सेंट्रल माॅल से खरीदे सामानों के दोनों थैले साक्षी ने सोफ़े पर रखे और गृहसेविका को एक गिलास पानी लाने को कहा।तभी उसकी माँ नंदिता जी ने उसे पानी का गिलास थमाया।
” अरे माँ..आप क्यों…चंदा नहीं है क्या?” उसने आश्चर्य- से पूछा।
” है ना…वो सब्ज़ियाँ काट रही थी तो मैं ही तेरे लिये पानी लेकर आ गई। पर तू इन दो थैलों में क्या-क्या लाई है?” नंदिता जी ने थैले की तरफ़ इशारा किया।
” वो माँ…माॅल में सेल लगी हुई…।” तभी उसका तीन वर्षीय बेटा मनु उसका हाथ पकड़कर पूछने लगा,” मम्मा..डैडी से आपकी कट्टी हो गई..आप उनसे गुस्सा हो..।” मनु के सवालों से वह चिढ़ गई।उसने चंदा को बुलाकर कहा कि मनु को बाहर घुमा लाओ।नंदिता जी बोली,” आखिर कब तक तू मनु के सवालों से पीछा छुड़ाती रहेगी..एक दिन तो…।”
” बस माँ..अब आप फिर से शुरु मत हो जाइये..।” कहते हुए साक्षी सोफ़े पर ही मुँह फेरकर लेट गयी।नंदिता जी अपने कमरे में आ गईं।मेज पर रखी फ़ोटो-फ्रेम में लगी अपनी बेटी-दामाद की तस्वीर को देखकर सोचने लगी, ये बच्चे भी ना…हमेशा अपनी ही मनमानी करते हैं…।
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नंदिता जी अपनी इकलौती बेटी के लिये ऊँचे ओहदे वाला दामाद तलाश कर रहीं थीं कि एक दिन साक्षी ने उनसे कहा कि वो रजत सर को चाहती है और विवाह भी उन्हीं से करेगी।सुनकर उनका पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया,” अब समझी…पिछले चार महीने से तू क्यों इतना रजत सर-रजत सर कर रही थी।देख..वो लेक्चरर तुझे दो वक्त का खाना खिलाने के सिवा और कुछ नहीं दे सकता है।तू ऐशो-आराम में पली-बढ़ी है..चार दिनों में ही तेरे सिर से प्यार का भूत उतर जायेगा।”
लेकिन साक्षी अपनी ज़िद पर अड़ी रही।उसने तो यहाँ तक कह दिया कि अगर आप लोग नहीं माने तो मैं रजत सर के साथ कोर्ट- मैरिज़ कर लूँगी।बेटी की ज़िद देखते हुए उसके पिता रघुनाथ जी ने पत्नी को समझाया,” धीरज से काम लो नंदिता..जवानी के जोश में लड़की ने गलत कदम उठा लिये तो हमलोग कहीं के नहीं रहेंगें।एक बार रजत और उसके माता-पिता से मिलने में क्या हर्ज़ है।”
रजत के आकर्षक व्यक्तित्व से नंदिता जी बहुत प्रभावित हुईं।उससे बात करके और उसके माता-पिता के बात- व्यवहार देखकर रघुनाथ जी बहुत प्रसन्न हुए।एक शुभ-मुहूर्त देखकर उन्होंने साक्षी का विवाह रजत के साथ कर दिया।
अपना मनचाहा वर पाकर साक्षी बहुत खुश थी।उसके दो महीने तो हँसते-खेलते बीत गये।उसके बाद से वह रजत के सामने सवालों की झड़ी लगाने लगी, आप इतनी देर तक कहाँ थे..मेरा फ़ोन क्यों नहीं उठाया..रीना के पति तो टाइम पर घर आ जाते हैं तो फिर आप कहाँ…।रजत उसे समझाने का प्रयास करते कि परीक्षा के समय हम शिक्षकों का देर से घर आना आम बात है।उसके सास-ससुर भी यही बात कहते हुए उसे समझाते कि काॅलेज़ यहाँ से दूर है..समय तो लगेगा ही..हमें तो आदत हो गई और तुम्हें भी हो जाएगी।
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कुछ समय तक तो वो शांत रही, उसके बाद उसे रजत का माता-पिता के साथ बातें करना बुरा लगने लगा।उसके ससुर बेटे-बहू को खुश देखना चाहते थे, इसलिए रजत से बोले कि तुम अपने काॅलेज़ के पास ही एक घर देख लो…समय पर घर आ जाया करोगे तो बहू को समय दे पाओगे.. वो भी खुश रहेगी।
