*प्यार में फरारी** – श्याम कुंवर भारती : Moral Stories in Hindi

नीता अपने पति के साथ हमीमुन मनाने हिल स्टेशन पर अपने पती के साथ जा रही थी।उसकी अभी नई नई शादी हुई थी।उसका पति बिमल एक कंपनी में इंजिनियर था।उसका विवाह दोनो परिवार की रजामंदी से पूरी सामाजिक रीति रिवाज है हुई थी।

नीतू बहुत खुश थी वो जिससे प्यार करती थी उसी के साथ उसका विवाह

हुआ था।घर से निकलने में उसे काफी देर हो गई थी।ट्रेन सुबह के साढ़े दस बजे थी।गर्मी शुरू हो रही थी इसलिए उसके पति ने रिजर्वेसन थर्ड एसी में करवाया था।

जल्दी जल्दी वो कार से स्टेशन पहुंची उसके पति और देवर ने मिलकर उसका सामान कार से उतरवाया।

पूछताछ में पता करने पर पता चला ट्रेन अभी एक घंटा देर से आयेगी।

उसने अपने देवर को कार से वापस घर भेज दिया।

उसने थोड़ी राहत की सांस ली की चलो ट्रेन लेट होने की वजह से छूटी नही।हालांकि उसके पति के मोबाइल पर ट्रेन के बिलंब होने की सूचना मिली थी लेकिन जल्दी बाजी के चक्कर में वो देख नही पाया था।

नीतू यात्री विश्राम गृह में आकर बैठ गई और अपने थरमस से चाय निकाली।एक प्याली अपने पति को दी और एक खुद लेकर पीने लगी ।तभी उसकी नजर सामने एक लड़के और लड़की पर पड़ी ।लड़की उसकी जान पहचान की लगी ।उसने ध्यान से देखा

लड़की उसकी सहेली मंजू थी ।लेकिन उसके साथ लड़का कौन है।उसका माथा ठनका।मंजू का स्टेशन तो दूसरा था वो इस स्टेशन पर क्यों आई है और कहा जा रही है।

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उसने जल्दी जल्दी अपना चाय खत्म किया और अपनें पति से कहा _ आप जरा समान देखिए ।उधर सामने मेरी एक सहेली बैठी है मैं उससे मिलकर आती हूं।

ठीक है जाओ मिलकर जल्दी आओ ।उसके पति ने कहा।

सामने अपनी सहेली नीतू के देखकर मंजू चौंक गई ।थोड़ी भयभीत भी नजर आ रही थी।

अरे मैं कोई भूत नही हूं जो तू मुझे देखकर डर रही है।में तेरी सहेली नीतू हूं ।उसने हंसते हुए कहा।

मैंने पहचान लिया है नीतू ।तुम कहा जा रही हो।उसने नीतू से पूछ लिया।

अरे मैं तो अपने पति के साथ हनीमून पर जा रही हूं लेकिन तुम यहां क्या कर रही हो और ये तुम्हारे साथ कौन लड़का है इसे कभी देखा नहीं नीतू ने पूछा ।मंजू ने इधर उधर देखकर धीरे से कहा _ दरअसल मैं घर से भाग कर आई हूं ।मैं इस लड़के प्रमोद से प्यार करती हूं।हम दोनो के घर वाले हमारी शादी के लिएं तैयार नही है।इसलिए ऐसा करना पड़ा।

लेकिन जा कहा रही हो नीतू ने पूछा ।उसकी बात सुनकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

कुछ तय नही किया है बस यहां से दूर चली जाना चाहती हूं ताकि कोई हमें पहचान न सके।मंजू ने कहा।

कितनी मूर्ख है तू ।लड़की जब घर से भागती है तो पता है तुम्हे माता पिता और परिवार की समाज में कितना अपमान होता है।कोई समाज में मुंह दिखाने के लायक नही होता है।

फिर क्या पता है ये लड़का तुम्हारे साथ ईमानदारी करेगा।हो सकता है तुम्हे धोखा दे दे या बेच दे।जान से मार दे।या मन भर जाने पर तुम्हे छोड़  दे।फिर तुम कहां जाओगी किससे मदद मांगोगी।नीतू ने उसे समझाते हुए कहा।

प्यार करना गुनाह नही है लेकिन घर से भाग जाना बहुत गलत बात है एक लड़की के लिए।किसी तरह दोनो को मिलकर अपने अपने परिवार को राजी करना चाहिए।उससे पहले अपने पैरो पर खड़ा होना चाहिए।तब जाकर पारिवारिक जीवन सफल होता है वरना दुख ही दुख होता है।ऐसी गलती मत करो।अभी भी कुछ नही बिगड़ा है।अपने घर वापस लौट जाओ मंजू और अपने कुल खानदान की मर्यादा बचाओ ।साथ ही इसको बोलो पहले अपने पैरो पर खड़ा हो ।फिर दोनो परिवार की रजामंदी से अपना विवाह करना ।भाग कर तो हरगिज नहीं ।

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मंजू रोने लगी ।

रोना बंद करो और लौट जाओ ।तुम्हारे घर वाले बहुत परेशान हो रहे होंगे।हालांकि अब तुम बालिग हो गई हो अपनी मर्जी से विवाह कर सकती हो।लेकिन इस अधिकार का गलत इस्तेमाल मत करो।

प्यार किया है तो समस्यायों का सामना  भी करना सीखो ।नीतू ने कहा।

तभी उसके पति ने आवाज दिया जल्दी आओ नीतू ट्रेन के आने की सूचना हो रही हो।

ठीक है आती हूं।

अब तुम जाओ और घर पहुंच कर मुझे फोन करना ।

ट्रेन में नीतू मंजू के बारे में सोच रही थी।घर पहुंचाते ही मंजू की मां रोते हुए उसे गले लगा ली।बेटी तुम कहा चली गई थी मेरी तो जान ही निकल गई थी।

मैं अपनी सहेली को स्टेशन छोड़ने गई थी वो अपने पति के साथ बाहर घूमने जा रही थी।उसकी अभी नई नई शादी हुई है।जल्दीबाजी में बताना भूल गई थी।उसके पिता ने कहा _ बेटी बताकर जाति तो हम परेशान नही होते ।

मोहल्ले में तरह तरह की बाते हो रही थी।अच्छा हुआ तुम आ गई ।अब सबकी बोलती बंद हो जाएगी।

मां ने कहा _ चल हाथ मुंह धो ले बेटी मैं खाना लगाती हूं।

मंजू की आंखो से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।उसने अपनी ओढ़नी से अपना चेहरा ढक लिया था।आज कितनी बड़ी गलती करने से वो बच गई थी।

                   –  :समाप्त :-

लेखक

श्याम कुंवर भारती

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