दीवार पर लटकी बेटे की तस्वीर देखकर सरोज ठंडी आहें भर रही थी कहां ‘स्कूल से एक भी छुट्टी ना लेने वाली सरोज’
अब,’ स्कूल जाने से भी कतराने लगी थी’
कसूर क्या था उसका?
पति के जाने के बाद, उसे “विधवा कोटे से”
अनुकंपा नौकरी मिली थी गृहस्थि टूट गई थी पर हिम्मत नहीं!
बेटा दसवीं की परीक्षा अव्वल दर्जे से पास कर ग्यारहवीं में आ गया था स्कूल खुल गए थे
सुबह फटाफट तैयारी करती’ स्कूल भागती सरोज ‘ अपनी दिनचर्या में कभी देरी नहीं करती थी दो पहले ही बेटे ने कहा था मम्मी ‘करोना काल में तो ऑनलाइन क्लासेस में यूनिफार्म चल गई’
पर अब शर्म आती है
पैंट’ बहुत ऊंची हो गई है’ आज ‘युनीफॉर्म दिला देना प्लीज़”
शाम को याद से चलेंगे…
सरोज ने पक्का वादा कर लिया था
और अब’ कुछ दिन पहले किया गया वादा सरोज भुला नहीं पा रही थी ‘
उस दिन शाम को मेहमान आ गए.. अगले दिन सोमवार था ‘उसका जन्मदिन’…
पर मिलने वाले इतवार को ही आ गए थे
काम खत्म करते करते रात हो गई!
शायद वो ‘भूल भी गई’
करना क्या था..
‘दुकान से जाकर रेडीमेड पेंट शर्ट ही तो लानी थी’
पर नहीं ला पाई…
बेटे ने भी शायद दोबारा नहीं कहा!
सुबह सरोज को स्कूल जाने की जल्दी थी और ‘कौन सा उस समय दुकानें खुल गई थी’?
सुबह तैयार होकर रोहन जोर से.. मां को आवाज लगाकर बोला” सुरों में..
कुछ तेज़ी भी थी”
मम्मी… यूनिफॉर्म भूल गई ना ?
उसने कहा अरे… एक दिन में कोई ऑफत थोड़ी टूट पड़ेगी… ‘मैडम को कह देना ‘
आज शाम तैयार रहना एकसाथ चलेंगे..
तेरी पसंद का खाना भी बाहर खाएंगे…
यह कहकर वो अपना टिफिन उठाकर स्कूल चली गई
उसका स्कूल, ‘लड़कियों का स्कूल था और रोहन लड़कों के स्कूल में पढ़ता था’
लगभग दो घंटे बाद ही उसके पड़ोसियों का फोन आया.. आप तुरंत घर पहुंच जाओ!
‘ जरूरी काम है’
सरोज ने कहा, ऐसी भी.. क्या परेशानी है?
लेकिन पड़ोसी बोले.. आपके घर का दरवाजा टूट गया है
घर कोई नहीं है…
सरोज फटाफट ऑटो करके घर आई… लेकिन घर का “दरवाजा ही नहीं उसका तो सब कुछ टूट गया था”
आंगन में बीचो-बीच उसका बेटा फंदे पर लटका खड़ा था.…उसके, लगभग साथ ही’ पड़ोसियों ने डॉक्टर साहब को भी बुला लिया था’
लेकिन… “रोहन होता तो मिलता”
पता नहीं.. खिड़की से किस की नजर गई थी जो उसे देख लिया था और किसी ने शोर मचा दिया था
पड़ोसियों ने दरवाजा तोड़ दिया था…
पर ‘रोहन को नहीं बचा पाए थे’
रोहन ने दीवार पर बड़े से कागज पर लिखा था मम्मी..” अब यूनिफार्म की जरूरत नहीं”
“आपको मेरी किसी भी चीज को लाने की जरूरत नहीं “
आज आपका जन्मदिन है ना.. मैं जा रहा हूं !
आपको” रिटर्न गिफ्ट देकर” आपकी सारी समस्याओं से आपको आजाद करके!!
सरोज उस कागज को पकड़ कर बेहोश हो गई थी
बेटी…बेटे से बड़ी थी वो ननिहाल पढ़ती थी
रह रह कर सरोज’ आज भी सिसकियां भरती है ‘किसके लिए ‘कमाएं’ किसके लिए ‘पकाए ‘
इन बातों से अब उसके दिमाग.. दिल सब जगह बस आंसू की धाराएं बहती हैं !
सरोज को ढांढस देने आई रोहन की क्लास टीचर भी रो पड़ी थी ‘बोली अगर उसने मुझे कहा होता तो मैं.. एक दिन की मोहलत और दे देती ‘
मैंने क्लास में सब बच्चों को बोला था कि” कल यूनिफॉर्म पहन के आना नहीं तो क्लास से बाहर कर दूंगी”
पर यह नहीं सोचा था कि वो बिना यूनिफार्म के खुद पर.. मां पर.. परिवार पर इतना बड़ा इल्जाम लगा देगा!
‘मैं भी शामिल हूं’
‘ मैं भी उसकी अपराधी हूं’ लेकिन सच में ‘माफ करना’
मैंने तो,’ सपने में भी नहीं सोचा था कि रोहन इतना बड़ा “भयंकर कदम” उठा लेगा’
जहां वह बैठता था ‘बच्चे डर के मारे उस कुर्सी पर नहीं बैठते हैं’
रह रह कर मेरी निगाहें क्लास में रोहन को ढूंढती हैं’ मेरी रातों की नींद उड़ गई है’
मैं भी आपकी तरह मां हूं.. समझ सकती हूं
हम सब,”दोष किसे दें” समझ में नहीं आता..
‘बच्चों में ( पेशंस) सब्र नाम की कोई चीज नहीं बची है’
सरोज’ रोहन की क्लास टीचर का हाथ पकड़कर विलाप कर उठी’
वो..’ इतना छोटा भी तो नहीं था ‘
बाज़ार के काम खुद कर आता था, फिर..
यह सब कैसे हो गया?
‘सामने वाले बाजार से ले आता’.. मुझसे, पैसे ले लेता ना..
पर अब रोहन कहां था?
वो तो तस्वीर में” अपनी स्कूल की पुरानी यूनिफॉर्म में बस सबको देख रहा था”
लेखिका अर्चना नाकरा
(सत्य घटना पर आधारित कहानी)