पूर्णमासी की रजनी – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

अरे तेजू ये क्या तेरी बिटिया है?

      हां, बाबूजी मैं बापू की बिटिया ही हूँ।बापू आज घर पर ही खाने का टिफिन भूल बआये थे,इसीलिए मैं टिफिन ले आयी।

     अच्छा किया बेटा।तुम तो पढ़ी लिखी लगती हो?

     हां,बाबूजी पढ़ी लिखी तो हूँ,इंटर पास किया है,मैंने, आगे भी पढ़ना चाहती थी,पर पढ़ न सकी,बी.ए. प्राईवेट करूँगी।

        अरे बकर बकर बोले जा रही है,अपने मालिक है रज्जू,ज्यादा मत बोल।

       मैं क्या अधिक बोल रही हूँ, बाबूजी आप ही बताओ बापू को।

      नहीं- नही,तेजू ये तो बड़ी प्यारी प्यारी बात कर रही है।सुन बेटी तू आती रहा कर और अपने बापू से बात करना या ना करना,पर मेरे पास जरूर आया करना।बोल आया करेगी ना।

      हां हां, बाबूजी क्यो नही?आप भी तो मेरे बापू जैसे ही तो हैं।

       अपनी मासूमियत और शरारत भरी बातों से रज्जू यानि रजनी ने सेठ बृजभूषण जी का मन मोह लिया था।जब कभी रज्जू आती तो सेठ जी उससे खूब बाते करते।रज्जू उन्हें कभी न पराई लगी और न उन्हें यह महसूस हुआ कि वह उनके मुलाजिम की बेटी है तो क्यों उससे बात करे।रजनी ने बताया कि वह बीए करके रहेगी।बृजभूषण जी ने रजनी से कहा भी कि बेटी मैं तेरा दाखिला नियमित रूप से कॉलेज मे करा देता हूँ,

तू काहे को चिंता करती है।बृजभूषण जी रजनी के उत्तर से उसके मुंह को देखते रह गये।न बाबू जी न,मेरे बापू का दिल दुखेगा,उन्हें लगेगा रज्जू पराई हो गयी है।बाबूजी मेरे बापू  ने मुझे सिखाया है आत्मसम्मान से मर्यादा में रहकर जीना।आप देखना बाबूजी मैं बीए में पास हो जाऊंगी।उसके मासूम से चेहरे को देखते देखते बृजभूषण जी ने अनायास ही उसके सिर पर हाथ रख दिया।

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       बृजभूषण जी का बेटा संदीप लंदन से बिज़नेस मैनेजमेंट का कोर्स करके वापस आ गया था।उसके आ जाने से परिवार का अकेलापन भी दूर हो गया था।घर मे रौनक हो गयी थी।संदीप भले ही लंदन में पढ़ा हो पर वह भारतीय संस्कारो को नही भूला था।अपने माता पिता की पूरी इज्जत करता।आते ही उसने पिता के कारोबार में हाथ बटाना प्रारम्भ कर दिया था।इस सबसे बृजभूषण जी को आत्मिक शांति की अनुभूति प्राप्त होती।

अब बृजभूषण जी की इच्छा केवल संदीप के ब्याह करने की रह गयी थी,उन्होंने सोच लिया था कि संदीप की शादी के बाद वे  अपने कारोबार को राम राम कर लेंगे।संदीप को सब कुछ सौप देंगे।खुद भगवान का नाम लेंगे और समाज सेवा करेंगे।वे चाहते थे कि उनकी बहू संस्कारित हो और घर को संभालने वाली हो।आधुनिकता के नाम पर फूहड़ता उन्हें पसंद नही थी।अपनी राय उन्होंने संदीप को भी बता दी थी,उन्हें खुशी थी कि संदीप ने भी उनकी बात से सहमति दर्शायी थी।

        एक दिन रज्जू आयी तो उसके हाथ और माथे पर पट्टी बंधी थी।उसे देख बृजभूषण जी चौक गये,अरे बिटिया ये क्या हुआ तुझे,तेजू ने भी नही बताया,तू बता बेटी,तूझे ये चोटे कैसे लगी,चल तू मेरे साथ,वही बैठकर बात करेंगे।

     कुछ नही बाबूजी,आपको पता है ना,मैं बीए में पास हो गयी। 

हाँ हाँ, तेजू ने बताया था,अरे तेरा गिफ्ट भी तो देना है।पर तूझे चोट कैसे लगी?

      बाबूजी,बीए की मार्क्सशीट लेने गयी थी,कि वापसी में एक स्कूटर ने टक्कर मार दी,बस चोट लग गयी,बाबूजी मैं गिर पड़ी थी।इतने लोग जमा हो गये, पर उठाने वाला कोई नही।

       फिर फिर क्या हुआ,रज्जू?

 बाबूजी तभी कार में से एक लड़का उतरा, उसने मुझे उठाया, और पास के एक नर्सिंग होम में मेरी पट्टी भी करा दी।बाबूजी,भला लड़का था,कौन आजकल ऐसा करता है।

       बृजभूषण जी एकदम चौक गये,उन्हें याद आया,उनका बेटा संदीप भी जिक्र कर रहा था कि कैसे एक घायल लड़की को उसने उठाया और उसकी मरहम पट्टी नर्सिंग होम में कराई थी।उन्हें लगा कि संदीप ने ही रज्जू की सहायता की थी।संदीप शायद रज्जू की तारीफ भी कर रहा था कि सबके कहने पर भी उसने स्कूटर वाले की रिपोर्ट दर्ज नही कराई बल्कि कहने लगी छोड़ो बाबू हो सकता है किसी परेशानी में उसका ध्यान भटक गया हो।

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         रज्जू बेटी एक बात तो बता, जिस लड़के ने तेरी सहायता की,वो तुझे कैसा लगा?

