सुगना अपनी नातिन का हाथ थामे उसे शहर के जूडो-कराटे स्कूल लेकर जा रही थी।वह हमेंशा हाथ में डंडा रखकर चलती थी।गाँव में उसे सब ‘डंडे वाली अम्मा’ कह कर बुलाते थे।
रास्ते में सब्जी की दुकान देखकर सुगना को याद आया, कैसे उस दिन वह डण्डा लेकर दौड़ी थी।
एक दिन एक ग्राहक उसकी दुकान पर आया।और बड़े आशिकी मिजाज में बोला “कैसी हो सुगना ?आज तो बड़ी चमक रही हो “।
सुगना चुपचाप रही कुछ न बोली अपना काम करती रही।तभी ग्राहक ने उसे कुछ कहा, वह आग-बबूला हो गई व जानवरों को भगाने वाला डंडा उठा उस ग्राहक को मारने दौड़ी।
सुगना प्रतिदिन चार बजे रात में उठकर खेत से सब्जी तोड़कर लाती व गाँव की रोड किनारे बैठकर बेचती थी।
शादी के दो साल बाद ही पति की ट्रक दुर्घटना में मौत हो गई।छह माह की बेटी थी व वृद्ध सास-ससुर थे।
उसके माता-पिता ने बहुत कहा कि, वह मायके चले परन्तु वह नहीं गयी। सास-ससुर ने उसे हमेशा माँ -पिता समान प्यार दिया।वह उनकी जिम्मेदारी समझती थी।उसके बिना उनका कोई नहीं था।उन्हें छोड़कर वह नहीं गयी।
सुगना उनकी बहुत सेवा करती थी, व उनकी हर आवश्यकता का ध्यान रखती थी।उसके सास-ससुर सब से गर्व से कहते नहीं थकते थे कि, “हमने बेटा तो खो दिया परन्तु, हम भाग्यशाली हैं जो हमको समझदार बहू मिली है वह हमें बेटे की कमी खलने नहीं देती।”
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सुगना बहुत सुंदर थी। लोग उसकी कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश करते थे। परन्तु सुगना ने हिम्मत नहीं हारी वह चुपचाप सहन करती रहती थी।कुछ बोलती नहीं थी।वह जानती थी कि उसके बोलने की ही सब प्रतीक्षा करते रहते हैं।जरा जबान फिसली और लोग दबोच लेंगे।
उस दिन की घटना के बाद उसकी जिंदगी बदल गयी।उसने फैसला कर लिया था कि,अब वह स्वयं भी पढ़कर आगे बढ़ेगी व बेटी को भी आगे बढ़ायेगी व आत्मसुरक्षा की शिक्षा दिलवायेगी।
दुनिया में अकेले जीने के लिए बहुत कुछ सहना व करना पड़ता है।उसने बहुत मेहनत की ।स्वयं व्यायाम शाला में जाकर आत्मसुरक्षा की शिक्षा ली वह बल्लम, तलवार व डंडा चलाना सीख गई थी। फिर उसने गाँव की महिलाओं को आत्मसुरक्षा का प्रशिक्षण देने की शुरूआत की।
उसकी बेटी पढ़-लिख कर शहर में कराटे क्लास चला रही थी।
तभी साड़ी का पल्लू खींचते हुए नातिन सुगना से बोली “नानी-नानी।”क्या सोच रही हो सुनो ना, एक बात बताओ आप ये डंडा साथ में हमेशा क्यों रखते हो?”
सुगना नातिन की बात से अतीत की दुनिया से वर्तमान में वापस आ गयी। फिर बोली “बेटा यह हमारा रक्षक है। इससे हम अपनी रक्षा के लिए किसी पर भी दूर से भी वार कर सकते हैं।” नातिन बोली “नानी मुझे भी एक डंडा दिला दो, मैं भी अपनी रक्षा करुँगी।”नानी ने कहा “हाँ,बेटा तुझे इसलिए जूड़ो- कराटे सिखा रही हूँ, तू बिना डंडे के भी स्वयं की रक्षा कर सकती है।अपनी रक्षा स्वयं ही करना हर बेटी को आना चाहिए।
गांव के एक समारोह में‘डंडे वाली अम्मा’ को उनके प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा महिलाओं को प्रशिक्षण देने के नेक कार्य के लिए पुरस्कार दिया गया।
पुरस्कार अपने दिवंगत पति व सास-ससुर के चित्र के सामने रखते हुए सुगना की आँखों से अश्रु धारा बहने लगी।
रोते हुए कह रही थी “आप लोगों के शुभाशीर्वाद से मिला यह पुरस्कार आप लोगों को समर्पित करती हूँ।”
ईश्वर की माया निराली है।सुगना ने अपने जीवन की कठिनाइयों को पुरस्कार में बदल दिया था।
सुनीता परसाई ‘चारु’
जबलपुर मप्र
30/08/24
#हम भाग्यशाली हैं जो हमको समझदार बहू मिली है