प्यार का मौसम (भाग 3 )- स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi

माफ़ करना मुझे आने में थोड़ी देरी हो गयी !

कोई बात नहीं …….मैम

सर आप बस इसे कभी कभार आकर थोड़ा पढ़ा दिया करे ताकि इसका मनोबल बना रहे । आपका बहुत आभार होगा । मै इसकी पढ़ाई की वजह से चिंतित रहती हूँ । वीर उसकी निःशब्द आँखो को ना कह ही नही पाया । ठीक है रविवार को आता हूँ । मेरा घर भी पास हैं तो आने जाने में कोई दिक़्क़त नही होगी । बेला की भाभी ने जब फ़ीस की बात की तो वीर ने कहा – देखिए ऐसा कुछ नही हैं क्योंकि मैं बच्चों को ट्यूशन नहीं देता । यें तो बेला के ज़्यादा इसरार करने पर मैं तैयार हुआ हूँ ।

चार दिन बाद वीर बेला के घर गया और उसे पढ़ा कर वापस आकर खाना खाकर सो गया । पूरे हफ़्ते कॉलेज और छुट्टी वाले दिन बेला को पढ़ाना ।यही दिनचर्या के चलते वो बहुत व्यस्त रहने लगा । उसे अपनी माँ के लिए भी बड़ी मुश्किल से समय मिलता । लेकिन वो खुश था की उसकी और बेला की मेहनत रंग ला रही थी । इस बार बेला का हिंदी साहित्य में तीसरा स्थान आया । एक दिन जब वो पढ़ा रहा था तो बहुत तेज बरसात होने लगी । वीर को लगा ऐसा ही चलता रहा तो वो घर कैसे जाएगा ?? बेला की भाभी ने पकोड़े बनाए थे वो भी ख़त्म हो गए पर बरसात बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी । वो सब बैठ बातें कर रहे थे । तभी बातों बातों में वीर को बेला की भाभी का नाम पता चला ।

जैसे ही बरसात थमी तो वीर अलविदा कह जाने लगा…..उसी पल वीर के मोबाईल की घंटी बजी तो पता चला की वीर की माँ की तबियत खराब हो गयी है । पड़ोसी उन्हें अस्पताल ले कर गए है । ये सुन वीर घबरा गया ! तभी नूरी ने कहा मैं भी आपके साथ चलती हूँ । वीर उसकी तरफ राहत भरी नज़रों से देखने लगा । दोनो जब अस्पताल पहुँचे तो पता चला कि वीर की माँ का ब्लड प्रेशर कम हो गया था । इसलिए वो बेहोश होकर गिर पड़ी थी । लेकिन अब वो ठीक है ये जान वीर ने चैन की साँस ली । नूरी उसके लिए चाय लेकर आयी और बोली ये पी लो अच्छा लगेगा । वीर ने चाय पी और नूरी का शुक्रिया अदा किया ।

वीर ने नूरी को बोला अब माँ ठीक है । आप अपने घर जा सकती हो ! नही ,मैं यहीं रुकती हूँ, क्योंकि अंदर एक महिला अटैडेंट ही रह सकती हैं । अगर आप को तकलीफ़ ना हो तो आप बेला के पास घर चले जाएगा ।आज तक मैंने उसे रात को कभी अकेला नहीं छोड़ा । मैं …लेकिन वो मेरे साथ अकेली रहेगी तो अच्छा नहीं लगेगा ……

नूरी बोली- जिस इंसान ने कभी मेरा नाम जानने की चेष्टा नहीं की , जिसके आस पास होने से हमने हमेशा महफ़ूज़ महसूस किया हो । वो इंसान गलत नहीं हो सकता । मुझे आप पे भरोसा हैं ! ये सुन वीर आत्मविश्वास के साथ बेला के घर चला गया ।

 

अगली सुबह जब वीर माँ से मिलने गया तो माँ के चेहरे पे वो ही आभा थी ,जो कुछ साल पहले दिखती थी । यें देख वो बहुत खुश था , माँ और नूरी जी को देख लगा ही नहीं कि वो अभी मिले है । ऐसा लग रहा था ना जाने कितने वर्षों से जान पहचान है । वीर ने नूरी का शुक्रिया किया जब नूरी जाने लगी तो वीर की माँ ने बोला बेटी जल्दी मिलने आना । ठीक है आंटी ! बोल वो चली गई……..

माँ आज ठीक है और नूरी जी की तारीफ करते थकती नहीं है । कॉलेज में पेपर शुरू हो गए थे वीर व्यस्त रहने लगा । एक दिन सुमित्रा जी ने नूरी को फ़ोन कर घर आकर ख़ाना खाने का निमंत्रण दिया । रात को जब वीर घर आया तो नूरी और बेला को घर पाकर आश्चर्य चकित हो गया । आप लोग ???

क्यों कोई दिक़्क़त है …??. नहीं माँ आपने बताया नहीं ? मैं तुमसे इतने दिन से बात करना चाह रही थी । पर तुम्हारे पास तो समय ही नहीं था , तो मैंने ख़ुद ही बुला लिया ।

माँ आपने अच्छा किया ! मैं भी इनका शुक्रिया करना चाह रहा था ।

थोड़ी देर बाद वो दोनों चली गई और वीर की माँ वीर के पीछे पड़ गई की वो नूरी से शादी कर ले मुझे वो बहुत पसंद आयी है !

माँ ऐसे थोड़ी होता है ! आप क्या जानती है नूरी के बारे में …….

मैं तुमसे ज़्यादा जानती हूँ ! उसने मुझे सब कुछ बता दिया हैं।

अगर तुम हाँ कहो तो मैं बात आगे बढ़ाती हूँ ……

दूसरी तरफ़ बेला का भी कॉलेज पूरा होने वाला था । यें सोच नूरी को बेला की चिंता सताने लगी । अगले दिन सुमित्रा जी वीर के साथ नूरी के घर पहुँची । उन्हें देख नूरी बहुत खुश हुई । थोड़ी देर बाद वीर और बेला को कुछ सामान लाने के लिए बाज़ार भेजा ।तभी नूरी और सुमित्रा जी चाय पीते हुए कश्मकश में दिखी । दोनो की आँखो में बहुत सवाल थे । पर नूरी ने हिम्मत कर पूछ ही लिया…… “माँ जी क्या मैं आपके वीर का हाथ अपनी नंद बेला के लिए माँग सकती हूँ “ ??? ये सुन सुमित्रा जी असमंजस में दिखी कि मैं तो यहाँ इसका हाथ माँगने आयी थी पर यें तो …..सुमित्रा जी ने उसे उनकें घर आने का मक्सद नहीं बताया ।

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