बेटी के सास-ससुर से अलग रहने पर नंदिता जी का माथा ठनका।इतने दिनों में वो रजत के स्वभाव को अच्छी तरह से पहचान गईं थीं।साथ ही ,वो अपनी बेटी के मिज़ाज को भी जानती थी, समझ गईं कि अलग रहने की तिकड़म उनकी बेटी ने ही लगाई होगी।
नये घर में शिफ़्ट होने के बाद कुछ दिनों तक तो साक्षी खुश रही, उसके बाद फिर से वह रजत से शिकायतें करने लगी।कई बार तो वह अपने माता-पिता के सामने ही रजत को ‘आपने ये क्यों किया..कहने लगती।तब नंदिता जी ने उसे समझाया कि माँ-बेटे को तो तू पहले ही अलग कर चुकी है,अब कम से कम पति-पत्नी के रिश्ते को तो तमाशा मत बना।
” आप तो बस मुझे ही कहतीं हैं.. उन्हें भी तो..।” वह मुँह फुला लेती थी।तब नंदिता जी ने कहा कि साल होने को आया है..अब घर में नन्हा-मुन्ना ले आ जो तुम दोनों को और करीब ले आयेगा।
” आ रहा है ना माँ..।” कहते हुए वह शरमा गई थी।
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बेटे मनु के जनम के बाद रजत की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई थी।इसलिये विद्यार्थी अपने डाउट्स क्लियर करने कभी-कभी उनके घर भी आ जाया करते थे।
एक दिन रजत की तबीयत ठीक नहीं थी।तब उसके कलीग महेन्द्र सर और शालिनी मैम उनसे मिलने आयें।विषय संबंधी बातचीत होने लगी।कुछ देर बाद महेन्द्र सर चले गये लेकिन शालिनी मैम कुछ देर और बैठी रहीं जो साक्षी को अच्छा नहीं लगा।वह शालिनी मैम को भला-बुरा कहने लगी।उसने यहाँ तक कह दिया कि आप मेरे पति पर डोरे डाल रहीं हैं।
अपने कलीग का अपमान रजत से बर्दाश्त नहीं हुआ।शालिनी मैम के जाने के बाद रजत बोले,” साक्षी..एक महिला होकर दूसरी महिला का अपमान करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई…वो उम्र में तुमसे बड़ी हैं..इतना तो लिहाज़ करती… “
” और वो जो आप पर डोरे..।”
” साक्षी…ज़बान को लगाम दो वरना…।” रजत ज़ोर-से चिल्लाये।उनका हाथ उठते-उठते रह गया था।बस उसी समय साक्षी ने एक बैग में अपने कपड़े ठूँसे और ढ़ाई वर्ष के मनु को लेकर अपने पिता के घर आ गई।
साक्षी को यूँ अचानक देखकर नंदिता जी समझ गई कि कुछ तो हुआ है।उन्होंने रजत को फ़ोन करके उसके पहुँचने की खबर दे दी।अगले दिन रजत ने आकर अपने सास-ससुर को सारी बात बताई और अपने व्यवहार के लिये माफ़ी माँगते हुए बोले कि मैं साक्षी को लेने आया हूँ लेकिन साक्षी ने जाने से इंकार कर दिया।
रजत हर महीने आते, बेटे से मिलते लेकिन साक्षी ने उनसे कभी बात नहीं किया।अपनी माँ से कहती कि रगड़ने दो उनको नाक…।साक्षी के सास-ससुर भी आते, पोते से मिलते और बहू को समझाते लेकिन साक्षी अपनी ही ज़िद पर अड़ी रही।छह महीने बीत गये, फिर रजत और उसके माता-पिता का आना-जाना भी कम होने लगा।रिश्तों की बढ़ती दूरियाँ देखकर नंदिता जी मन घबरा उठता था।रघुनाथ जी भी बेटी को समझाते कि पति-पत्नी के आपसी समझ से ही परिवार रुपी गाड़ी चलती है पर उस वक्त तो साक्षी को अपने अलावा सभी गलत ही दिखाई दे रहें थे।
साक्षी ने अपनी सहेली के प्ले स्कूल में मनु का एडमिशन करा दिया था।वहाँ वो सबके पिता को देखता था तो घर आकर कभी अपनी माँ तो कभी नानी से पूछता था कि मेरे डैडी क्यों नहीं आते हैं।आज भी उसने यही प्रश्न किया तो साक्षी हमेशा की तरह टाल गई और अपनी माँ को भी चुप करा दिया।
एक दिन साक्षी अपनी सहेलियों से मिलने गई।वहाँ पर दो सहेलियों को न देखकर उसने दिव्या से पूछ लिया,” रीमा और मधु क्यों नहीं आईं…।” तब दिव्या बोली,” दोनों अपने-अपने पति के साथ चलीं गईं।”