      बाबूजी,सहायता करने वाला तो अच्छा ही होगा ना।बाकी किसी ने थोड़े ही मदद की।

        तूने उसका नाम और पता तो पूछा होगा?

       नही बाबूजी,पूछ ही नही पायी।और हां, बाबूजी उसने भी मेरे बारे में कुछ नही पूछा।

       ओह।

      इतने में ही संदीप पापा पापा आवाज लगाता वही आ गया।वहां रज्जू को बैठे देख वह चौक गया।अरे तुम यहाँ?रजनी भी उसे देख चौक गयी।इसी ने तो उस दिन उसकी मदद की थी।

     संदीप बोलने लगा,पापा वो मैं उस दिन बता रहा था ना—–

     अरे रुक संदीप,मैं सब समझ गया हूँ,उस दिन तुमने ही रज्जू को नर्सिंग होम में पहुँचाया था।संदीप ये रज्जू है ना अपने तेजू की बेटी है।मेरी बेटी की तरह तो है ही मेरी ये दोस्त भी बन गयी है।बृजभूषण जी बोले जा रहे थे,जबकि रजनी और संदीप एक दूसरे को ही देखे जा रहे थे।बृजभूषण जी चुपचाप उठकर कमरे से चले गये।

      अगले दिन ही बृजभूषण जी अपनी पत्नी और बेटे संदीप के साथ तेजू के घर पहुंच गये और संदीप के लिये रज्जू का हाथ मांग लिया।तेजू और उसकी पत्नी की आंखे नम हो गयी,पता नही ये उनका भाग्य था या फिर रज्जू का।भावावेश में तेजू बृजभूषण जी के पैरों की ओर झुक गया,पर बृजभूषण जी ने तेजू को गले से लगा लिया।

        विदाई के समय भरी आंखों से तेजू ने रज्जू से कहा बेटा तू बड़े भाग वाली है जो तुझे ये परिवार मिला है।बेटी इस भाग्य को सौभाग्य में ही बदलना।उस घर को खुशियों से भर देना मेरी बच्ची।

      बापू बापू कहते कहते रज्जू अपने बापू से चिपट गयी।अपने छोटे से घर के मुकाबले एक महलनुमा घर मे आ गयी रज्जू।बृजभूषण जी तो रज्जू को समझते ही थे,अब उनकी पत्नी ने भी रज्जू के रूप में अपनी बहू को पा आनन्दित महसूस कर रही थी। रज्जू ने पूरे घर की जिम्मेदारी संभाल ली थी।संदीप कारोबार संभाल ही चुका था,सो अब बृजभूषण जी अपने को पूर्ण तृप्त और शांत महसूस कर रहे थे।उन्होंने एक समाजसेवी संस्था में रुचि लेनी प्रारम्भ कर दी थी।अक्सर वे वहां बैठकों में जाने लगे थे।

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परिवार के संस्कार और सहयोग ही समाज में बदलाव लाने की हिम्मत देते हैं। – सुल्ताना खातून 

       सांझ ढल चुकी थी,बस रात होने वाली थी कि कोई घर आया और बोला सेठ जी को कुछ हो गया है, और वे हॉस्पिटल में हैं।सुनकर बावली सी रज्जू पैदल ही हॉस्पिटल की ओर दौड़ गयी। बृजभूषण जी तब आईसीयू में थे,कारोबार के सिलसिले में संदीप दो दिनों के लिये बाहर गया था।रज्जू ने ही सब औपचारिकताये पूरी की।पता लगा कि बृजभूषण जी को हल्का सा हार्ट अटैक आया है।स्टंट पड़ेगा जल्द ही ठीक हो जायेंगे।सब जानकर रज्जू ने अपनी सासू मां और अपने पिता को सूचित किया।

      आईसीयू से सामान्य रूम में शिफ्ट हो जाने पर रज्जू ने ही रात रात भर जाग कर बृजभूषण जी की सेवा की। बृजभूषण जी बोले  रज्जू तू तो बिल्कुल ही बेटा ही बन गयी रे।बृजभूषण जी को बोलते देख खुशी से बोली रज्जू,बाबूजी बेटी,बेटा तो हूँ ही आपकी दोस्त भी तो हूँ।बताओ फिर आपको कैसे अकेले छोड़ देती।मेरी बच्ची,आ मेरे पास आ,तुझे गले तो लगा लूं।

        दरवाजे के पास खड़े,संदीप जो बाहर से आ चुका था,संदीप की माँ और तेजू इस दृश्य को देख अपने आंसू रोक नही पा रहे थे,आज बहू बेटी एकाकार हो गये थे।तेजू मन ही मन कह रहा था,बेटी तू सच मे सौभाग्यवती है।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक,अप्रकाशित

#सौभाग्यवती साप्ताहिक विषय पर आधारित कहानी:

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