अस्पताल में बेड पर लेटी प्रज्ञा के आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। हाल ही में उसे ब्रेन ट्यूमर का पता चला जो कि बहुत ही क्रिटिकल स्टेज में था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था ज़िन्दगी ने एकबार फिर से उसे हाशिए पर लाकर पटक दिया हो।
“मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है? हमेशा मेरी किस्मत ही खराब होती है?” प्रज्ञा खुद से बुदबुदाए जा रही थी।
उसकी आँखों में अपने माता-पिता की यादें तैरने लगीं, जिन्हें उसने कभी देखा भी नहीं था।जिस अनाथ आश्रम में वह पली-बढ़ी वहाॅं के बच्चे और कर्मचारी ही उसका परिवार बन गए थे।
उसकी जिंदगी जैसे-तैसे गुजर ही रही थी की ऋतिक उसकी जिंदगी में खुशी की लहर बनकर आया।ऋतिक, एक पढ़ा-लिखा और सजीला युवक था जो अक्सर अनाथ आश्रम में बच्चों को पढ़ाने आता था। दोनों एक दूसरे को चाहने लगे और एकसाथ जीने-मरने का सपना देखने लगे थे।
एक दिन, ऋतिक प्रज्ञा को अपने घरवालों से मिलवाने ले गया। प्रज्ञा की खुशियों का ठिकाना नहीं था, लेकिन उसकी खुशियाँ बहुत जल्द ही कांच के टुकड़ों की तरह बिखर गईं। ऋतिक के माता-पिता ने प्रज्ञा को अपनाने से इनकार कर दिया।
“तुम्हारी और हमारे बेटे की शादी नामुमकिन है।कहाॅं हमारा बेटा और कहाॅं तुम अनाथ जिसके जाति-धर्म तक का कुछ पता नहीं।” ऋतिक के पिता ने कठोर स्वर में कहा।
प्रज्ञा का दिल टूट गया। ऋतिक ने भी हालातों के सामने घुटने टेक दिए और प्रज्ञा को छोड़ दिया। प्रज्ञा को समझ में नहीं आया कि उसके साथ ही यह क्यों हुआ! “जब ऋतिक को साथ ही नहीं निभाना था तो उसने प्यार की कसमें ही क्यों खाई।”
उस दिन प्रज्ञा ने खुद से एक वादा किया कि अब वह किसी पर निर्भर नहीं रहेगी।
उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक बढ़िया सी नौकरी करने लगी। नौकरी में वह जल्दी ही सफल हो गई और प्रमोशन भी मिला। लेकिन उसकी किस्मत ने फिर से उसे चुनौती दी। एक दिन प्रज्ञा को अचानक से चक्कर आया और वह बेहोश हो गई। अस्पताल में डॉक्टर ने बताया कि उसे ब्रेन ट्यूमर है।
“डॉक्टर, क्या मैं ठीक हो सकती हूँ?”
“यह गंभीर है, लेकिन हिम्मत और सही इलाज से कुछ भी मुमकिन है,” डॉक्टर ने सांत्वना दी।
“डॉक्टर तकरीबन इलाज में कितना खर्चा आएगा।” प्रज्ञा ने हिम्मत जुटाकर पूछा।
“तकरीबन 10-12 लाख।”
प्रज्ञा के पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। वह निराश हो चुकी थी¡; और सोच रही थी कि “उसकी किस्मत ने हमेशा उसके साथ ही ऐसा क्यों किया।”
तभी कभी अचानक डॉक्टर ने आकर कहा “प्रज्ञा कल तुम्हारा ऑपरेशन है।”
“लेकिन कैसे! ऑपरेशन कैसे हो सकता है? मैं ऑपरेशन का खर्च नहीं उठा सकती।”
“तुम्हें कुछ भी खर्चा नहीं करने की जरूरत नहीं है।सेठ मणिलाल अपनी माॅं की पुण्यतिथि पर कुछ जरूरतमंदों का मुफ्त ऑपरेशन करवा रहे हैं वही तुम्हारा ऑपरेशन करायेंगे।
यह सुनकर प्रज्ञा की ऑखों में आँसू आ गए। उसने सेठ जी का धन्यवाद किया। ऑपरेशन के बाद प्रज्ञा पूरी तरह स्वस्थ हो गई।
“यह किसी चमत्कार से कम नहीं है,” डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा।
अब प्रज्ञा ने अपने जीवन को नई दिशा देने का निर्णय लिया। उसने एक संस्था शुरू की जो अनाथ बच्चों और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों की मदद करती थी।
प्रज्ञा की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा बन गई जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे थे। उसकी कहानी ने साबित किया कि किस्मत चाहे जितनी भी बुरी हो, लेकिन हिम्मत और संघर्ष से उसे बदला जा सकता है।
हर अंधेरी रात के बाद एक उजाला सवेरा होता है।
श्वेता अग्रवाल
वाक्य कहानी प्रतियोगिता-#आखिर मेरे साथ ही यह सब क्यों होता है
शीर्षक- प्रेरणा