प्रायश्चित – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

इतने बड़े वर्मा निवास के पीछे वाले कमरे में राजेश जी उपेक्षित से अपने बिस्तर पर अकेले ही लेटे हुए थे। डॉक्टरी रिपोर्ट के अनुसार अब उनको डायलिसिस के लिए प्रत्येक  15 दिन में जाना पड़ेगा। रोज सुबह एक अटेंडेंट उनको नित्यकर्म से निवृत करवाकर रात के लिए डायपर बांधकर चला जाता था।

आज जब हमेशा आपस में लड़ने वाले  उनके दोनों बेटे इकट्ठे होकर उनके कमरे में आए तो  राजेश जी को लगा कि वह उनका हाल पूछने आए हैं अन्यथा तो वह उपेक्षित से अपने कमरे में ही रहते थे और उनके बच्चे अपने परिवारों में व्यस्त रहते थे।  उनके दोनों बेटों ने घर को बेचने के लिए कागज बनवाकर उनपर साइन करने के लिए उन्हें  कहा।

वर्मा जी ने बिस्तर पर ही अपनी कमजोर आवाज में कहा मैं कुछ ही दिनों का तो मेहमान हूं मेरे बाद तो सब कुछ तुमने लेना ही है, तब तक क्या तुम इंतजार नहीं कर सकते? नहीं। हमें जरूरत तो पैसों की अभी है, हम अलग-अलग फ्लैट लेंगे। ऐसा कहते हुए दोनों बेटे कमरे से बाहर निकल गए। 

   उन्होंने जैसा कर वहीं उनके सामने आ रहा‌ था। वर्मा जी अपनी पुरानी यादों में खो गए। हरियाणा के सुदूर ग्राम में रहने वाले उनके परिवार में उनका छोटा भाई जतिन और वह सब बड़े प्रेम से रहते थे। उनके पिताजी ने  राजेश के दसवीं पास करने के बाद उसे शहर में आगे की पढ़ाई करने के लिए भेज दिया। शहर में रहने के बाद गांव जाते तो उनका मन गांव में नहीं ही लगता था।

स्कूल कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद दिल्ली में ही म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में  ही उनकी सरकारी नौकरी भी लग गई थी और उनका विवाह भी हो गया था उनका छोटा भाई जतिन पढ़ाई में इतना होशियार नहीं था वह पिता के साथ खेती-बाड़ी में ही लगा रहता था। सरकार की ओर से जब उनके खेत एक्वायर होने का टाइम आया

तो वर्मा जी अपने गांव गए। तब तक उनके दो पुत्र भी तब तक हो चुके थे। गांव जाने के बाद जब उन्होंने देखा कि सरकार की तरफ से उनके पिता को उनकी जमीन की एवज में काफी पैसों का चेक मिला है और उनके पिताजी ने वर्मा जी के पढ़े लिखे होने के कारण उनको ही पैसों का हिसाब किताब संभालने को कहा

तो वर्मा जी ने उन पैसों में से अधिकतम पैसे अपने नाम पर अपने अकाउंट में जमा करवा कर अपने पिताजी को कहा कि मुझे शहर में एक मकान खरीदना है इसलिए मैंने अपना हिस्सा पहले ही ले लिया आप छोटे भाई को यह गांव का घर दे देना। हालांकि पिताजी माताजी ने बहुत भला बुरा भी कहा पर उसे समय उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा

और उन्होंने दिल्ली में आकर 500 वर्ग मीटर की जमीन खरीद ली थी। बाकि पब्लिक डीलिंग में होने के कारण वह रिश्वत लेने से भी पीछे नहीं हटते थे उन्होंने दो मंजिल का अपना मकान भी बना लिया था। उनकी पत्नी के पास भी दिनों दिन गहने बढ़ते ही जा रहे थे। 

     उधर गांव में छोटा भाई जतिन भी रूठकर अपनी पत्नी के भाई के पास जो कि दुबई में रहता था, वहीं अपने परिवार को लेकर चला गया था। माता और पिताजी गांव में अकेले ही रह गए थे। हालांकि वर्मा जी एक दो बार उनसे मिलने भी गए थे परंतु गुस्से और दुख में उनके पिताजी और माताजी उनसे बात ही नहीं करते थे।

