प्रतिक्रिया – शिप्पी नारंग : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

अर्चना जी पलंग पर बैठी बड़े मनोयोग से टीवी पर रामायण देख रहीं थी पति भारत जी अपनी आराम कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे ।अर्चना जी पूरी तरह से रामायण में डूबी थी कि अचानक खट की आवाज आई और टीवी बंद हो गया अर्चना जी एकदम चौंक गईं। नज़र सामने पड़ी तो बहू तान्या के हाथ में रिमोट था और टीवी उसने ही बंद किया था अर्चना जी ने हैरानी से पूछा.. “क्या हुआ तान्या टीवी क्यों बंद कर दिया?”

उनको अभी कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कुछ और बोलती कि तान्या की आवाज आई “मम्मी सारा दिन टीवी चलता रहता है कितना बिजली का बिल आ जाता है थोड़ा देख कर चलाया करें” आवाज थोड़ी तल्ख़ थी । अर्चना जी को पहले तो समझ ही नहीं आया कि बहू क्या बोल रही है और जब समझ आया तो गुस्से से मुंह लाल हो गया ।

भारत जी ने अखबार चेहरे के सामने से हटाया पहले बहू की तरफ देखा और फिर नज़र पत्नी की तरफ दौड़ाई । बहू से बोले “यह कौन सा तरीका है तान्या मम्मी से बात करने का, अब क्या वो टीवी भी नहीं देख सकती ?” “पापा आपको पता है ना कितना बिल आ जाता है और वह हमें ही भरना होता है, आपको क्या पता आप तो सारा दिन बस अखबार में ही खोए रहते हैं या फिर दोस्तों को बुला कर चाय पानी पिलाते रहते हैं हर चीज में पैसा लगता है

हमें भी बच्चों का सोचना है, इसीलिए आज से ये रिमोट मेरे पास रहेगा सुबह 10:00 से 12:00 और शाम को 6:00 से 8:00 बजे ही टीवी चलेगा मैं खुद ही आकर चला दिया करूंगी।” ये कहते हुए तान्या रिमोट लेकर तमतमाती हुई कमरे से बाहर चली गई । अर्चना जी तो जैसे पत्थर हो गईं। भारत जी ने पत्नी की तरफ देखा उनकी हालत देखकर थोड़ा घबरा गए और पत्नी के पास गए ।

कंधे पर हाथ रखा ही था कि पति का स्नेहिल स्पर्श पाते ही अर्चना जी फूट-फूट कर रोने लगी भारत जी ने पत्नी को रोने दिया । पत्नी का हाथ पकड़कर वही पलंग पर बैठ गए । अर्चना जी का रोना अब सिसकियों में बदल गया । भारत जी ने उठकर साइड टेबल पर रखे फलास्क से पानी का गिलास भरा और पत्नी को दिया ।

अर्चना जी थोड़ी प्रकृतिस्थ हुई । उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि जो उन्होंने सुना वह सही था या कोई सपना। पति को कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि उन्होंने पत्नी को चुप रहने का इशारा किया और चुपचाप अपनी आराम कुर्सी पर आकर बैठ गए

पत्नी को इशारा किया कि वह थोड़ी देर लेट जाएं और खुद कुर्सी के पीछे लगाकर आंखें बंद करके सोच के गहरे सागर में गोते लगाने लगे उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हो गया एक तूफान आया और सब तितर-बितर कर दिया और पीछे छोड़ गया अनकहा दर्द ।

पत्नी की तरफ देखा तो वह भी आंखें खोलें छत की तरफ देख रही थी ।

घर की हवा में बदलाव तो वे पिछले दो-तीन महीने से ही महसूस कर रहे थे । बहू का बिना बात के खीजना, बेवजह चीखना चिल्लाना । पहले बेटा आते जाते मिलता था पर अब सिर्फ डिनर टेबल पर ही दिखता था भारत जी या अर्चना जी कुछ पूछे तो बस हां या ना में जवाब मिलता था ।

बहू ने एक दो बार इशारे इशारे में जता भी दिया कि यह मकान उनके नाम कर दें भारत जी ने सोचा भी कि बाद में भी उन्हीं का होना है तो नाम कर देने से क्या फर्क पड़ेगा और अब वे मन ही मन अपने साढू साहब को धन्यवाद देने लगे जिन्होंने उन्हें यह सलाह दी कि भाई साहब अपने जीतेजी मकान किसी के नाम नहीं करना हां वसीयत जरूर बना लो और उसमें भी मकान पहले अपने पत्नी के नाम लिखना और उसके बाद बेटे के नाम पत्नी का बुढ़ापा मत खराब करना

