Moral stories in hindi : “साहब!मेरे बच्चे की सहायता करना,मेरे बाद इसका इस दुनिया में कोई नहीं है!मैंने भी हमेशा आपके परिवार को ही अपना समझा है,मेरे मरने के बाद इसका क्या होगा,सोचकर मेरा दम निकला जा रहा है”
हाथ जोड़कर रो रोकर ड्राइवर रामसिंह अपने साहब महेश जी से विनती कर रहा था!
महेश जी ने वादा किया कि वे रमेश का पूरा ख्याल रखेंगे!
रामसिंह पिछले कई वर्षों से महेश जी की गाड़ी चला रहा था!उसका इकलौता बेटा रमेश दस साल का था!
महेश जी का एक बेटा राहुल और बेटी सना क्रमशः दस और आठ साल के थे!
रामसिंह ने बेटे को सरकारी स्कूल में डाल रखा था!उसकी सारी कमाई पत्नि के इलाज में खर्च होती!
स्कूल के बाद रमेश अक्सर रामसिंह के साथ महेश जी के घर चला आता और राहुल और सना के साथ खेलता- पढ़ाई करता!
रमेश महेश जी के घर के छोटे छोटे काम खुशी खुशी कर देता!महेश जी की पत्नि सुमन भी रमेश को बहुत पसंद करती!
उसे अक्सर खाने पीने को देती तथा राहुल के कपड़े,बैग वगैरह-वगैरह भी दे देती!
होली दीवाली वे रमेश को नये कपड़े भी बनवा देते!
सना राहुल की तरह रमेश को भी राखी बांधती ,भाई दूज का टीका करती!रमेश भी अपनी सामर्थानुसार कभी चाकलेट तो कभी टाॅफी ला देता!
तीनों बच्चे खूब हिलमिल कर रहते!
रामसिंह के मरने के बाद महेश जी ने वायदे के अनुसार रमेश का एडमिशन एक अच्छे स्कूल में करा दिया !रमेश पढ़ाई में होशियार था!राहुल और सना को किसी सब्जेक्ट में दिक्कत आती तो वे रमेश से ही पूछते!
समय बीतता गया!
रमेश और राहुल ने दसवीं पास कर ली!राहुल को महेश जी ने बाहर होस्टल में भेज दिया!
रमेश और राहुल पंद्रह साल के और सना ने तेरहवें साल में कदम रखा!
तीनों बच्चे उम्र के उस पड़ाव पर थे जहाँ मासूम बचपन विदा हो रहा था,यौवन अंगड़ाई ले रहा था!उनके तन बदन पर
युवावस्था की दस्तक स्पष्ट दिखाई पड़ने लगी थी!
यह ऐसी उम्र थी जहाँ ऑपोसिट सेक्स के प्रति आकर्षण स्वाभाविक होता है!
राहुल के होस्टल चले जाने के बाद सना और रमेश होमवर्क साथ साथ करते!
महेश और सुमन को कोई शक शुबहा नहीं था कि रमेश और सना के बीच कुछ गलत हो सकता है!
पर एक दिन महेश ने देखा पढ़ते पढ़ते एकाएक रमेश ने सना का हाथ पकड़कर उसको
चूमने की कोशिश की ,महेश जी के पैरों तले जमीन खिसक गई! गुस्से ने तनतनाते हुए उन्होंने आव देखा न ताव रमेश की गर्दन पकड़कर उसे लात घूंसे से पीट-पीटकर चिल्लाकर कहा”बेहया,बेशरम,बदनीयत! तेरी इतनी जुर्रत कि मेरी बेटी पर हाथ डाला,नमकहराम!जिस थाली में खाया उसी में छेद कर दिया, तू तो बेहद अहसान फरामोश निकला जिस घर ने तुझे आसरा दिया उसी घर में डाका डाला! लोग तो तेरे बाप की नमकहलाली की कसमें आजतक खाते हैं!और तू? अरे सना तो तुझे भाई मानती थी!छिः उसी के साथ?
निकल जा हमारे घर से और जाकर चुल्लू भर पानी में डूब मर!”
सुमन भी गुस्से से बोली”हमारे लाड-प्यार का ये सिला दिया,अपने बेटे जैसा माना तुझे!
आज तूने मेरी ममता को झुठलाया है!तू तो आस्तीन का सांप निकला ,भूलकर भी अपनी शक्ल मत दिखाना”!
महेश जी तो उसे पुलिस के हवाले करना चाहते थे फिर बदनामी न हो यही सोचकर चुप रह गए! रमेश को धक्के मारकर बाहर निकाल दिया!
रात के बारह बजे अचानक घंटी बजी,दरवाजा खोलने पर पुलिस वाले को देखकर पूछा “मामला क्या है”
पुलिस वाले ने एक बैग महेश जी को दिखाया “क्या इसे पहचानते हैं” महेश जी से पहले ही सुमन बोल पड़ी “हां हां ये तो रमेश का हैं मैनें ही उसे उसके जन्मदिन पर दिया था”
पुलिस वाले ने बताया हमें रेलवे ट्रैक पर क्षत विक्षत एक शव मिला है,उसके पास से यह बैग बरामद हुआ है, इसमें आपका नाम पता लिखा है!शिनाख्त कर लें!
सुमन और महेश जल्दी जल्दी उस जगह पहुंचे !
सुमन ने कहा “ये रमेश ही है ये टी शर्ट राहुल की है उसे बहुत पसंद थी इसलिए राहुल ने उसे दे दी थी”!
बैग खोलकर देखा रमेश की एक चिट्ठी थी जो उसने सुमन और महेश जी के लिए लिखी थी!
आदरणीय पापा-मां(वह उन्हें यही कहता था)
मैं आपसे माफ़ी मांगने के लायक भी नहीं हूं!मेरी ये गलती नहीं गुनाह है जो काबिले माफ़ी नहीं है!मेरे इस जुर्म की कोई सजा नहीं!मैं तो डूबकर ही मरना चाहता था पर पहले इन हाथों को सजा देना चाहता था! जो मेरी प्यारी और मासूम बहन की तरफ बढ़े थे,जिन हाथों से बहन की रक्षा करनी थी वही उसकी तरफ गलत इरादे से बढे,धिक्कार है मुझपर ?पता नहीं वह कौन सा मनहूस क्षण था जो जवानी के आवेश में मैं यह जघन्य कार्य कर बैठा!
मुझे जीने का कोई हक नहीं क्योंकि जिंदा रहकर यह अपराध मैं भुला नहीं सकूंगा!
आप दोनों के प्यार को मैने बहुत ठेस पहुंचाई है,उसे छला है!फिर भी हाथ जोड़कर पैर पकड़कर आपसे माफ़ी मांगता हूं!
मेरी प्यारी बहना को कह देना मेरी राखी हर साल राहुल के हाथ में बांध दे!मैं तो उसे मुँह दिखाने के काबिल भी नहीं रहा!
आपका अभागा रमेश !
बैग खोलकर देखा तो उसमें सना द्वारा अबतक बांधी राखियां और राहुल,सना और रमेश की बचपन से लेकर अब तक की फोटो रखी थी!
महेश और सुमन चिट्ठी पढ़कर
अपनी आखों में आए आँसुओं को रोक न पाए!
रमेश के शव का उन्होंने दाह कर दिया!ये सोचकर कि उसे अपनी गलती का एहसास तो हो गया था और कोई उसे लावारिस न समझे!
कुमुद मोहन
#डूब मरना(बहुत लज्जित होना)