मानसी बुआ आज बहुत खुश थीं। चंदेरी साड़ी और बालों में गजरा लगाए वह पूरे हवेली में चक्कर लगा रही थीं। खुश होने का कारण भी था उनके बेटे की शादी जो तय हो गई थी। सगुन का दिन आज के लिए ही निकल आया था। लड़की वाले पंहुचने वाले थे।
इतने सालों के बाद घर में खुशी का मौका आया था। बुआ जिंदगी में आई अपनी अनमोल खुशी के हर पल को बांधकर रख लेना चाहती थीं। पूरे मनोयोग से लड़की वालों की खातिरदारी की तैयारी में लगी हुई थीं।
देखते-देखते चार -पांच गाड़ियां दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई। शायद मेहमान आ चुके थे। बुआ ने उनके के लिए तरह-तरह के पकवान बनवाये थे। कोई कमी न हो जाए इसके लिए वह सहायिका के साथ खुद भी किचन में घुसी थी।
लड़की वालो ने पकवानों को सराह -सराह कर जीभर खाया। तारीफ सुनकर बुआ खाने के अंत में अपने हाथों से बनाया गुलाब जामुन लेकर बैठक में जाने लगी जैसे ही किचन से निकली फुफा जी की कड़कती आवाज सुनकर ठिठक गईं।
वे बूआ को देखते ही दांत कूटते हुए बोले-“ तुमको अपने लोअर ग्रेड वाली आदतों से बाज नहीं आना है न , सारे मेहमान घर की मालकिन से मिलना चाहते हैं और यहां ये काम वाली बाई बनकर निहाल हुई जा रहीं हैं । मेरे सारे स्टेटस को चकनाचूर कर के रख दोगी क्या?”
उन्होंने बुआ के हाथ से गुलाब जामुन लेकर वही पटक दिया और आँख तरेर कर बोले-” जाओ और चिप टाइप की साड़ी बदलकर चुपचाप से बनारसी साड़ी पहनकर सलीके से बैठक में आओ। एक बात और कुछ भी पटर-पटर करने की कोशिश मत करना। वर्ना उन्हें समझने में
देर नहीं लगेगा कि तुम भी जाहिल खानदान से ही हो। “
सारे घर वाले समेत नौकर चाकर भी भौचक्के से देखते रह गये। फुफा जी की बात सुनकर बुआ की आँखें भर गईं। हिम्मत थी नहीं कि नजर उठाकर कुछ कहती।कभी प्रतिरोध किया नहीं था। मन में ही कहा “ये” एक मौका नहीं छोड़ते हैं मुझे बेइज्जत करने का न समय देखते हैं और ना जगह।
बुआ अपनी आखें पोछते हुए कमरे में चली गई। फूफा जी ने एक नौकर को बुलाया और जोर से फटकारते हुए सभी बिखरे गुलाब जामुन को उठा कर डस्टबीन में डाल देने के लिए कहा फिर पैर पटकते हुए मेहमानों के बीच बाहर बैठक में चले गए।
अगला भाग
“प्रतिरोध” ( भाग 2)- डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral stories in hindi
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर , बिहार