कुनाल दौड़ता हुआ आया ,दादू ये लो फूल ! हैप्पी प्रपोज डे दादू ! आई लव यू !
महावीर जी (कुनाल के दादू ) – ये क्या कर रहा हैँ तू ,मुझे फूल क्यूँ दे रहा हैँ ! लड़खड़ाती हुई आवाज में !
कुनाल – अरे दादू आप भी ना कुछ भी नहीं जानते ! आज प्रपोज डे जो हैँ ! मेरे स्कूल के दोस्त ने बताया ! हम जिस से बहुत प्यार करते हैँ ना आज के दिन उनसे आई लव यू कहते हैँ ! और आप और दादी ही तो तो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते हो और मैं आपसे ! मुझे मम्मा पापा की डांट से जो बचाते हो ! तभी मैं सामने वाले गार्डन से ये रेड रोज लेके आया हूँ ! देखो मेरे कांटा भी लग गया दादू !
महावीर जी – क्यूँ परेशान होता हैँ,,ला तेरी चोट ठीक करूँ ! क्या कहा तूने आज प्रपोज डे हैँ ! अभी अपनी दादी के पास मत जाना तू ! शाम को स्कूल से आकर दे देना रोज !मेरा कुनाल राजा बेटा हैँ!
बहलाकर कुनाल को स्कूल भेजकर महावीर जी कमला जी ( धर्मपत्नी ) के पास आये !
कमला जी कपड़े तह लगा रही थी ! महावीर जी पीछे हाथों में गुलाब का फूल लिए उनके चारों तरफ घूमते रहे !
कमला जी – एेजी ,,क्या कर रहे हो ! क्यूँ घूम रहे हो मेरे चारों तरफ ! ऐसे तो बिना लाठी के चला नहीं जाता ,आज बिना लाठी के ही ! ये हाथ क्यूँ स्कूल के बच्चों की तरह पीछे कर रखे हो !
महावीर जी – ओ री मेरी कमलो ,य़े ले गुलाब का फूल ! आज प्रपोज डे हैँ ,मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ ! वो क्या कहते हैँ अंग्रेजी में – आई लव यू !
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कमला जी (लजाते हुए ) – पगला गए हो क्या इस उम्र में ! जब फूल देने की उम्र थी तब दिया नहीं ! मैं तरसती रही कब मेरी और सखियों के पतियों की तरह आप मुझे फूल दो ! पर सारी उम्र बीत गयी इसी आस में ! अब तो 70 वर्ष की हो गयी मैं ! और तुम 75 साल के बुढ़ऊ !
महावीर जी – सही कह रही हैँ तू ,नौकरी ,बच्चों की परवरिश में कब बुढ़ापा आ गया पता ही नहीं चला ! तूने भी कभी किसी बात की शिकायत नहीं की ! संयुक्त परिवार की ज़िम्मेदारियां बखूबी निभायी तूने !
कमला जी – अब बस भी करो ,कुछ अलग नहीं किया मैने ! तुमसे प्यार ही इतना था मुझे ,ज़िम्मेदारियां तुम्हारे प्यार के आगे बहुत छोटी थी ! अब ये फूल मेरे बालों में लगा भी दो !
महावीर जी ने झुर्रियों वाले कांपते हाथों से कमला जी के सफेदी वाले बालों में गुलाब का फूल फंसा दिया !
कमला जी और महावीर जी एक दूसरे के हाथों को पकड़े बस भावुकता से देखते रहे ! आंसू स्वतह ही उनकी आँखों से लुढ़क गए !
एक निश्चल प्यार आज अपने भावों को शब्दों का रुप दे पाया !
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा