति उस हिसाब से घर बनाया था । उस वक्त ऊपर जाने का भी एक ही रास्ता था जो घर के अंदर था । वक्त के साथ सास ससुर और फिर पति ने भी साथ छोड़ दिया और बेटा मुंबई मे नौकरी होने के कारण सपरिवार वही रहने लगा। बेटे ने सविता को भी साथ चलने को कहा पर घर से मोह वो छोड़ ना सकी । कॉलेज की रिटायर प्रोफेसर थी वो पेंशन आती थी किसी बात की कमी नही थी। फिर धीरे धीरे अकेलापन सताने लगा तो बेटे से सलाह कर उन्होंने ऊपर का हिस्सा किराये पर उठा दिया जिससे थोड़ी रौनक सी लगी रहती घर मे । किराये पर देने से पहले ही उन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से ये सीढ़ियां बनवाई थी । वो किरायेदार अभी पिछले हफ्ते ही घर खाली करके गये थे । हालाँकि तीन कमरे थे ऊपर पर अलग अलग इसलिए उन्होंने उनमे से एक कमरा रिया को देने का निश्चय कर लिया था।
” बहुत अच्छा कमरा है आंटी !” कमरे मे आ रिया मुस्कुरा कर बोली।
” पर बेटा इतना सा सामान लाई हो तुम रहोगी कैसे ?” सविता उसके सामान की तरफ इशारा करते हुए बोली।
” आंटी इसमे कपड़े और जरूरत का दूसरा सामान है । खाना बनाने का सामान मैं कल खरीद लूंगी । रही सोने की बात वो तो जमीन मे सोने की आदत है मुझे !” रिया मुस्कुरा कर बोली पर उसकी मुस्कुराहट मे एक दर्द था जो अक्सर गरीब परिवार के जिम्मेदार बच्चों की मुस्कुराहट मे होता है ।
” तो बेटा ऐसा करते है तब तक खाना मैं नीचे से भिजवा देती हूँ क्योकि भूखी तो रहोगी नही जब तुम्हारा सामान आ जाये तब तुम खुद बनाना शुरु कर देना उस तरफ रसोई है फिलहाल उसमे बना लेना जब और कोई किरायेदार आ जाये तब का तब देखेंगे !” सविता बोली।
” नही नही आंटी आप फ़िक्र मत कीजिये मैं कुछ इंतज़ाम कर लूंगी और खाना भी अपने कमरे मे बना लूंगी । वैसे भी सामान ही कितना है मेरा !” रिया बोली।
” बेटा नीचे खाना बनाने वाली आती है वो तुम्हारा खाना बना देगी !” सविता ने अपनेपन से कहा तो रिया इंकार ना कर सकी ।
सविता नीचे आ गई रिया ने दिवार मे बनी अलमारी मे अपना सामान रखा और एक चादर निकाल कर जमीन पर बिछाने लगी । तभी उसके दरवाजे पर आहट हुई ।
” ये पलंग और ये खाना नीचे आंटीजी ने भेजा है !” एक 30-35 साल की महिला बोली वो शायद सविता की घरेलू सहायिका थी ।
” धन्यवाद दीदी और आंटी को भी मेरा धन्यवाद कहियेगा !” मुस्कुराते हुए रिया ने कहा तो वो महिला भी मुस्कुरा दी।
अगले दिन सुबह का नाश्ता भी सविता ने नीचे से भेज दिया । दिन मे रिया बैंक मे ही थी और शाम को छुट्टी होने के बाद वो बाजार जा एक छोटा गैस सिलेंडर , कढ़ाई , तवा और कुछ जरूरी सामान खरीदती लाई। सविता अभी रिया से ज्यादा मतलब नही रखती थी बस आते जाते अगर रिया सविता से टकरा जाती तो रिया ही नमस्ते कर लेती थी।
दिन बीतते गये रिया एक सुशील लड़की थी सुबह बैंक जाती और सीधा घर आती ना कोई उससे मिलने आता ना वो किसी के घर जाती इसलिए सविता को उसके रहने से कोई दिक्क़त नही थी । अब दोनो मे सुबह शाम थोड़ी बात भी हो जाती थी।