उसके पश्चात वह माता जी के मरने पर भी अकेले ही गए थे। माता जी की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने पिताजी को शहर में लाने की कोशिश भी करी परंतु उनके पिताजी ने स्पष्ट रूप से उनके साथ आने को मना कर दिया।

जतिन तो उसके बाद शायद कभी गांव आया ही नहीं। उसे हमेशा यही लगता था कि धोखा केवल उनके साथ उनके भाई ने नहीं अपितु उसके माता-पिता भी बड़े भैया राजेश के साथ मिले हुए थे। 

       पिताजी के मरने की खबर सुनकर भी वह गांव में गए और गांव के घर पर ताला लगा आए थे। गांव का घर क्योंकि जतिन के नाम पर था इसलिए वह उसे बेच नहीं पाए। तब तक वर्मा जी के दोनों बेटों का भी विवाह हो चुका था। विवाह होने के उपरांत दोनों भाई भी ऊपर नीचे रहने के बावजूद भी हर समय लड़ते ही रहते थे।

     वर्मा जी भी सेवानिवृत हो चुके थे और कुछ समय पश्चात वर्मा जी की पत्नी गरिमा का भी एक बार बी.पी अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाने के कारण अचानक से ब्रेन हेमरेज हो गया था। अस्पताल में ही उन्होंने भी दम तोड़ दिया था घर आने पर कुछ समय बाद जब उन्होंने अपनी पत्नी गरिमा की अलमारी खोलकर कुछ देखना चाहा

तो उन्होंने पाया वहां पर उनकी पत्नी के कोई भी गहने नहीं रखे थे। बेटों से पूछने पर उन्होंने कहा कि सारे गहने मां घर में ही रखती थी जब आप मां को लेकर अस्पताल में रह रहे थे

तब उन गहनों को उनकी पत्नियों ने आपस में बांट भी लिए और संभाल भी लिए। वर्मा जी के लिए यह बहुत बड़ा मानसिक आघात था। वह चाह कर भी चिल्ला नहीं पाए उन्होंने अपने बच्चों को यही तो संस्कार दिए थे। 

     धीरे-धीरे बच्चे अपने में व्यस्त हो गए और वह अकेले होते गए दिल की बीमारी, ब्लड प्रेशर ,शुगर , गठिया इन सब बीमारियों ने तो उन्हें घेर ही लिया था ।अब कुछ समय से तो उनकी किडनियों ने भी लगभग काम करना बंद ही कर दिया था। एक बार डायलिसिस जो शुरू हुआ तो अब हर 15 दिन बाद डायलिसिस करने की नौबत आ गई थी।

यह तो शुक्र था कि उनकी सरकारी नौकरी के कारण उनका अस्पताल में इलाज कैशलेस होता था अन्यथा तो —–ऐसी किसी कल्पना से भी वह सिहर उठते। उनकी पेंशन निकालने के लिए भी एटीएम कार्ड उनके पुत्रों के पास ही रहता था और उनके ख्याल से अब पिताजी को पैसों की जरूरत क्या है? वैसे भी यह भी सत्य था कि अब वह उठकर कहीं पर भी जाने में असमर्थ ही थे। 

        आज जब उनके दोनों बेटों ने उन्हें जब मकान बेचने के कागजों पर साइन करने को कहा तो अब उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उसके बाद वह किस बेटे के पास कहां कैसे और किस हाल में रहेंगे? रह-रह कर उन्हें यही तो ख्याल आ रहा था कि उनके पिताजी की तो कोई पेंशन भी नहीं थी खेत भी बिक लिए थे।

भाई भी चला गया था न जाने उन्होंने अपना समय कैसे निकाला होगा?  सच ही है कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता । वह तो उन्हें भुगतने ही पड़ेंगे। उनकी आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे। वह किसी भी हालत के लिए अपने आप को तैयार कर रहे थे और परमात्मा से क्षमायाचना कर रहे थे। 

मधु वशिष्ठ फरीदाबाद हरियाणा।

#कुछ गुनाहों का प्रायश्चित नहीं होता#

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