रेस्त्रां में घुसते ही सौम्या ने नजरें इधर उधर दौड़ाई और उसकी नजर एक टेबल पर जाकर स्थिर हो गई और वह उस टेबल की तरफ बढ़ी जहां बैठे रंजीत ने उसे देख लिया और खड़ा हो गया । दोनों ने एक मुस्कुराहट के साथ एक दूसरे का स्वागत किया और बैठ गए ।
औपचारिक बातों के बाद सौम्या ने पूछा जी- “ऐसी क्या बात थी जिसके लिए शादी से 10 दिन पहले आपका मिलना जरूरी था ?” ” कुछ खास नहीं बस एक दो बातें थी जो मैंने सोचा पहले ही क्लियर कर लेते हैं ताकि बाद में कोई मसला ना हो पर बताओ पहले क्या लोगी ?” ” बस कॉफी ही चलेगी खाने की इच्छा नहीं है । सौम्या का जवाब आया ।
कॉफी आने तक दोनों इधर-उधर की बातें करते रहे । सौम्या और रंजीत दोनों की शादी 10 दिन बाद होनी थी । सौम्या की तीन वर्षीय बेटी तान्या थी और रंजीत का दो साल का बेटा चिराग था । पर जीवनसाथी के मामले में दोनों ही बहुत बदकिस्मत रहे । उनका विवाहित जीवन ज्यादा लंबा नहीं चला । सौम्या के पति का रोड एक्सीडेंट में देहांत हो गया और रंजीत की पत्नी 6 माह पहले ही एक बीमारी में चल बसी।
सौम्या एक स्कूल में टीचर थी ससुराल और मायके में ज्यादा फासला ना था और सास-ससुर भी काफी समझदार व व्यवहारिक थे इसीलिए उसकी बेटी तान्या को अपने घर के चार बुजुर्गों की प्यार भरी छांव हासिल थी । रंजीत एक अच्छी कंपनी में अच्छे ओहदे पर था
पर जीवनसाथी के बिछड़ने से दोनों की जिंदगी उथल-पुथल हो गई थी । सौम्या दूसरी शादी के लिए तो बिल्कुल तैयार ना थी पर दोनों तरफ के माता-पिता के समझाने पर सिर्फ इस शर्त पर हां की थी कि उसकी तान्या को जो अपनाएगा उसी से शादी करेगी और फिर कुछ मुलाकातों के बाद रंजीत से विवाह के लिए तैयार हो गई थी ।
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लेकिन कुछ ऐसा था जो अब सौम्या को खटकने लग गया था जब भी दोनों मिलते थे तो सौम्या हमेशा चिराग के लिए पूछती थी उसकी पसंद नापसंद की जानकारी लेती रहती थी पर रंजीत तान्या के लिए उदासीन रुख अपनाएं रहता था । सौम्या ने एक बार दोनों बच्चों को मिलवाने की बात भी की पर रंजीत ने टालमटोल कर बात को वही खत्म कर दिया । उसने इस बारे में अपनी मां व सासू मां से भी बात की पर दोनों का कहना था कि मर्द अक्सर अपनी भावनाओं को शब्दों का आकार नहीं दे पाते और सौम्या अपने दिल को समझा लेती ।
इसीलिए जब रंजीत ने फोन पर एक मुलाकात के लिए बोला तो सौम्या राजी हो गई यही सोच कर कि कुछ बातों को तो आज क्लियर कर ही लेगी । कॉफी पीते पीते रंजीत ने अचानक पूछा सौम्या क्या तुम शादी के बाद अपनी बेटी को उसके नाना-नानी या दादा-दादी के पास छोड़ सकती हो? ना ना कुछ गलत ना समझो मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि शादी के बाद हमें एक दूसरे को समझने के लिए वक्त चाहिए होगा । बाद में तुम उसे अपने पास बुला लेना ।” सौम्या का दिमाग जैसे कुंद हो गया ।
कुछ क्षण तक तो मुंह से आवाज ही ना निकली पर फिर अपने आप को संभाला और रंजीत को देखते हुए पूछा – “कितने समय बाद मैं उसे अपने पास बुला सकती हूं ?” रंजीत ने थोड़ा खुश होते हुए कहा एक दो साल के बाद ..”तो फिर तब तक चिराग को कहां छोड़ोगे उसकी नानी तो है नहीं और नाना बेचारे अकेले कैसे संभालेंगे छोटे से बच्चे को और …” सौम्या की बात को बीच में काटते हुए रंजीत ने थोड़े रोष से कहा ” चिराग को नाना के पास क्यों छोडूंगा उसके दादा-दादी है ना वह देखेंगे…” “तो फिर चिराग के रहते हुए भी तो यही दिक्कत आएगी न, हमें एक दूसरे को समझने में वक्त लगेगा ना ।” सौम्या ने रंजीत से पूछा- “यह हुई पहली बात और अब दूसरी बात, तुमने कैसे सोच लिया कि मैं अपनी बच्ची को छोड़कर तुम्हारे साथ चली आऊंगी ?” सौम्या ने गुस्से से पूछा ।