” आंटी आपका किराया !” एक महीना पूरा होते ही रिया ने उनके हाथ पर किराया रख दिया। सविता को उसकी ये बात भी अच्छी लगी कि उसे खुद से किराया माँगना नही पड़ा। तब तक बाकी दो कमरों मे भी एक परिवार रहने आ गया था पर वो ना रिया से ना सविता से ज्यादा मतलब रखते थे ।
कुछ दिनों बाद रिया बैंक जाने को उतरी पर नीचे उसे कोई हलचल नही सुनाई दी जबकि रोज आंटी उसे कभी बाहर बैठी , कभी किसी से बात करती दिख ही जाती थी । रिया को अजीब सा लगा ।
” आंटी ..आंटी !” उसने बाहर से आवाज़ लगाई।
” कौन है ..आ जाओ दरवाजा खुला है !” अंदर से कराहती हुई आवाज़ आई । रिया जैसे ही अंदर गई वो भोंचक्की रह गई । आंटी जमीन मे गिरी थी उनके सिर से खून बह रहा था । रिया एक पल को तो जैसे जड़ हो गई । उसने बाहर आ कुछ पड़ोसियों को आवाज़ दी और उनकी मदद से सविता को ऑटो मे बैठा अस्पताल लेकर भागी। अस्पताल ले जाते जाते सविता बेहोश हो गई शायद खून अधिक बहने से ।
” देखिये मैडम ये पुलिस केस है हम इन्हे ऐसे भरती नही कर सकते !” अस्पताल मे रिया से यही कहा गया।
” बुला लीजिये आप पुलिस को पर प्लीज सबसे पहले इनका इलाज शुरु कीजिये वरना इन्हे कुछ हो जायेगा । हाथ जोड़कर विनती करती हूँ मैं !” रिया रोते हुए बोली।
पुलिस आई पर चुंकि सविता का इलाज चल रहा था इसलिए सिर्फ रिया का ब्यान लिया गया। मामला संदिग्ध था इसलिए इंस्पेक्टर साहब वही इंतज़ार करने लगे।
” देखिये मरीज को खून की जरूरत पड़ेगी आप इनके घर वालों को बुला लीजिये !” डॉ रिया से बोला ।
” सर मैं सिर्फ इतना जानती हूँ इनका बेटा मुंबई मे रहता है बाकी मुझे कोई जानकारी नही ना किसी का फोन नंबर है । आप खून का इंतज़ाम अस्पताल से कर दीजिये !” रिया बोली।
” बेटा इनका ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव है जो अभी अस्पताल मे उपलब्ध नही !” डॉ बोले।
” ओ पॉजिटिव तो मेरा भी ग्रुप है ऐसा कीजिये आप मेरा खून ले लीजिये पर इनको बचा लीजिये !” रिया जल्दी से बोली।
रिया के खून से सविता की जान बच गई । होश मे आने पर उन्होंने पुलिस को बताया कि सुबह उठकर वो बाहर गई वहाँ से अंदर आते मे अचानक चककर आने से सिर मेज से लगा और फिर रिया आई उसके बाद उन्हे कुछ नही पता। इंस्पेक्टर साहब बयान ले चले गये ।
” आंटी मंजू दीदी ( घरेलू सहायिका ) कहा है वो तो सुबह ही आपके घर आ जाती है ना !” रिया ने सविता से पूछा।
” बेटा वो कल अपने गाव चली गई थी उसकी जेठानी की बेटी की शादी है !” सविता बोली।
रिया ने बैंक मे छुट्टी की अर्जी डाल दी और जी जान से सविता की सेवा करने लगी । सविता के बेटे को जब पता लगा तो उसने जल्द से जल्द वहाँ आने का बोला । तीन दिन तक अस्पताल मे रिया ने उनकी खूब देखभाल की । नर्स के द्वारा सविता को ये भी पता लगा कि रिया ने ही खून दे उनकी जान बचाई है । वो रिया की एहसानमंद थी।
तीन दिन के बाद जब सविता को अस्पताल से छुट्टी मिली तब तक उनका रिया से स्नेह का एक बंधन सा बंध गया था बिल्कुल एक माँ बेटी सा क्योकि रिया ने उनकी देखभाल ही एक बेटी की तरह की थी।
आज सविता को अस्पताल से छुट्टी मिलनी है उनका बेटा सारांश आज ही आया उसी ने सारे बिल भरे और सविता को घर ले गया।
