प्यार की पहली पाती – डा. मधु आंधीवाल

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अरे नन्दिनी कहां गयी मां समीक्षा बहुत देर से आवाज दे रही थी । जब से इस लड़की का रिश्ता तय हुआ है पत ना कमरे में ही घुसी रहती है। समीक्षा बड़बड़ाये जा रही थी । दादी की लाडली नन्दिनी तो चिपकी हुई थी वीडियो कालिंग पर अपने होने वाले सपनों के राज कुमार तुषार के साथ ।

    दादी मनोरमा जिसे दादू बहुत प्यार से पुकारते थे मनु कह कर ।  धीरे धीरे नन्दिनी के कमरे में घुसी देखा नन्दिनी आराम से लेट कर तुषार से बात कर रही थी । दादी को देखा तो एक दम उठ कर लजाई सी बैठ गयी । मनोरमा उसके गाल को प्यार से  छूकर बोली होता है होता है ऐसा ही होता है। नन्दिनी प्यार से दादी के गले में लटक गयी बोली दादी क्या आप भी दादू से बात करती थी । मनोरमा ने थोड़ा झिझकते कहा चल चुप रह  पहले यह सब कहां था ।

      मनोरमा  बीते दिनों में पहुँच गयी  कभी वह भी इस समय  से गुजरी थी फर्क इतना था कि उसकी उम्र कम थी । उसके समय में ना मोबाइल था ना फोन । बस सब डाकिये पर निर्भर थे । आज की तरह मिल ने का तो सवाल ही नहीं । शादी से पहले तो लड़का लड़की मिलते भी नहीं थे ।  जब शादी हो गयी और वह पहली बार विदा होकर अपने मायेके आगयी तब नन्दिनी के दादू की बहुत याद आती । एक दिन उसके बड़े भाई एक बन्द लिफाफा उसके हाथ में रख कर बोले ये तुम्हारी चिट्ठी आई है। इस पर ऊपर प्राइवेट लिखा है इसलिये खोली नहीं ।वह तो शर्म से बोल ही नहीं पाई । भाभियां उसे छेड़ने लगी और बोली खोलो वह उस लिफाफे को लेकर कमरे में आ गयी और बन्द करके लिफाफा खोला वह पढ़ती जा रही थी और शर्मा भी रही थी । शुरू में ही लिखा था ” फूल तुम्हें भेजा है खत में फूल नहीं मेरा दिल है”  और वह इस गाने को गुनगुनाने लगी दादू बहुत देर से दरवाजे पर दादी को निहार रहे थे । नन्दिनी दोनों को देख रही थी और मुस्करा रही थी और बोली दादी आज भी आप दादू का दिल हो । मनोरमा उसे पकड़ने उठी और वह दौड़ कर समीक्षा के पीछे छिप गयी । समीक्षा बोली मां आप अपनी लाडली को कुछ समझाओ ना । नन्दिनी बोली अरे मां तुम्हारी तो नहीं पता पर दादी तो अब भी दादू के दिल में खोई हुई है। मुझे कैसे समझायेगी । बेचारी दादी के प्यार की पहले पाती  में अब भी फूल रखा है ।

 स्व रचित

डा. मधु आंधीवाल

अलीगढ़

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