प्यार की डोर – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” नहीं मां मैं अभी शादी नहीं करूंगी!” आराध्या अपनी मां गीता जी से बोली।

” अब नहीं तो कब करेगी पच्चीस की हो गई है लोग क्या कहेंगे जवान बेटी को घर में बैठा रखा है जिससे वो खर्चे चला सके घर के!” गीता जी दुखी हो बोली।

” मां ये लोग तब तो नहीं आए थे जब पापा हमे छोड़ गए थे। मैं अगर शादी कर लूंगी तब भी यही लोग बात बनाएंगे की पढ़ने वाले भाई बहनों और विधवा मां को छोड़ आराध्या को शादी की लगी नौकरी जो करती थी । इसलिए लोगों की तो बात करो ही मत आप!” आराध्या बोली और बैग उठा ऑफिस को निकल गई।

आराध्या एक प्यारी सी लड़की जिसके प्यारे प्यारे सपने थे पर वक़्त के क्रूर हाथों ने उसके सपने छीन जिम्मेदारी का लबादा डाल दिया उसपर। अभी स्नातक में ही तो थी वो और उससे छोटा भाई दसवीं में और सबसे छोटी बहन आठवीं में जब उसके पिता की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। मां पढ़ीलिखी थी नहीं बस थोड़ा बहुत सिलाई करके चार पैसे कमाती थी जोकि पर्याप्त नहीं थे। तब आराध्या ने ही अपना फैशन डिज़ाइनर बनने का सपना छोड़ अपने भाई बहनों के सपने पूरे करने का निश्चय किया और नौकरी शुरू कर दी। तबसे सारे घर की जिम्मेदारी नन्हे कंधो पर आ गई। अब मां का ख्वाब है उसकी शादी हो जाए पर वो सिर्फ अपने भाई बहन के सपने पूरे करने के ख्वाब देखती है।

” राहुल( भाई) ले तेरी शर्ट यही रंग चाहिए था ना तुझे, और आदया( बहन) ले तेरा सूट खुश अब मां ये आपके लिए शॉल है और ये रही मेरी तनख्वाह!” शाम को आराध्या ने सबकी पसंद की चीजे और बचे पैसे देते हुए कहा।

” अपने लिए कुछ नहीं लाई दीदी ?” राहुल अचानक बोला।

” अरे मेरे पास सब तो है फिर क्या जरूरत पैसे खर्च करने की!” आराध्या हंस कर बोली।

” पर तुझे तो स्वेटर लेना था ना इस बार फिर ये सब क्यों लाई ?” मां बोली।

” वो अगले महीने ले लूंगी मां मैं!” आराध्या बोली।

” दीदी मेरी बीटेक हो जाने दो बस फिर आपको कुछ करने की जरूरत नहीं आप आराम करना फिर!” राहुल बहन के गले लगते हुए बोला।

” चलो चलो अब जल्दी से खाना खाते हैं मुझे भूख लगी है!” आराध्या मोहोल को हलका करते हुए बोली।

समय गुजरने लगा मां बार बार आराध्या से उसकी शादी की कहती आराध्या हर बार टाल जाती।

” आदया , राहुल कल रक्षाबंधन है तुम लोग बता दो क्या चाहिए शाम को लेती आऊंगी!” एक दिन ऑफिस जाते में आराध्या अपने भाई बहन से बोली।

” दीदी हमे कुछ नहीं चाहिए इस बार !” दोनों एक साथ बोले।

आराध्या बिन कुछ बोले ऑफिस के लिए निकल गई।

“चलो दीदी राखी बांधते हैं!” अगले दिन आदया सुबह सुबह बोली।

” इतनी क्या जल्दी है तुझे!” आराध्या हंसते हुए बोली।

” चलो ना दीदी!” राहुल भी बहन का हाथ पकड़ बोला।

“अरे अरे इतनी क्या जल्दी है!” आराध्या बोली।

“लाओ दीदी हाथ आगे करो!” राहुल और आदया एक साथ बोले।

” क्या मतलब राखी तो मैं और आदया तुझे बांधेगी ना राहुल तो मैं क्यों हाथ आगे करूं?” आराध्या हैरानी से बोली।

“मुझे भी बांधना दीदी पर सबसे पहला हक इस प्यार के बंधन पर आपका है क्योंकि हम जो भी हैं आपसे हैं दीदी राखी का रेशमी धागा भाई की रक्षा करता है हर मुसीबत से तो दीदी रक्षाकवच की जरूरत तो आपको ज्यादा है ना!” राहुल भावुक होते हुए बोला।

” चल पगले ज्यादा बात बनाने लगा है चल बैठ यहां और राखी   बंधवा जल्दी से!” आराध्या आंख से आंसू साफ करती बोली।

“नहीं दीदी पहले आपके बंधेगी राखी तब मैं बंधवाऊंगा क्योंकि पहला हक इनपर आपका है!” राहुल ज़िद्द करता बोला।

” ठीक है भई अब तुम दोनों की बात कैसे टाल सकती मैं!” आराध्या हार मान कर बोली और हाथ बढ़ा दिया।

राहुल और आदया ने राखी बांधी आराध्या के फिर राहुल ने पैर छुए बहन के आराध्या ने दोनों के माथे चूम लिए। फिर दोनों बहनों ने राहुल के राखी बांधी।

” ले छोटी तेरा गिफ्ट और दीदी ये आपका गिफ्ट!” राहुल आदया को एक पैकेट और आराध्या को एक लिफाफा पकड़ाते हुए बोला।

” क्या तुम्हारी जॉब लग गई तुमने बताया भी नहीं !” आराध्या लिफाफा खोल खुश होते हुए बोली।

” दीदी आपको राखी पर सरप्राइज देना था ना अब सब ठीक हो जाएगा दीदी और जल्दी ही हमारी दीदी दुल्हन भी बनेगी!” राहुल बोला।

” हां पर राखी हम तब भी आपके ही पहले बांधेंगे दीदी!” आदया बहन के गले में बांह डालते हुए बोली।

मां रसोई के दरवाजे पर खड़ी नम आंखो से भाई बहनों का प्यार देख रही थी और दुआ कर रही थी ऐसे ही ये प्यार की डोर बंधी रहे बस ।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

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