वो मेरी प्रतिष्ठा मिट्टी मे मिला देगा – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : “तुम्हारा लाडला तो मेरा नाम डुबोने पर लगा है, छोटा होने का लाभ लेता है” प्रशासनिक अधिकारी वीरप्रताप शाम की चाय पीते हुए अपनी अर्धांगिनी से कह रहे थे।

“ऐसा क्या कर दिया वीर ने”…सुलोचना ने पूछा।

“सुना नहीं तुमने, एग्रीकल्चर करेगा और गाँव जाकर लोगों को जागरूक करेगा। प्रताप को देखो बिना हील हुज्जत के उसने तैयारी की और अब ट्रेनिंग कर मेरी तरह प्रशासनिक अधिकारी बन जाएगा”…. वीरप्रताप गर्व से कहते हैं।

“अपनी अपनी पसंद है। करेंगे तो दोनों समाज सेवा ही न”, करने दीजिए जो चाहता है और ये आपने उसके साथ जो अबोला किया हुआ है, वो बिल्कुल गलत है। जिस भी क्षेत्र में जाए, हमें उसका साथ देना चाहिए”…सुलोचना वहाॅं खड़े अर्दली को ट्रे ले जाने का इशारा करती हुई वीरप्रताप से कहती है।

“तुम समझती नहीं हो सुलोचना जो तुम्हारा बेटा करना चाहता है ना, उसमें न तो करियर है, न ही रूतबा और शान। तुम समझाओ उसे”… वीरप्रताप खड़े होते हुए कहते हैं।

“मुझे तो लगता है जब तक वो मेरी प्रतिष्ठा पर पूरी तरह बट्टा नहीं लगा देगा, उसे शांति नहीं मिलेगी”…गुस्से भरी आवाज में कहते हुए वीरप्रताप पग बढ़ाते हुए लॉन से घर की ओर बढ़ गए।

“सुनिए अब आप भी सेवानिवृत्त हो गए हैं, कुछ दिन गाॅंव चले वीरू के पास। उसके गृहप्रवेश पर भी आप नहीं गए, ऐसा भी क्या गुस्सा, आखिर ये अबोला कब तक चलेगा”…सुलोचना वीरप्रताप से इसरार करते हुए कहती है।

नहीं हरगिज नहीं, उस नालायक को मेरी इज्जत की जरा भी परवाह नहीं थी। एक प्रशासनिक अधिकारी का बेटा किसानी कर रहा है, सोचना भी मत सुलोचना”…वीरप्रताप ने पत्नी की बात सिरे से ही नकार दिया।

“ऐसा अभिमान भी ठीक नहीं है।एक बार चल कर देख लीजिए आपका नाम डुबोने वाले बेटे की वहां कितनी इज्ज़त है। मेरी अंतिम इच्छा समझ कर चल लीजिए। जब तब तबियत खराब ही रहती है”…

सुलोचना की यह बात वीरप्रताप नकार नहीं सके लेकिन गाॅंव में वीर के साथ रहते हुए भी वीरप्रताप उससे एक शब्द नहीं बोल रहे थे लेकिन वो देख रहे थे की अपने गाॅंव के ही नहीं उस क्षेत्र के लगभग सभी गाॅंव के लोग और ऑफिसर्स भी वीर की सलाह लेने आते रहते थे।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

आइसक्रीम – अंकित चहल ‘विशेष’

वीर के हर काम के लिए सारे लोग तत्पर रहते थे। वीर का बहुत ही मान सम्मान और अदब करते थे। मन ही मन अब वो मानने लगे थे सबके अपने अपने कार्यक्षेत्र हैं, सबकी अपनी अपनी पसंद है।

बेटा वीर मुझे माफ कर दो, मुझे लोग एक प्रशासनिक अधिकारी होने के कारण सम्मान देते थे। लेकिन तुम्हें जो सम्मान तुम्हारे विचारों के कारण मिल रहा है, उसे देख मैं बहुत गर्व का अनुभव कर रहा हूॅं। यदि मैं आज ये नहीं बोलता तो अंदर अंदर घुटता रहता।

तुम्हारी माॅं सही कहती है शुद्ध हृदय से किया गया कार्य बिना स्वार्थ का मान दिलाता है, जो उसके वीरू को मिल रहा है”…बोलते बोलते वीरप्रताप की आवाज खुशी से भीगने लगी थी।

आरती झा आद्या

दिल्ली

error: Content is Copyright protected !!