“देखो! मिट्ठू, यह तुम्हारा छोटा सा साथी है जो अभी मम्मा के टमी में है। बस थोड़े दिन बाद यह मम्मा के टमी से बाहर आएगा और फिर तुम इसके साथ खेल सकोगी, बातें कर सकोगी, प्यार कर सकोगी।”डॉक्टर के केबिन में अपना अल्ट्रासाउंड करा रही आस्था ने अल्ट्रासाउंड स्क्रीन पर आ रही भ्रूण की तस्वीर अपनी चार साल की बेटी मिट्ठू को दिखाते हुए कहा।
“यिप्पी! मम्मा यह मेरा बेबी है। यह मेरे साथ खेलेगा। वाऊ! मजा आ जाएगा। अब मैं मान्या के घर नहीं जाऊँगी। वह मुझे अपने बेबी को हाथ नहीं लगाने देती। मेरा बेबी! मेरा बेबी!” कहते हुए मिट्ठू तालियाँ बजाने लगी।
मिट्ठू के भोले चेहरे पर मुस्कान और खुशी देखते हुए डाक्टर और आस्था मुस्कुरा दिए।
“दादी! दादी! मेरा बेबी आएगा, तब मैं उसके साथ खेलूँगी।” मिट्ठू ने घर आकर अपनी दादी सरला जी का पल्लू खींचते हुए कहा।
शारदा जी ने आस्था की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
आस्था ने डॉक्टर के केबिन में हुई सारी बातें सरला जी को बताई।
“आस्था, यह तुमने ठीक नहीं किया।मिट्ठू अभी बच्ची है, उसको अल्ट्रासाउंड दिखाने और बच्चे के टमी में होने की बात नहीं बतानी चाहिए थी। पर तुम आजकल के बच्चे कहाँ सुनते हो?” सरला जी नाराज होते हुए बोली।
“माँ! आस्था ने सरला जी को हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा, “आपकी बात सही है पर माँ,अब समय बदल रहा है। बच्चे पहले से कहीं ज्यादा चीजों को जल्दी समझने लगे हैं। मेरा बढ़ता हुआ पेट मिट्ठू से कब तक छुपा रहेगा? हम नहीं बताएँगे तो उसे कहीं ना कहीं से पता चलेगा ही और फिर मैं चाहती हूँ कि मिट्ठू आने वाली स्थिति के लिए पहले से ही तैयार हो। उसे अपना भाई या बहन अपने प्यार में हिस्सेदार लगे ना कि चोर। आपको याद होगा जब दीदी का छोटा बेटा हुआ था तो माधुर्य को कुछ नहीं पता था और जब सब का ध्यान और समय छुटकू पर ज्यादा जाने लगा तो वह कितना हिंसक हो गया था!छुटकू को एक बार तो उसने बिस्तर से नीचे गिरा दिया था। बस मैं चाहती हूँ कि मेरे बच्चों में एक दूसरे के प्रति प्यार पनपे। मिट्ठू अपनी बड़ी बहन होने के अहसास को महसूस कर पाए। मैं आपके जितनी समझदार तो नहीं, माँ पर उम्मीद करती हूँ कि आप मेरी बात समझेंगी।”
शारदा जी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहें?
“दादी! देखो, यह मेरा नया वाला टेडी….. मैं अपने बेबी को दूँगी जब मैं पहली बार उसे पप्पी करूँगी।” मिट्ठू ने अपने छोटे-छोटे हाथों में गुलाबी टेडी पकड़ा हुआ था।
बस सारी उलझन सुलझ गई।
स्वरचित
ऋतु अग्रवाल
मेरठ