” माँ आप सामान पैक करा लीजिये हम आज ही मुंबई चलेंगे ।” घर आ सारांश बोला।
” पर भैया आंटी इस हालत मे सफर कैसे करेंगी ?” रिया ने चिंता जाहिर की।
” पर माँ को ऐसे छोड़ नही सकता मैं यहाँ ज्यादा रुक नही सकता फिर शिवानी और बच्चे भी यहां नही आ सकते क्योकि बच्चों की परीक्षा है ऐसे मे माँ को ले जाने के सिवा रास्ता क्या है ?” सारांश बोला।
” आप बेफिक्र रहिये यहाँ मैं उनकी देखभाल कर लूंगी !” कुछ सोचते हुए रिया बोली।
” पर आपकी जॉब है वैसे भी मैं ऐसे किसी के भरोसे कैसे अपनी माँ को छोड़ कर जा सकता हूँ !” परेशान सारांश बोला।
” भैया आंटी से एक स्नेह का सा बंधन बंध गया है मेरा रही जॉब की बात उसके लिए मैने छुट्टी की अर्जी लगा दी है आप मुझपर विश्वास कर सकते है क्योकि आंटी को इस हालत मे तो मैं नही ले जाने दूंगी !” सारांश की बातों से आहत रिया दृढ़ता से बोली।
अगले दो दिन सारांश वही रहा वो देख रहा था रिया कितने मन से उसकी माँ की सेवा कर रही थी वो थोड़ा आश्वस्त हो गया फिर उसके जाने से पहले सविता की बीमारी का सुन मंजू भी शादी निपटाते ही लौट आई अब सारांश रिया को धन्यवाद दे आराम से मुंबई चला गया अगले हफ्ते फिर आने की बोल । वैसे भी यातायात के संसाधनों ने दूरियों को कुछ हद तक मिटा दिया है दिलो की नही सीमाओ की ।
सविता रिया की सेवा भावना देख बहुत खुश थी रिया उनकी हर चीज का ख्याल रखती उनकी दवाई , खाने सबका । एक हफ्ते बाद सारांश अपनी माँ से मिलने एक दिन के लिए फिर आया और दुबारा उसने मुंबई चलने को कहा पर बहू के ना आने से वो समझ गई बेटे के साथ जाना मतलब अपनी बेइज्जती कराना ही है यहाँ अपने घर मे वो सम्मान सहित रही है। सविता जी अब काफी हद तक ठीक भी हो गई थी इसलिए उन्होंने बेटे को इंकार कर दिया अब उन्होंने रिया को भी नौकरी पर वापिस जाने को कह दिया । रिया सुबह उनकी जरूरत का सामान दे मंजू दीदी को हिदायत देकर जाती वापिस आ फिर से उनकी सेवा मे लग जाती।
एक प्यारा सा बंधन बंध गया था उन दोनो के बीच । उनकी बीमारी मे रिया नीचे ही सोती थी क्योकि मंजू रात को अपने घर चली जाती थी । सविता जी के कहने पर रिया खाना भी अब नीचे ही खाती थी ।
” आंटी ये आपका किराया !” महीना पूरा होने पर रिया ने फिर उनका किराया दिया ।
” बेटा इस महीने तों तुम्हारी इतनी छुट्टियां भी हो गई थी फिर ये किराया क्यो ?” सविता बोली
” आंटी मैं मैनेज़ कर लूंगी और हाँ अब आप ठीक है तों मैं खाना भी उपर बना लिया करूंगी !” रिया बोली।
” बेटा खाना तों अब तुम यही खाओगी हां मैं ये पैसे रख लेती हूँ वरना तुम सोचोगी मैं तुम्हारा एहसान उतार रही हूँ जोकि इन चंद रुपयों से नही उतरने वाला !” सविता हँस कर बोली।
रिया ने काफी ना नुकुर की पर सविता खाने की बात नही मानी ।
दिन गुजरने लगे और ऐसे ही रिया को सविता के साथ रहते दो साल हो गये इस बीच जब भी सविता को जरूरत पड़ी रिया उसके साथ खड़ी रही क्योकि उनका बेटा तों बाद मे ही आ पाता था वो भी कुछ समय को । इस बीच रिया के माता पिता भी कई बार बेटी से मिलने आये और वो भी अपने घर गई।
