गणपति बप्पा मोरिया….बप्पा को अपने हाथों में अपने कंधों में उठाए स्थापना के लिए घर ले जाते उत्साही भक्तों की बुलंद आवाजे आसमान छू रही थीं पटाखों की तेज आवाजें कान के पर्दे फाड़े दे रहीं थीं उमड़ता हुआ जनसमुदाय विशाल सड़कों को संकरी किए दे रहा था…।
लेकिन कैब में बैठे अविनाश के कानों को तो जैसे ये शोर स्पर्श ही नही कर रहा था उसके कानो में तो केवल एक ही आवाज सुनाई दे रही थी बेटा तू कब आयेगा..!!
अपनी मां के इस प्रश्न के उत्तर में वह पिछले पांच सात सालों से यही जवाब देता आ रहा था”… बस मां अगले महीने आ रहा हूं..!!
इन पांच सात सालों में एक बार भी अपनी मां पिता के पास जाने का समय नही निकाल पाया था वह। मां विशाखा कलप उठतीं थीं अविनाश से मिलने के लिए पिता अक्सर वीडियो कॉल के लिए आग्रह भी करते थे लेकिन अविनाश हमेशा समय की कमी का बहाना कर टाल देता था। बात दरअसल समय की थी भी नही बात तो इच्छा की थी।उसकी घर जाने की इच्छा पिता के प्रति जड़ जमा चुकी शिकायतों के पहाड़ के नीचे दबकर मृत हो चुकी थी ।
बचपन से ही अविनाश का सपना था विदेश जाने का वहीं पढ़ाई करने का फिर नौकरी करने का लेकिन तीन बच्चों की जिम्मेदारी निभाने वाले मामूली क्लर्क पिता की इतनी हैसियत नहीं थी कि वह अपने बेटे को विदेश भेज देने का आश्वासन भी दे पाते ।
अविनाश बचपन से ही मेधावी था कुशाग्र था उसकी महत्वाकांक्षाएं भी बहुत थीं।वह पिता से हमेशा बहस करता था मुझे बाहर भेज दो लोग अपनी नालायक संतान के लिए क्या कुछ नहीं करते पर आप तो मुझ जैसी लायक औलाद को आगे बढ़ाने में विवश हैं कॉलेज की पढ़ाई समाप्त होने के समय तो आए दिन घर पर पिता पुत्र के मध्य इन बहसों का जैसे सैलाब उमड़ आया था।
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वह गणेश विसर्जन का दिन था… अविनाश कॉलोनी के गणेश विसर्जन कार्यक्रम से वापिस आया था और पिता को देखते ही भड़क उठा था..तुषार अंकल को देखिए आपके जैसी नौकरी है उनकी भी पर कितनी शान से रहते हैं और अपने बच्चों को भी रखते हैं शहर के सबसे महंगे स्कूल और कॉलेज में पढ़ते हैं उनके दोनों बच्चे।अभी से रुपए जमा कर लिए हैं उन्होंने दोनों को विदेश भेज कर पढ़ाने की।आप से कुछ नही हो सकता है मुझे तो हमेशा कहते रहते हैं सचिन को देखो उससे सीखो शामी को देखो उससे सीखो पापा सच तो यह है कि पहले आप भी तुषार अंकल को देखिए और उनसे कुछ सीखिए … !!
चुप हो जा नालायक जुबान लड़ाना खूब सीख लिया है तूने इतना होशियार है पढ़ाई में तो जा चले जा विदेश कर ले व्यवस्था … उन्हीं तुषार अंकल के घर चले जा वहीं रह उन्हीं से सीख ले तेरा बाप तो नालायक है ना!! पिता शेखर जी की आवाज ऊंची होती गई थी लेकिन उस दिन अविनाश चुप ही नहीं हुआ था…. हां हां चला जाता हूं उन्हीं के घर चला जाता हूं वो तो हमेशा मेरी तारीफ करते रहते हैं और कहते रहते हैं काश अविनाश तू मेरा बेटा होता तब तो मैं आसमान को जमीन पर ले आता और एक आप हैं….सच में मैं बहुत हटभागा हूं ऐसे घर में जन्म लिया मैंने….आप तो मेरे पिता होने के लायक ही नहीं हैं..अविनाश की जुबान दोधारी तलवार बन गई थी उस वक्त।
….अभी जा तू निकल मेरे घर से जा उसी तुषार के घर जा उसी के जैसे बन जा अभी तुझे उसके काले कारनामों के बारे में पता नहीं है ना पर तुझे मेरी बातो पर भरोसा क्यों होगा तू तो जा रहा है ना वहीं जाकर पता कर लेना जा…. पिता का कलेजा अपने बड़े पुत्र की कटाक्ष तलवार से छलनी हो गया था।
पिता की धिक्कार उस दिन दुत्कार ही लगी थी अविनाश को और वह आवेशित हो बिना एक पल भी गवाए तुषार अंकल के घर पहुंच गया था।
मां पीछे पीछे दौड़ती हुई आईं थीं ।तुषार अंकल तो नहीं मिले लेकिन आंटी ने अविनाश के साथ साथ उसकी मम्मी को भी खूब कड़वे वचन सुनाए थे कि ..अजीब लोग हैं आप लोग भी जिसका मन हुआ मुंह उठाए चले आए खैरात बंट रही है क्या खुद अपनी व्यवस्था करना सीखो यहां क्या भीख मांगने चले आए…!
