प्रेम पर इल्ज़ाम कैसे लगने दूं?? – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “मां,ओ मां!कहां हो तुम?”अर्घ की पुकार सुनकर मीना तेजी से रसोई से बाहर आई।”क्या हुआ ये?क्यों इतनी जोर से चिल्ला रहा है?उसने पूछा।

“मां,पूजा का बोनस मिलेगा मुझे इस बार।माना कम मिलेगा औरों से, क्योंकि ज्वाइनिंग देर से हुई थी।मिलेगा तो कम से कम।”अर्घ बहुत खुश होते हुए बोला।

मीना ने भी खुश होकर उससे कहा ” जाकर दादी को भी बता दे।बहुत खुश हो जाएंगी।अपनी ज़िंदगी के सत्तर -पचहत्तर साल खदान के माहौल में ही गुजारें हैं उन्होंने। पहले पति फोरमैन थे कॉलरी में,फिर बेटे की भी नौकरी यहीं लग गई थी। सरकारी नौकरी के सारे सुख उन्हें पता थे,साथ ही खदान में मिलने वाली अतिरिक्त सुविधाएं भी मालूम थी

उन्हें।बुढ़ापा भले गहरे तक पांव पसार चुका था उनके दांतों, बालों और झुर्रियों में,पर मजाल है जो याददाश्त ने साथ छोड़ा हो। “अर्घ भी हंसकर सहमत हुआ,और दादी को बता आया।दादी बल्लियों उछल पड़ीं और ढेरों आशीर्वाद दे डालीं नाती को।

अगली सुबह अर्घ नौकरी पर जाने के लिए तैयार हो रहा था,तब मीना ने उससे कहा”देख,पापा को गए ढाई साल हो रहें हैं।दो साल तो चले गए तुझे नौकरी मिलने में।पापा जब तक जिंदा थे,पूरी बोनस तुम दोनों भाई बहन पर और अपने माता -पिता मुझपर ही खर्च कर देते थे।अपने लिए कभी एक मंहगी घड़ी भी नहीं ली।कहते थे ये बोनस परिवार को साल भर की खुशियां देने के लिए ही मिलता है मैडम।इसमें कंजूसी करने के लिए ना बोला

करो।अब तुझे पहली बोनस मिली है,तो अपने लिए और बहन के लिए कुछ सोने का ले ले।”उसने हंसकर कहा “अरे मां,अब तुम्हारे बेटे को इतना भी नहीं मिला कि जेवरात खरीद सके।बहन के लिए मैं अगले साल पूरे गहने बनवा दूंगा।तुम बस मात्रा बता देना,बाकी मैं खरीद लूंगा।”

मीना ने चिढ़ाते हुए कहा”देख,जितना मैं बेटी को दूंगी,उतना बहू को भी देना है मुझे।तू मना नहीं करेगा मुझे।”

“ठीक है बाबा,अगले साल जो तुम्हारे मन में हो ले लेना।”एक समझदार और जिम्मेदार पुरुष को देख पाई थी मीना अपने बेटे में।उसने फिर कहा “ठीक है अभी तू अपने लिए ही कुछ अच्छी सी अंगूठी ही खरीद लें,या ब्रेसलेट।”

“नहीं मां,मैं इस पैसे से सबसे कीमती चीज़ खरीदना चाहता हूं।”

“आखिर क्या खरीदना चाहता है?खुलकर बता न मुझे।”मीना ने मां होने का रौब दिखाया।

अर्घ ने बड़ी सहजता से कहा”मां,तुम्हारे पास तो मैं हूं ना,पर दादी के सारे निकटतम के पुरुष संबंधी जा चुके हैं।उनके पिता,पति और जवान बेटा(पापा)ईश्वर के पास पहुंच गएं हैं।अब वे बहुत मिस करती हैं उन्हें।उनकी सारी आशाएं और उम्मीद हम से ही तो जिंदा है।मैं सोच रहा हूं कि उनके लिए क्या खरीदूं?

“बेटे की बात सुनकर मीना ने उसे दादी के लिए, खरीदे जा सकने वाली चीजों के बारे में बताना शुरू किया तो उसने कहा “शाम को तैयार हो जाना ,दादी को भी तैयार कर लेना।हम बाहर चलेंगे।”

शाम को मीना ,सास के साथ तैयार होकर बेटे की खरीददारी देखने जा रही थी और सोच रही थी कि पता नहीं क्या खरीदेगा?तभी कार को बेटे ने आंखों के डॉक्टर की क्लीनिक के सामने खड़ी की।मीना समझ गई थी अब नाती क्या खरीदने वाला है।सास भी भौंचक्की होकर देख रही थी। डॉक्टर से मिलकर दादी की आंखों का टेस्ट करवाया अर्घ ने। डॉक्टर ने जिस मोतियाबिंद के ऑपरेशन की बात की वह तो आठ साल पहले ही कंपनी के

