पुनर्विवाह – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मम्मी – मम्मी बारात वापस आ गई है चलो ना नई दुल्हन बनी चाची को देखने …..6 वर्षीय रिक्की ने नव्या का हाथ खींचते हुए बाहर ले जाने की कोशिश की ….! रुक जा बेटा , तू जा… मैं बाद में आऊंगी …पर क्यों मम्मी  , बाद में क्यों…? सब तो अभी जा रहे हैं ..!

          ए लड़के …तू जिद क्यों कर रहा है तू जा ना …इसके नसीब में ऐसा नहीं है ,  जा नव्या तू अंदर जा… अभी सामने मत आना , अशुभ होता है  !  सासू मां की कड़क आवाज से रिक्की सहम गया.. लगभग सिसकता हुआ बोला…. मम्मी सब तो जा रहे हैं फिर आप क्यों नहीं …उसका प्रश्न शायद सासू मां के कानों तक पहुंच गया था …इस बार थोड़ा समझाने के अंदाज में वो रिक्की से बोली… बेटा तेरी मां की माँग खाली है ना.. उसमें सिंदूर नहीं भरा है , तेरे पापा जो नहीं है  । 

          इस बार सासू मां भी दुखी नजर आ रही थी शायद एक बेटे के चले जाने के बाद दूसरे बेटे के शादी में कुछ अशुभ ना हो इस आशंका से वो डरी हुई थी ।

          बस यहीं से रिक्की के नन्हे मस्तिष्क में विचार आते… और मुझसे बोलता… मम्मी आप भी मांग में सिंदूर लगा लो ना  , बहुत सुंदर दिखोगी… मैंने उसे कई बार समझाया भी कि बेटा ये सिंदूर सिर्फ तेरे पापा ही मेरी मांग में भर सकते हैं ….जो अब इस दुनिया में हैं ही नहीं ….पर शायद वो इसे स्वीकार करना ही नहीं चाहता था 

समय बितता गया……….

……… लगभग 25 साल बाद……..

अरे… नव्या ने व्हाट्सएप में क्या भेजा है… नव्या ने शादी कर ली है ??  इस उम्र में शादी …?    प्रीति ने तुरंत फोन उठाया…. ये क्या देख रही हूं मैं नव्या.. इतनी छुपी रुस्तम निकलेगी तू , सपने में भी नहीं सोचा था तू तो मेरी सबसे पक्की सहेली थी ना फिर तूने मुझसे…. आगे प्रीति कुछ कह पाती , नव्या ने प्रीति की बात काटते हुए कहा …प्लीज मेरी भी बात सुनेगी…!

      हां भाई तुम नई नवेली दुल्हन जो बन गई हो अब तो तुम्हारी बात सुननी  ही पड़ेगी  । अपनी उत्सुकता को काबू में रखते हुए खुशी मिश्रित लहजे में प्रीति ने कहा ।

          कहां से शुरू करूं समझ नहीं आ रहा है… देख प्रीति तू जानती तो है , जब से विशाल मेरी जिंदगी से गए हैं बहुत अकेली रह गई हूं मैं …लगातार कठिनाइयों का सामना करते-करते रिक्की और रम्या को पढ़ाया लिखाया उस समय ये दोनों ही मेरी मंजिल थे… उस समय ही क्या अभी भी ये बच्चे ही तो मेरी मंजिल हैं 

           जब दोनों बच्चे पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़े हो गए और मैंने उनकी शादी कर दी ..यकीन मान प्रीति , मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सपना पूरा हो गया था …मैं बहुत खुश थी , रम्या भी अपने ससुराल में अपने परिवार में व्यस्त हो गई शायद मेरे लिए ये भी एक सुखद अनुभव था । जब बेटी अपने ससुराल की और वहां के सदस्यों की तारीफ करती थी ना प्रीति ..तो ऐसा लगता था जैसे मैंने बहुत बड़ी सफलता प्राप्त कर ली हो हालांकि वो भी समय-समय पर मेरा हाल-चाल लेती रहती है ।

         और इधर घर में रिक्की और बहू भी मेरी अच्छी तरह देखभाल करते थे , सच बताऊँ प्रीति… मुझे ना कभी-कभी लगता था कि.. मेरी वजह से बेटा बहू थोड़े बंधे हुए से रहते हैं… कहीं जाना हो तो मम्मी आप भी चलिए.. मैं कहती  भी..अरे मैं तुम दोनों के बीच में जाकर क्या करूंगी उनका जवाब होता आप अकेली यहां रहकर भी क्या करेंगी  ?