” बहनजी रिया का रिश्ता पक्का हो गया लीजिये मिठाई खाइये !” इस बार रिया जब अपने घर गई तों वापसी मे उसके माता पिता भी उसके साथ आये और बोले।
” अरे वाह ये तों बहुत खुशी की बात है , मतलब अब हमारी रिया हमें छोड़ चली जाएगी !” नम आँखों से अपनी खुशी जाहिर करती सविता बोली।
” बहनजी चिंता मत कीजिये रिया यही आपके शहर मे रहेगी शादी बाद भी क्योकि लड़का भी यही का है शादी भी यही होनी है इसलिए तों हम यहां आये है !” रिया के पिता बोले। ये बात सुन सविता को थोड़ी राहत मिली।
” भाई साहब रिया की शादी का सारा खर्च मैं उठाउंगी !” अचानक सविता के मुंह से ये सुन रिया के माता पिता भोंचक्के रह गये ।
” नही नही बहनजी ये कैसे हो सकता है हम भले गरीब है पर बेटी के लिए थोड़ा पैसा तो जोड़ा ही है आप पर हम ये बोझ नही डाल सकते !” रिया के पिता हाथ जोड़ बोले।
” भाई साहब बेटी नही थी मेरी रिया ने वो कमी पूरी की है मेरी जिंदगी की इतना हक तो मेरा बनता है कि अपनी इस बेटी की शादी धूमधाम से करूँ । अरे अब तो इससे मेरा खून का भी रिश्ता है । इसकी रगों मे मेरा ना सही मेरी रगों मे तो इसका खून है । आपके पास जो पैसे है वो राघव ( रिया का भाई ) की पढ़ाई मे लगाइये बेटी की चिंता छोड़ दीजिये !” सविता हँसते हुए बोली।
सविता के बहुत कहने पर उन्हे आखिरकार मानना पड़ा जब ये बात सविता के बेटे को पता लगी तो वो गुस्सा हुआ बहुत ।
” क्या जरूरत है माँ पूरी शादी का खर्च अपने ऊपर लेने की अरे उसका एहसान ही तो उतारना है दस बीस हजार दे उतार देती !” फोन पर सारांश बोला।
” देखो बेटा पहली बात तो जिनसे हमारा स्नेह का बंधन बंध जाता उनका एहसान हम नही उतार सकते । रही शादी के खर्च की बात वो एक माँ अपनी बेटी को तोहफा दे रही है वो भी अपने कमाए पैसो से तो किसी को एतराज नही होना चाहिए !” सविता अपने कमाए पैसे पर जोर देती हुई बोली। सारांश से अब कुछ कहते ना बना ।
रिया की शादी धूमधाम से हुई सविता के घर से ही उसकी डोली विदा हुई । रिया ने जो स्नेह का बंधन उनसे बाँधा उन्होंने उसे और मजबूत कर दिया। रिया के माता पिता सविता के एहसान मंद हो गये क्योकि उनको तो शादी कर्ज लेके ही करनी पड़ती ।
शादी के बाद भी रिया सविता से मिलने आती रहती थी क्योकि जॉब उसी बैंक मे थी तो उसे दिक्क़त भी नही थी । रिया के माता पिता भी जब भी दिल्ली आते सविता के पास ही रुकते । वक्त बीतने के साथ राघव इंजीनियर बन गया और उसकी भी नौकरी दिल्ली मे लग गई। अब रिया के माता पिता और भाई सविता के किरायेदार है पर उनके बीच रिश्ता किरायेदार मकानमालिक का ना हो प्यार का है ।
रिया ने जो रिश्ता अपने व्यवहार और सेवा भावना सी बाँधा था वो ताउम्र के लिए अटूट बंधन मे बंध गया।
दोस्तों मनुष्य एक समाजिक प्राणी है जिसे हर मोड़ पर किसी ना किसी की जरूरत पड़ती ही है । अगर हम किसी से स्नेह का रिश्ता बाँध कोई अच्छाई करते है वो अच्छाई कहीं ना कहीं लौट कर वापिस आती ही है उस इंसान के जरिये नही तो किसी और के जरिये ऐसी मेरी सोच है और आपकी ??
धन्यवाद
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
VM