अस्पताल में बता दी थी डॉक्टर ने।ऐसा संयोग ही नहीं बन पाया कि ऑपरेशन करवाया जा सके।एक बार तो ऑपरेशन टेबिल से उठाना पड़ा था उनको।पलकें स्थिर ही नहीं हो पा रही थीं।फिर बेटे की लंबी बीमारी,ख़ुद की हिप की हड्डी का ऑपरेशन लगा ही रहा। मोतियाबिंद को समय ही नहीं मिला अपना अस्तित्व दिखाने का।अब जब कुछ हद तक स्टिक के सहारे चल पा रही थीं।

अखबार नियमित पढ़ती थीं वो,एक भी लाइन छोड़े।अब उन्हें बांयीं आंख में से पानी निकलने और दर्द का अहसास होने लगा था।एक दिन अभी बातों-बातों में ही नाती से कहा था सोते समय”बाबू,बांयीं आंख में बहुत तकलीफ़ होती है पढ़ते समय।धुंधला दिखता है।”

बचपन से दादी के हांथों पला और उनकी प्रेम की छांव में बड़ा , अर्घ बहुत दिनों से चाह रहा था दादी की आंखों का ऑपरेशन करवाना। क्लीनिक में ही वह बोला”मां, दुर्गा मां तो ममता‌ का प्रतीक होतीं हैं।हम उनकी‌आराधना -अर्चना कितने‌ विश्वास से करतें‌ हैं।एक मां तो घर पर भी है ना,

उनकी सबसे मनपसंद चीज उन्हें देना चाहता हूं मैं।डॉक्टर से तारीख ले‌लेना तुम अभी ही कराएंगें दादी का ऑपरेशन।””मीना ने खुश होकर कहा भी ,कि ठीक है,पर वो डॉक्टर साहब बहुत सारे टेस्ट लिख दिए।शुगर -बी पी बढ़ा हुआ था।एक हफ्ते की दवाई शुरू की गई।यहां षष्ठी से हमारी दुर्गा पूजा भी शुरू होना था। अर्घ को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा।वह अपने निर्णय से थोड़ा भी नहीं बदला।

एक हफ्ते के बाद ऑपरेशन के लिए नर्स के साथ खुद दादी को पकड़ कर लेकर गया।बाद में तीन घंटे वहीं रुककर डॉक्टर से दवाई वगैरह समझ कर हम लौट रहे थे।दादी आज वाकई में बहुत खुश थी,अपने मोतियाबिंद के चंगुल से छूटकर।

रात में मीना ने बेटे के चेहरे में परम संतोष देख पाया।आज उसका पुण्य अर्जन हुआ था।

दादी को सुलाकर अर्घ मां के पास बैठकर कहने लगा”पता है मां!!!दिन भर की आपाधापी में मन से निकल जाता  था दादी की आंखों के ऑपरेशन की बात।रोज़ रात को उनकी बेजुबान आंखें बहुत कुछ कह देतीं ।मुझे अंदर से अच्छा नहीं लग रहा था।उनके लिए इससे अच्छा और क्या ही खरीदता मैं।बचपन से नि: स्वार्थ प्रेम देकर पाला है इन्होंने।रातों को उठ-उठ कर मेरी रजाई और कंबल ठीक करती रहीं।

मेरी एक-एक चीजों का ख्याल रखती हैं वो।आज अगर उनका बेटा जिंदा होता तो कुछ मांग भी लेती ,पति भी नहीं इनके।तो  सारी  उम्मीदों को तोड़कर उनके मन में विश्वास  जगाना चाहता था।।‌‍रिश्तेदार हमेशा चिढ़ाते थे कि नाती को सर पर चढ़ाया है,तब वो बड़े गर्व से कहतीं”मेरा सूद है ये,मेरा वंशधर।मेरी काया को बैकुंठ पार यही लगाएगा,देखना तुम सब।

मैं अपने मन में ये कुंठा लेकर जीना नहीं चाहता था, इसलिए ऑपरेशन  करवा लिया अपने बोनस से।अपनी छाती से लगाकर पाला है हमें, रात-रात भर अपनी  लोरियां सुनाती रहीं हमें।आपसे ज्यादा तो दादी ही मां है हमारी।इस बार भी ऑपरेशन नहीं हो पाता तो उनका निश्छल प्रेम कलंकित हो जाता।मैं प्रेम पर इल्ज़ाम कैसे लगने देता मां?”

अर्घ की बात सुनकर मीना अब बोली”नहीं रे ,तूने दादी की परवरिश और प्रेम दोनों पर इल्ज़ाम लगाने से बचा लिया।बेटे की जिम्मेदारी के साथ-साथ तूने नाती होने का फर्ज निभा दिया।मेरे हिस्से के सारे पुण्य मैं आज तुझे सौंपती हूं।दिल से तुझे आशीर्वाद देती हूं,बहुत सुखी रहना बेटा।

शुभ्रा बैनर्जी

 

 

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