” चलीं गईं! पर उनका तो…।” साक्षी ने आश्चर्य-से पूछा।
” यार..पति-पत्नी के बीच ये सब चलता रहता है।अपने माँ-बाप भी चार बात बोल देते हैं तो क्या हम उन्हें छोड़ देते हैं..नहीं ना…फिर मियाँ-बीवी के झगड़े में बेचारे बच्चों का तो भविष्य चौपट हो जाता है…।” दिव्या बोलती जा रही थी और साक्षी सोच रही थी, मैं भी तो अपने मनु के साथ…।उसका मन बेचैन हो उठा।
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घर आकर वो चुपचाप बिस्तर पर लेट गयी।नंदिनी जी ने पूछा कि क्या बात है? वो टाल गई लेकिन उसकी आँखों से बहते आँसुओं ने उसके मन की व्यथा कह दी।उन्होंने बेटी के सिर पर प्यार-से हाथ फेरा तो वह फ़फक पड़ी,” मम्मी..रीमा और मधु अपने पति के साथ चली गईं….और मैं..।”
तब नंदिता जी बोलीं,” देख बेटी..शादी सिर्फ़ दो लोगों की नहीं होती बल्कि दो परिवारों के बीच एक मधुर संबंध कायम होता है जिसे थोड़ा झुककर और कुछ बातों को नजरअंदाज करके निभाया जाता है।रजत तेरे पति हैं तो वो अपने माता-पिता का भी बेटा हैं।उन्हें अपने विद्यार्थियों और कलीग के साथ भी अपने कर्तव्यों को निभाना पड़ता है जैसे कि तू उनकी पत्नी के साथ-साथ एक बेटी और एक सहेली के दायित्वों को निभाती है।उन्होंने तो तुझे कभी रोका-टोका नहीं तो फिर तू क्यों…।मैं जानती हूँ कि तू रजत को बहुत प्यार करती है…उन्हें फ़ोन करना चाहती है लेकिन अपने हाथ रोक लेती है।जब इतना प्यार करती है तो फिर दूरी क्यों? तुम दोनों के रिश्तों में बढ़ती दूरियों का दंश मासूम मनु झेल रहा है…।उसे अपने पिता से और दादा-दादी को अपने पोते से दूर करके तुझे…।”
” अब मैं क्या करूँ…।”
नंदिता जी कुछ कहने वाली ही थीं कि दरवाज़े पर खड़े रघुनाथ जी ने उन्हें कुछ न कहने का इशारा किया। हँसते हुए वो इतना ही बोलीं,” तू तो अपने फ़ैसले खुद करती है ना…।”
साक्षी ने तुरंत रजत को फ़ोन लगाया लेकिन फ़ोन इंगेज़ आने लगा।दरअसल कई दिनों से रजत के मित्र भी उन्हें समझा रहें थें कि पति-पत्नी के बिगड़ते संबंधों का बच्चों के कोमल मन पर बहुत बुरा असर पड़ता है।अपने और साक्षी के बीच की दूरियों को इतना भी मत बढ़ाओ कि… इसीलिये साक्षी को मनाने के लिये वो भी उसी वक्त काॅल कर रहे थे जिसकी वजह से फ़ोन इंगेज़ आ रहा था।
बार-बार इंगेज़ आने पर साक्षी ने फ़ोन रख दिया और अपना सामान पैक करने लगी।कुछ देर बाद ही डोर बेल बजी तो उसका दिल धड़का।उसने दौड़कर दरवाज़ा खोला और सामने रजत को देखा तो बोल पड़ी,” इतने दिनों बाद क्यों..।”
” अच्छा… तुम्हारा फ़ोन क्यों इंगेज़ आ रहा था..।”
तभी रघुनाथ जी बोले,” तुम दोनों फिर से…।”
” साॅरी पापा..।” दोनों एक साथ बोल पड़े।
भारी मन से नंदिता जी ने अपनी बेटी और नाती को विदा किया लेकिन वह खुश थी कि समय रहते ही साक्षी ने रिश्तों की गहराई और उसके महत्व को समझ लिया।
साक्षी ने अपने सास-ससुर से भी माफ़ी माँग ली और उन्हें साथ रहने को कहा।तब उसके ससुर अपनी पत्नी के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,” बेटी..अब हमें भी प्राइवेसी चाहिए।” फिर तो सभी ठहाका मारकर हँसने लगे।
” आप भी ना..।” कहते हुए साक्षी की सास शरमा गईं।
विभा गुप्ता
# रिश्तों में बढ़ती दूरियाँ स्वरचित, बैंगलुरु
कभी-कभी हम बेवजह अपने रिश्तों से दूरियाँ बना लेते हैं।बाद में पछताते हैं और फिर माफ़ी माँगकर उन दूरियों को खत्म भी कर लेते हैं जैसे कि साक्षी ने किया।