अनुज आज अस्पताल से निकला तो घर जाने के बजाय सागर की ओर बढ़ गया । दिवाली के बाद ठंड अपने आगमन की दस्तक दे रही थी । ढलती शाम में कुछ लोग दोस्तों संग , कुछ अपने साथी की बाहों में बाहें डाले, तो कुछ अकेले ही सागर की लहरों का आनंद उठा रहे थे । अनुज वही सागर किनारे रेत पर बैठ गया ।
लहरें तेजी से आतीं और वैसे ही लौट जाती । अनुज लहरों के दायरे से कुछ दूर बैठा था । तब भी हल्की फुहारें छिटक कर आ जाती । अनुज का मन इन लहरों की तरह बेचैन ही था , बीती घटनाएं हलचल मचा रही थीं ।
अणिमा कहती थी ,अनुज सागर की तारीफ में कितनी कविताएं,शायरियां लिखी गई हैं न । कितना गहरा है , अनेक अमूल्य रत्नों का भंडार है , अथाह जल राशि है, और भी ना जाने क्या क्या । पर अनुज देखो ना फिर भी ये शांत नहीं है , संतुष्ट नहीं है । हम मनुष्यों के मन की तरह । इच्छाएं खत्म ही नहीं होती , एक पूरी होती है
तो दूसरी आ जाती है । आगे बढ़ने की ललक हमेशा लगी रहती है । फिर चाहे रिश्ते छूट जाएं इस रेत की तरह , बेवजह खिलखिला कर हसीं थी अणिमा । पर उस खोखली हसीं के पीछे छिपा दर्द कहां देख पाया अनुज । लहरों के छींटों में खोए आंसू भी नजर नहीं आए ।
अनुज और अणिमा का प्रेम विवाह था , फिर भी कहां समझ पाया अनुज । कॉलेज की दोस्ती कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला । घर वालों के विरोध के बावजूद दोनों नहीं माने । आखिरकार घर वालों को ही मानना पड़ा ।
विवाह के बाद तो लगता था, सारी खुशियां उनके आसपास ही हैं । अणिमा तो दिन रात चहकती ही रहती थी । घर में सभी को अपना बना लिया था उसने । हर शाम अक्सर इसी सागर किनारे गुजरती थी । फिर अनुज प्रोजेक्ट बिज़नेस मीटिंग्स में एक बार जो घुसा ,तो घर परिवार सब भूल गया। शायद! अणिमा को भी। फिर हफ्तों बीत जाते ऐसी शाम के लिए । वो कभी कुछ कहती नहीं थी , हंसती तो तब भी थी बेवजह सी, शायद दर्द छुपाने के लिए ।
एक बार उसने कहा भी , अनुज अब हमारा भी परिवार बढ़ना चाहिए न । तब अनुज ने कहा था , थोड़ा रुक जाते है, एक बार परफेक्ट सेटल हो जाए । पर इस परफेक्ट की परिभाषा क्या थी ?
उस दिन अणिमा सुबह जल्दी ही उठ गई । विवाह की प्रथम वर्षगांठ जो थी । नहा कर हल्के नीले रंग की साड़ी पहन कर तैयार हुई और नीचे बगीचे से ताजे फूल तोड़ कर गुलदस्ता तैयार किया । अनुज को उठाने ऊपर कमरे में गई , पर अनुज तो बैग पैक कर रहा था । अणिमा ने पूछा ,कहीं जा रहे हो अनुज ?
अनुज ने कहा , हां अणिमा आज कॉन्ट्रैक्ट के लिए मीटिंग है बंगलोर में ,कल तक आ जाऊंगा । उसने अणिमा की ओर ध्यान ही नहीं दिया । बैग उठा कर बाहर निकल गया । अणिमा ने पीछे दौड़ते हुए कहा , अनुज आज हमारी पहली सालगिरह है , कह कर अनुज के कंधे पर हाथ रखना चाहा ,मगर तब तब अनुज दो सीढ़िया उतर चुका था । अणिमा लड़खड़ाते हुए सीढ़ियों से गिर पड़ी । अनुज ने हाथ बढ़ा कर उसे संभालने की कोशिश की, मगर उसका हाथ छूट गया । अनुज जोर से चिल्लाया ,अणिमा !
लहरों के शोर ने उसकी तंद्रा भंग की । पिछले तीन दिन से अणिमा बेहोश है । डाक्टर का कहना है ,सिर पर चोट की वजह से बेहोश है । आजकल में होश आ जायेगा ।आज सुबह अलमारी से उसकी डायरी निकली , पन्ने पलटते कुछ लाइनों ने विचलित कर दिया था :-
अनुज कॉलेज में हम एक दूसरे का साथ पाने के लिए बहाने ढूंढते थे । घर के लोग राज़ी नहीं हुए तो भी हार नहीं मानी । सब कुछ किया ,एक दूसरे का साथ पाने के लिए ,पर अब हम साथ हो कर भी साथ नहीं हैं।
मैं मानती हूं अनुज , आगे बढ़ने के लिए , सफलता के लिए मेहनत और समय दोनों देना होता है , और पैसा और कैरियर जिंदगी में बहुत जरूरी है , इसलिए कभी कुछ नहीं कहा । पर अनुज मैं तो तुम्हारे थोड़े से साथ के लिए भी तरस गई हूं। तुम तो घर आ कर भी घर पर नहीं होते हो , साथ हो कर भी साथ नहीं होते । अनुज प्यार भरे कुछ पलों का साथ पूरे जीवन को महका देता है । पर हमारे प्यार की बेल तो अभी से मुरझाने लगी है ।
अनुज ने मन ही मन निश्चय किया , और घर की ओर चल दिया । अणिमा की पसंद की शर्ट पहनी ,फिर उसकी पसंद के फूल लिए और अस्पताल पहुंचा । डाक्टर ने बताया अणिमा को होश आ गया है । अनुज भागता हुआ उसके कमरे में पहुंचा । पास बैठ कर उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा , अणिमा सच में मैं अपना प्यार भूल गया था ।
अब तुम्हे कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगा । मगर मुझे तुमसे भी शिकायत है । तुमने कभी शिकायत की ही नहीं । तुम्हारा भी तो मुझ पर पूरा हक है न , तुम मुझसे कह सकती थीं, अपने मन की बात । अणिमा ने भी अनुज का हाथ कस कर थाम लिया । दोनों की आंखों की नमी ने प्यार की बेल को फिर से सींच लिया ।
लेखिका : रंजना आहूजा