प्रेम – अंजू खरबंदा  

शादी को पांचवा बरस हो चला था पर वैशाली को माँ बनने का सौभाग्य न मिला था । सास ससुर परिवार वाले  रह रहकर तानों के बाण चलाते जिससे छलनी हो होकर बिन पानी मीन की तरह तड़प उठती वैशाली। 

उस की ये हालत देख विवेक बहुत दुखी होता पर माता पिता के आगे मुंह खोलने की हिम्मत न जुटा पाता । उस दिन तो हद ही हो गई जब लीला मौसी विवेक के लिये रिश्ता लेकर आ गई । 

विवेक भुनभुनाता हुआ माँ के पास आकर बोला- “माँ ये क्या तमाशा है!”

“क्या तमाशा है! पांच बरस हो गए इन्तज़ार करते! मुझसे और सब्र नही होता ! मैं चाहती हूँ तू दूसरी शादी कर ले!” मां ने दो टूक फैसला सुनाते हुए कहा ।

“और वैशाली !”

“तो उसे कौन से घर से निकला जा रहा है! रहे यहीं जब तक जी चाहे !”

“मां आप इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हो… और मान लो दूसरी शादी से भी सन्तान न हुई तो…! तो फिर तीसरी शादी !




मां ने अग्नेय नेत्रों से विवेक की ओर देखा और झन्नाटेदार थप्पड़ उसके मुंह पर लगाते हुए कहा – “तुझे शरम नही आती ऐसा सोचते कहते !”

“शरम आती है माँ… बहुत शरम आती है ! इस बात की शरम कि मैं आज तक सोया क्यूँ था! सही फैसला क्यूँ न ले पाया था!”\

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विवेक ने उसी समय अपने दोस्त धीरज को फोन मिलाया और उससे बात करते करते तेजी से घर से निकल गया । 

शाम होने को आई पर विवेक वापस न लौटा। फोन भी स्विच ऑफ जा रहा था । माँ जार जार रोए जा रही थी और वैशाली को कोसे जा रही थी । 

अचानक दरवाजा खुला!

“अरे विवेक तू आ गया बेटा! आज तो तूने हद कर दी, कहाँ चला गया था और…और ये कौन है तेरी गोद में !” माँ एक ही सांस में पूछती चली गई ।

“माँ! कब से बच्चा गोद लेने का सोच रहा था पर आपको कहने की हिम्मत न होती थी । पर आज की घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया । आपने एक बार भी वैशाली के बारे में नही सोचा । वह मेरी पत्नी है मेरा प्रेम… मेरी ताकत है उसके बिना मैं अधूरा हूँ । माँ शादी के सात वचनों मे एक वचन पत्नी का साथ देना भी होता है । क्या उसने कभी सोचा कि वह दूसरी शादी कर ले तो शायद माँ बन सके !”

कोने में खड़ी वैशाली ने अश्रुपूर्ण आंखों से विवेक की ओर देखा जहाँ उसे अपने लिये मान सम्मान व प्रेम की गंगा बहती दिखलाई पङी । 

विवेक ने अपनी गोद से बच्चा माँ को देते हुए कहा – “माँ लो अपना प्रेम और मेरा प्रेम मेरे पास ही रहने दो !”

स्वरचित व मौलिक

#प्रेम 

अंजू खरबन्दा 

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