“सुनिए चाय पिएंगे क्या?”, प्रिया ने दोनों के बीच में पसरी चुप्पी को तोड़ने की कोशिश करी।
“अभी रहने दो थोड़ी देर में देखेंगे।”, आकाश ने खुद को संतुलित करते हुए जवाब दिया, कहीं उसके गले की भर्राहट प्रिया को सुनाई ना दे जाए।
थोड़ी देर बाद आकाश को ऐसा लगा कि रसोई से कुछ सुबकने की हल्की आवाज आ रही है।
“क्या हुआ प्रिया? क्या कर रही हो?”
“कुछ नहीं शाम के खाने के लिए प्याज काट रही थी। वह आंखों में लग गया जरा।”
“क्यों इतना काम कर रही हो? कल ड्यूटी भी जाना है थोड़ा आराम कर लो।”
“नहीं मैंने कल की छुट्टी रखी हुई है।”
कल की छुट्टी रखी है, इसका मतलब प्रिया खुद की भावनाओं पर कंट्रोल नहीं कर पा रही है। आकाश को चिंता होने लगी वह तो रात में नाइट ड्यूटी पर चला जाएगा कहीं प्रिया रात में ज्यादा परेशान ना हो रोए न।
“सुनो प्रिया चाय बना लो आओ यूट्यूब पर ‘नदिया के पार’ फिल्म देखते हैं।”
“अच्छा जी! ठीक है; अभी बनाती हूं।”
चाय पीते फिल्म देखते दोनों चुप ही बैठे हैं शायद बोलने का कुछ मन ही नहीं है दोनों में से किसी का।
“प्रिया; एक बात पूछनी थी?”, आकाश ने पहल करी।
“जी पूछिए क्या पूछ रहे हैं?”, प्रिया ने एकदम नॉर्मल आवाज में कहा।
दोनों ही नॉर्मल ना होते हुए भी बस सामान्य दिखने की भरसक कोशिश कर रहे हैं।
“यह बताओ किस ग्रंथ में लिखा है कि पुरुषों का रोना वर्जित है।”
“अरे यह कैसी बात कर रहे हैं? वर्जित क्यों होगा। वह भी तो इंसान ही होते हैं, उनके भी उतनी ही भावनाएं होती हैं।”
“तो आओ ना हम दोनों भी जी भर के रो लें, इकलौती बेटी दामाद अमेरिका चले गए तो क्या हुआ? हम दोनों तो है ना।”
प्रिया लपक के आकाश के गले लग गई और उसका पूरा कंधा भिगो दिया और आकाश अपने आंसू गले मे ही गटक गया क्योंकि लड़के नही रोते।
शालिनी दीक्षित
स्वरचित/ मौलिक