मतलब प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से मुझे लगने लगा था कि अब कहीं मैं एक बंधन या बोझ या जिम्मेदारी तो नहीं हो गई हूं ना बच्चों के लिए …नव्या अपनी बात बताए जा रही थी… प्रीति जो बड़े तन्मयता से उसकी बातें सुन रही थी अचानक बीच में बोल पड़ी …देख नव्या अभी तक तूने वही बताया है जो मुझे पहले से मालूम था …कोई नई बात तो बताया ही नहीं तुमने …मेरा मतलब तू किशोर जी से कब मिली कैसे तूने ये निर्णय लिया और क्यों लिया…. वगैरह-वगैरह ।

           हां प्रीति थोड़ा धैर्य तो रख … कुछ आगे पीछे का नहीं बताऊंगी तो तुझे पूरी वस्तुस्थिति समझ में कैसे आएगी …मेरी बात अब ध्यान से सुन नव्या ने अपनी बात जारी रखी…..

 कभी-कभी ना मैं बहुत अकेली हो जाया करती थी प्रति …बहुत ही अकेली सच बताऊँ…

”  जीवनसाथी के न होने का दर्द कोई नहीं जान बाँट सकता “

    जीवन के इस पड़ाव में शायद सबसे ज्यादा जरूरी होता है जीवनसाथी का… क्या है ना प्रीति..

” रिश्ता सिर्फ जिस्मानी ही नहीं होता बहुत सारी भावनाएं होती है जिसके लिए एक पार्टनर की जरूरत होती है जो मेरे भावनाओं , एहसास को समझ सके ” और फिर मैं भी तो खुलकर जीना चाहती थी , मुस्कुराना चाहती थी ,अपने ऊपर से बेचारी , अपशगुनी जैसे शब्दों का टैग हटाना चाहती थी शॉपिंग करना , घूमना – फिरना सब कुछ मुझे भी तो पसंद था ना…

       हम लोग सोशल मीडिया के माध्यम से मिले , फिर हमने काफी समय लिया एक दूसरे को समझने के लिए …किशोर जी की भी पत्नी का निधन हो चुका था उन्होंने भी अपने बच्चों की शादी कर दी थी ..वो भी सब कुछ होते हुए भी बहुत अकेले थे ।

      बस फिर क्या था …जैसे ही बच्चों को पता चला कि.. हमारी आपस में बातें होती है तो उनकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा । सच बताऊं प्रीति …शादी जैसे विषय का ख्याल भी बच्चों के मन में ही आया …एक दिन तो रिक्की वो 6 साल वाला बच्चा रिक्की बन गया था ….बिल्कुल उसी अंदाज में बोला… मम्मी आप किशोर अंकल से शादी कर लेंगी तो वो मेरे पापा बन जाएंगे और आपकी मांग में सिंदूर भी भर जाएगा ।

शायद बचपन में मेरे ऊपर परिवार और समाज द्वारा किया बर्ताव ने उसके मस्तिष्क पर गहरा छाप छोड़ रखा था ।

    जब बच्चों द्वारा हमारी शादी की योजना बनाई जा रही थी तो मैंने एक बहुत बड़ा प्रश्न बच्चों के समक्ष रखा.. इस उम्र में शादी… समाज क्या कहेगा..?

          इस पर बच्चों का जवाब था सारा समाज आप लोगों को आशीर्वाद देगा मम्मी एक नई जिंदगी के शुरुआत करने की ….क्योंकि वो समाज भी  पल-पल मरते , घूटते आपकी लाचारी को बारीकी से देखा है , देखा ही नहीं बल्कि रीति रिवाज की आड़ में ….कहते कहते अचानक बात मोड़ते हुए कहा… मम्मी फिर आप दोनों ही अकेले आप दोनों को एक दूसरे का साथ मिल जाएगा इसमें किसी प्रकार की कोई बुराई नहीं है ।

   हम दोनों और हमारे बच्चे इसी विषय पर सलाह मशविरा कर ही रहे थे तभी किशोर जी ने कहा… बच्चे ठीक कह रहे हैं नव्या …बस फिर क्या था …..ये सबसे पहला फोटो मैंने तुझे ही भेजा है प्रीति…. लंबे अंतराल के बाद हम दोनों बहुत खुश है प्रीति …और किशोर में मुझे विशाल नजर आते हैं ।

   ( स्वरचित  अप्रकाशित और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

   श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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