दिमाग भन्ना गया था अविनाश का ऐसी तीखी बातें सुन कर फिर मां के रोकते भी कहां रुका था वह सीधे अपने कॉलेज गया वहां हॉस्टल में रह रहे अपने अभिन्न मित्र सुशांत से मिल कर घर छोड़ कर जाने की बातें कर ही रहा था कि अचानक कॉलेज के प्रिंसिपल वहां आ गए और उसे अपने चैंबर में ले गए थे।
क्या बात है अविनाश तुम बहुत ज्यादा परेशान दिखाई दे रहे हो मुझे बताओ शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं उनके मृदुल स्वर से ना चाहते हुए भी अविनाश ने दिल का दर्द बाहर उड़ेल दिया अपने पिता की कटु आलोचना और किसी भी हालत में वापिस उसी घर में ना जाने की उसकी तीखी अक्रोशित प्रतिक्रियाओं को बहुत शांति से सुनते हुए प्रिंसिपल ने उसकी बातों का बिना कोई प्रतिवाद किए उसकी मेधा के आधार पर उसके
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सामने दूसरे शहर में दो वर्ष के प्रशिक्षण में जाने का प्रस्ताव रख दिया और ताकीद की यदि तुम्हारे में काबिलियत होगी तो तुम इस प्रशिक्षण के खतम होते होते बेहद बढ़िया नौकरी के हकदार हो सकते हो ।जाने के पहले अपने पिता का आशीर्वाद जरूर ले लेना उनसे बड़ा शुभचिंतक कोई नही है दुनिया में पिता के गुस्से में भी प्यार ही छुपा रहता है …. लेकिन अविनाश तो पिता की सूरत भी नहीं देखना चाहता था..! वह घर नहीं गया ना ही अपना कोई समाचार घरवालों को बताया उसे तो एक ही धुन थी अपने पिता को अपने बलबूते कुछ कर दिखाना।
धुन पक्की थी तो रास्ता मिलता गया दो वर्ष के कठिन प्रशिक्षण में वह अव्वल रहा उसकी मेधा और मेरिट के आधार पर उसे विदेश में नौकरी का अवसर मिल गया उसका स्वप्न पूर्ण हुआ ।
जब विदेश में उसने नौकरी ज्वाइन की उसी दिन अपने घर फोन किया और मां से बात करके उन्हें अपनी नौकरी लगने का समाचार दिया लेकिन पिता से फिर भी कोई भी बात करने से साफ इंकार कर दिया…. उसके बाद तो वह अपनी नौकरी को बेहतर करने में प्रमोशन की दौड़ में व्यस्त होता चला गया ।
मां ही अक्सर उसे फोन करती हाल चाल पूछती और हर बार पूछती बेटा घर कब आएगा एक बार अपने पिता से तो बात कर ले।
जैसे ही समय मिलेगा मां आता हूं बस अगले महीने … हर बार उसका उत्तर मां की अधीरता को शांत करने के बजाय व्याकुल कर जाता था।पिता से बात करने के मां के आग्रह को वह अब भी टाल जाता था।
उस दिन अविनाश का जन्मदिन था।मां ने सुबह सुबह ही वीडियो कॉल कर दिया अविनाश आज मां को टाल ना सका ।मां से बात करते करते मां ने पिता की तरफ भी कैमरा घुमा दिया।इतने दीर्घ अंतराल के बाद अचानक पिता को देख स्तंभित रह गया वह।इतने वृद्ध अशक्त से दिख रहे पिता को वह पहचान ही नही सका … सहम कर उसने बिना कोई बात किए वीडियो कॉल झट से काट दिया।
पूरे दिन उसकी आंखों के सामने आज के पिता की दयनीय सूरत घुमड़ती रही जो घर छोड़ कर आने वाले दिन बहस करने वाले पिता से इंच मात्र भी मेल नहीं खा रही थी।इन पांच सात वर्षों में पिता इतने वृद्ध हो सकते हैं यह अविनाश के लिए अकल्पनीय बात थी जिस पर उसका ध्यान कभी नही गया था।उसके दिल दिमाग में तो सख्त तेज तर्रार पिता की तस्वीर बसी थी जिनसे वह प्रतिशोध लेना चाहता था बात नही करना चाहता था।
लेकिन आज तो उसे वह सख्त मजबूत इरादों वाले बुलंद आवाज वाले पिता दिखे ही नहीं!! इस पिता पर तो उसे दया आ रही थी इस पिता से उसे कोई शिकायत नहीं थी…दुखी हो गया अविनाश।वह तो हमेशा अपने पिता को बुलंद मजबूत ही देखना चाहता था….कितने कमजोर हो गए हैं पिता जी… आज उसे विदेश की नौकरी सारी सुख सुविधा सब बेमानी लग रही थी उसका दिल पिता से मिलने को छटपटा गया।