“नहीं नहीं तुम मुझे गलत समझ रही हो । देखो मेरे मम्मी पापा की भी उम्र हो गई है वह दो दो छोटे बच्चों को नहीं संभाल सकते । तुम्हारा तो दोनों तरफ भरा पूरा परिवार है, तान्या को आराम से मिलकर संभाल लेंगे और फिर एक-दो साल की ही तो बात है बाद में देख लेंगे।” सौम्या का अब गुस्से से मुंह लाल हो गया “देखो मिस्टर रंजीत….” रंजीत ने चौक कर सौम्या की तरफ देखा “जब रिश्ते की बात चल रही थी तभी यह बात हुई थी ना कि तान्या मेरे साथ रहेगी और उसे चिराग का साथ मिलेगा ।
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मैं दोनों बच्चों की मां बनूंगी तब फिर तुमने यह क्यों नहीं कहा कि तुम तान्या के पिता बनने के लिए तैयार नहीं हो । यह दिखावा करने की क्या जरूरत थी तब तो जल्दी से तुमने और तुम्हारे माता-पिता ने कहा था कि हां हां क्यों नहीं हमें भी एक प्यारी सी बेटी मिल जाएगी तो अब ऐसा क्या हो गया..” रंजीत ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि सौम्या ने हाथ के इशारे से रुकने का इशारा किया और कहा “मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई है ।
हम तीन महीने से मिल रहे हैं और अब तक तो तुमने ऐसी कोई बात तो क्या इशारा भी नहीं किया और आज जब 10 दिन रह गए हैं शादी के तो तुम्हें सब कहना याद आ गया शायद तुम लोगों ने सोचा कि इतने कम समय में तो लड़की वाले अपनी इज्जत को कैसे दांव पर लगा सकते हैं ? क्यों यही ना ? और आज तुम्हें और तुम्हारे मां-बाप को याद आ गया वे दो छोटे-छोटे बच्चों को कैसे संभालेंगे । जब रिश्ता होने जा रहा था तो यह बात नहीं पता थी कि दो छोटे-छोटे बच्चों को संभालना पड़ेगा ?
क्यों भई …जब मैं चिराग की मां बन सकती हूं पर तुम क्यों नहीं तान्या को अपना सकते, उसके पिता बन सकते ? मर्द हो न अहम तो गया नहीं। अपने मर्दानगी कैसे दिखाओगे? किसी दूसरे के बच्चे को अपना नाम देने से डर गए या बेटी की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते । पहले भी जब हम मिलते थे तो तुम एक बार भी तान्या के बारे में नहीं पूछते थे जबकि मैं चिराग के अलावा और कोई बात करती ही ना थी ।
मैंने तो उसे दिल से ही अपना बेटा मान लिया था तान्या को भी बोलती रहती थी कि उसे एक छोटा भैया मिलेगा और वह भी खुश हो जाती थी कि अब वो भी किसी की दीदी बनेगी पर अफसोस तुम अपनी उसी संकीर्ण सोच में रहे । तुम्हारा बच्चा तो हम दोनों का होगा लेकिन मेरी बच्ची मेरी भी नहीं रहेगी । मुझे इतना समझ में नहीं आता कि इतना पढ़ा लिखा होने का क्या फायदा जब मानसिकता तो वही बरसों पुरानी है ।
दम भरते हो प्रगतिशील होने का पर अपने ही खोल से बाहर नहीं आ पाते … और अब मेरा फैसला भी सुन लो मिस्टर रंजीत मैं तुमसे अभी इसी वक्त अपना रिश्ता खत्म करती हूं । अच्छा हुआ अभी शादी नहीं हुई वरना शादी के बाद ऐसी कोई बात होती तो मेरी तान्या तो मां के होते हुए भी अनाथ हो जाती ।” कहते हुए सोनिया ने अपना पर्स उठाया और चल पड़ी।
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दो कदम चलने के बाद वापस मुड़ी और टेबल पर झुकते हुए रंजीत की आंखों में झांकते हुए बोली “जाने से पहले एक सलाह जरूर दूंगी मिस्टर रंजीत…अब अपनी शादी के लिए जो भी रिश्ता देखो वहां देखना कि उस औरत का कोई बच्चा ना हो वरना फिर किसी मां की आह का शिकार बनोगे।” कहते हुए सौम्या दरवाजे की तरफ बढ़ी और पीछे छोड़ गई निशब्द रंजीत को।
#दिखावा
शिप्पी नारंग
नई दिल्ली