नीला शलभ की सहपाठी थी, दोनों में प्यार हुआ और माँ -बाप की इच्छा के विरुद्ध जा शलभ ने नीला से शादी कर ली। शलभ की इस हरकत से उसके पिता दिवान साहब को बहुत आघात लगा। समाज में उनका रुतबा था, शहर के नामी -गिरामी लोगों में से एक थे दीवान साहब। शलभ उनका छोटा बेटा था, उससे दीवान साहब को बहुत उम्मीद थी। बड़ा बेटा सुहास पढ़ -लिख कर बिजनेस की पढ़ाई करने विदेश गया तो लौटा ही नहीं।
उसे पिता के बिजनेस में कोई इंट्रेस्ट नहीं था पर पिता के दबाव के चलते वो आगे की पढ़ाई के लिये विदेश चला गया।शायद उसे पिता से दूर जाने का यही उपाय सही लगा। बड़े बेटे से उम्मीद खोने पर दीवान साहब की उम्मीदें छोटे बेटे शलभ पर टिक गई। शलभ जहीन था, पढ़ाई खत्म करते ही पिता का बिजनेस ज्वाइन करने वाला था। इसलिये शलभ ने नीला से एक साल का समय माँगा था,पर नीला इतना समय देने को तैयार ना थी।
नीला को डर था कहीं अपने घर में माता -पिता के दबाव में शलभ का मन ना बदल जाये। वैसे भी नीला ने शलभ की अथाह संपत्ति देख कर प्यार किया था। साधारण परिवार की नीला के सपने बहुत बड़े थे। पिता की सीमित आय में वे चारों बच्चे किसी तरह पढ़ -लिख गये। उनकी इच्छायें कभी पूरी नहीं हो पाती, नीला की माँ, पति की सीमित आय से किसी तरह खींच -तान कर गृहस्थी की गाडी खींच रही थी।
नीला ने भी बारहवीं की पढ़ाई करने के बाद कुछ ट्यूशन पकड़ लिये और अपनी पढ़ाई का खर्चा इस तरह निकलने लगी।बाकी भाई -बहन ने भी इसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी करने में लगे थे।
कॉलेज में शलभ की गाड़ी और रुतबा देख नीला को लगा यही वो शख्स है जो उसके सपनों को मंजिल दे सकता है।
शलभ पढ़ाई में भी बहुत अच्छा था।,यूँ तो शलभ की कई महिला मित्र थी। पर नीला की सादगी और सुंदरता से शलभ प्रभावित हुये बिना ना रहा।नोट्स के आदान -प्रदान के साथ दिल का भी आदान -प्रदान हो गया।पढ़ाई खत्म होने पर जब शलभ ने समय माँगा तो नीला तैयार नहीं हुई।
नीला के प्यार की परीक्षा पास करने की चाहत में शलभ ने अपने माता -पिता की भी उपेक्षा कर शादी कर ली । लिहाजा दोनों ने शलभ से नाता तोड़ लिया।नीला और शलभ ने शादी तो कर ली पर अपनों के बिना रोजमर्रा की समस्याओं से घबरा गये। अभी तक शलभ को खाने या और जरूरतों के बारे में सोचना नहीं पड़ा। लेकिन माँ -बाप के रूठ जाने से शलभ वास्तविकता के धरातल पर आ गया।
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बड़ी मुश्किल से शलभ को जॉब मिली, नीला फिर ट्यूशन पढ़ाने लगी, किसी तरह घर का खर्चा चलने लगा। पर शलभ इस तरह के जीवन का आदि नहीं था। उसकी कुंठा खीझ बनने लगी। नीला को भी वास्तविकता दिखने लगी, बिना पैसे के प्यार का कोई मतलब नहीं, और उसने तो शलभ से प्यार ही इसीलिये किया था,
जिससे वो नीला के सपने पूरे कर सके, पर यहाँ तो उल्टी गंगा बहने लगी। रोज की लड़ाईयों से तंग आ एक दिन नीला अपनी दोस्त के घर रहने चली गई। शलभ ने बहुत कॉल किया पर नीला ने नहीं उठाया, तब शलभ ने मैसेज भेजा “नीला मैंने तुमसे दिल से प्यार किया है, दिमाग से नहीं लौट आओ, थोड़ा समय दो, परिस्थितियाँ ठीक हो जायेंगी “।
नीला की दोस्त ने भी समझाया तब नीला घर लौट आई। शलभ एक बार फिर जोर -शोर से नौकरी की तलाश में लग गया एक मल्टीनेशनल कंपनी में उसका सिलेक्शन हो गया।आर्थिक स्थिति ठीक होने लगी और साथ ही घर की खुशियाँ भी लौटने लगी। नीला भी अब सब कुछ भूल कर खुश रहने लगी। एक दिन नीला चक्कर खा कर गिर गई,
उस दिन इतवार था शलभ घर पर ही था। तुरंत डॉ. को बुलाया। डॉ. ने बधाई देते हुये बताया नीला माँ बनने वाली है। शलभ की खुशी का ओर -छोर ना था। शलभ की खुशी और उसका अपने प्रति प्यार देख नीला एक दिन बोल ही पड़ी -शलभ मैंने दिमाग से प्यार करना शुरु किया था जो अब दिल से हो गया “।
मुझे पता है “शलभ हँस कर बोला।
“तुम्हे कैसे पता “हैरानी से नीला बोली।
कॉलेज में जब तुम अपनी बेस्ट फ्रेंड को बता रही थी कि तुमने मुझसे प्यार कर दिमाग का परिचय दिया, तभी. मैंने सोच लिया तुम्हे दिल और दिमाग का अंतर जरूर समझाऊंगा, दिल से किया प्यार स्वार्थ से परे होता है, जबकि दिमाग से किया प्यार स्वार्थ से होता है।
दोस्तों अक्सर देखा गया लोग माता -पिता की मर्जी के बगैर प्रेम विवाह कर लेते पर वास्तविकता का सामना होते ही घबरा जाते,। प्यार सिर्फ घूमना -फिरना ही नहीं होता, बल्कि एक दूसरे के प्रति विश्वास और परवाह होती है।.. अतः जिम्मेदारियों से भागे नहीं… निभाए… क्योंकि कहीं भी जायेंगे, कोई भी रिश्ता बनायेंगे निभाना तो पड़ेगा…।
प्यार, प्यार ही होता है चाहे दिल से करो या दिमाग से, दिमाग वाला प्यार स्वार्थ से भरपूर जरूर होता है पर सामने वाला सच्चा है तो वो दिल तक पहुँच ही जाता है…।
—-=संगीता त्रिपाठी