मां ने कभी बताया नहीं अब उसे मां पर गुस्सा आने लगा हमेशा बस यही रटती रही पिता से बात कर ले बात कर ले अरे कभी उनकी ऐसी हालत के बारे में भी तो बताना चाहिए था ।मां तुमने मुझे कभी बताया नहीं.. .. शाम को समय मिलते ही उसने मां को खुद फोन लगा दिया ।
किस बारे में बेटा सहज स्वर था मां का।
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अरे यही कि….. अविनाश के शब्द मानो गले में अटक गए थे पर मां सब समझ गई थी यही तो वह चाहती थी इसीलिए तो उसने वीडियो कॉल में कैमरा पिता की तरफ घुमा दिया था।
पिता के बारे में पूछ रहा है बेटा.. मां ने उसकी छोड़ी बात का सिरा पकड़ लिया।
जिस दिन से तू घर से गया है तुझे ही याद करते रहते है बेटा मैंने तो हमेशा तुझे बताने की कोशिश की थी लेकिन तुझे फुरसत ही कहां मिल पाई इस तरफ ध्यान देने की फिर मैं पिता के प्रति तेरी नफरत से डरती थी कहीं मेरे ज्यादा जोर देने से तू मुझसे भी बात करनी बंद ना कर दे…. मां का गला अवरुद्ध हो गया था पिता के बारे में बताने से नहीं बल्कि इसलिए कि आज पहली बार अविनाश ने अपने पिता को दिल से याद किया उनकी खोज खबर ली।
कब आयेगा बेटा तू अविनाश के फोन काटने के पहले ही मां ने फिर वही प्रश्न दाग दिया जो आज सीधा अविनाश के सीने में समा गया।
मां पिता जी को बता देना अगली जो भी फ्लाइट मिलेगी मैं घर आता हूं… अविनाश का भीगा स्वर मां के मन को हिलोर गया।
बेटा तू खुद ही अपने पिता को यह खुशखबरी बता दे ….सुनिए जी अपना अविनाश घर वापिस आ रहा है … लीजिए बात कर लीजिए फोन पिता की ओर बढ़ा मां आनंदित हो उठी थी जानती थी आज अविनाश उसकी बात नहीं टाल नहीं पायेगा ।
पिता जी …. अविनाश के आगे के शब्द गुम गए थे लेकिन उसके पिता ने उन्हें सुन लिया था बेटा जल्दी से अपने घर वापिस आ जा….कब आ रहा है..!!
बस पिताजी अगली फ्लाइट से…. बस इतना ही कह पाया था और बस जो कहा उसे करने को तत्पर हो गया तुरत ही अगली जो भी फ्लाइट मिली बुक कर ली थी।
आज घर आ रहा था कॉलोनी में उसकी कैब घुसते ही तुषार अंकल का घर पड़ा देखा तो भारी भीड़ थी उत्सुकता वश कैब रुकवा कर पूछ ताछ की तो पता चला तुषार अंकल ने ऑफिस में लंबी हेरा फेरी की थी इसलिए पुलिस की गाड़ी उन्हें पूछताछ के लिए ले जाने आई थी आंटी का रोते रोते बुरा हाल था ।अविनाश की आंखों पर से हठात उनकी सारी झूठी शान शौकत का परदा हट गया और उसका मन अपने पिता के प्रति श्रद्धा और सम्मान से भर उठा।
.. उसकी कैब उसके घर के सामने रुक गई थी यहां भी भारी भीड़ देख उसका दिल आशंकित हो उठा ..
देखा तो मां आरती सजाए पिता जी के साथ खड़ी है ….भीड़ नहीं थी ये बल्कि सभी लोग उसके घर आगमन की खुशी में उसका स्वागत करने इकट्ठे हुए थे।अपने प्रिंसिपल सर को भी वहां देख वह चकित हो गया सर आप यहां….!!
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अविनाश उस दिन मैं तुमसे अचानक नहीं मिला था बल्कि तुम्हारे पिता ने मुझे फोन करके तुम्हारे साथ हुई बहस और तुम्हारे इरादों के बारे में बताते हुए तुम्हें समझाने का और तुम्हारी सहायता करने का विनीत आग्रह किया था जिसे मैं टाल नहीं सका था रहस्यपूर्ण मीठी मुस्कान से सर ने कहा तो अचंभित हो गया था अविनाश ।वास्तव में पिता के वत्सल व्यक्तित्व को समझना कितना दुरूह है मेरे लिए।
पिता जी … चरण स्पर्श के लिए झुकते उसके हृदय में अब अपने पिता के लिए अगाध श्रद्धा सम्मान और प्यार उमड़ उठा था और पिता ने दोनों हाथों से पकड़ उसे अपने गले से लगा लिया था … मां अश्रु पूर्ण आंखों से दोनों की आरती उतारने लगी थी….!!
गणपति बप्पा का जयघोष धरती से आसमान तक पहुंच गया था।
घर वापसी#
लतिका श्रीवास्तव