आपके बाद कम से कम इज्जत की दो रोटी मिलेगी उसे इसी मकान के लालच में और उन्होंने ऐसा ही किया हां यह जरूर था कि बेटे बहू को इस बात की जानकारी नहीं दी क्योंकि यह सलाह भी साढू भाई ने ही दी थी कि औलाद का असली रंग देखना हो तो झूठ बोल कर देख लो सच्चाई सामने आ जाएगी इतनी जल्दी नकाब उतरेगा यह नहीं सोचा था ।

भारत जी ने सिर हिलाया जैसी किसी निर्णय पर पहुंच गए हैं रात को दोनों चुपचाप डिनर के लिए डायनिंग हॉल में आ गए । बेटा बहू पोता पोती सब थे । चुपचाप खाना हुआ । बच्चे खाना खाकर अपने कमरे में चले गए भारत जी ने बेटे रोहन और तान्या को अपने सामने बैठने के लिए कहा और बेटे की तरफ मुखातिब होकर बोलने लगे “देखो रोहन आज जो हुआ वो मैं दोहराऊंगा नहीं तान्या से पूछ लेना कि आज उसने क्या हिमाकत की है ।

ना ना कुछ बोलने की जरूरत नहीं है ” । तान्या को बोलने के लिए आतुर देख भारत जी ने कहा और बात आगे बढ़ाते हुए बोले “आज ऐसा हुआ है जो मुझे मंजूर नहीं है । इस घर को, तुम्हारी ज़िन्दगी को बनाने में हमने ना दिन देखा ना रात । कभी पैसों का मोह नहीं किया।

तुम्हारी मम्मी भी अच्छा कमाती थी और मैं भी अच्छा वेतन पाता था तो ज़िन्दगी आराम से गुज़र रही थी और फिर ये दो मंजिला मकान भी बना लिया ताकि बुढ़ापा शांति से गुज़र जाए। तुम्हारी मम्मी ने दो दो ड्यूटियां निभाई। घर को भी पूरा समय देती थी और नौकरी भी करती थी। नौकरी करते हुए भी मम्मी ने हमेशा तुम्हारे दादा दादी के सारे कर्त्तव्यों को पूरा करने की कोशिश की, उन्हें पूरा आदर सम्मान दिया और आज जब उसके आराम करने का समय है तो उसका टीवी देखना भी तुमको भारी पड़ रहा है। घर के खर्चे का जो सुनाती हो तान्या तो फिर आज सुनो.. घर का पूरा खर्चा मैं उठाता हूं।

अखबार का, कुक का, कामवाली माई की पेमेंट मैं करता हूं। पानी का, गैस का बिल में भरता हूं। तुम सिर्फ बिजली का बिल देते हो। आज तक ना तुम्हारी मम्मी ने ना मैंने तुम दोनों से कभी पूछा कि कहां जा रहे हो, क्या खर्च कर रहे हो, क्या ला रहे हो, क्यों ला रहे हो तो फिर हमारा खर्च तुम्हारे लिए इतना बड़ा हो गया कि तुमने हमारे टीवी का समय ही बांध दिया।

तो बेटा ये तो मुझे बिल्कुल भी मंज़ूर नहीं है। एक बात और सुन लो मैने और तुम्हारी मां ने जिंदगी में इज्जत खूब कमाई है अब अगर घर में मेरी या तुम्हारी मां की बेइज्जती हो तो मैं बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करूंगा। इसीलिए मैंने आज ये फैसला किया है कि या तो तुम ऊपर की मंजिल पर शिफ्ट हो जाओ, अपनी गृहस्थी अलग बसाओ और मुझे हर महीने रू. 45,000/- किराया दो और या फिर कोई दूसरा मकान ढूंढ लो मैं ऊपर की मंजिल किराए पर चढ़ा दूंगा जिससे हमारा काम बहुत अच्छे से चल जाएगा।

हम दोनों की पेंशन भी आती है तो पैसों की तो कोई चिंता नहीं है। अच्छा हुआ अभी मैंने ये मकान तुम्हारे नाम नहीं किया वरना हमें तो बेघर करने में तुम एक दिन भी ना लगाते ।

आज पता चला कि समझदार लोगों की दोस्ती करने का क्या फायदा होता है। आज 8 तारीख है ,30 तक सोच कर जवाब दे देना मैं उस हिसाब से आगे के लिए सोचूंगा। अब फैसला तुम्हें लेना है। चलो अर्चना।” कहते हुए भारत जी उठे और पत्नी का हाथ पकड़ कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गए बिना ये देखे कि अभी जो बम उन्होंने पीछे छोड़ा था उसका असर उन दोनों पर क्या हुआ।

शिप्पी नारंग

5 thoughts on “प्रतिक्रिया – शिप्पी नारंग : Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत ही उम्दा कहानी।मज़ा आ गया पढ़ के।
    बुजुर्गों को इस कहानी से प्रेरणा लेनी चाहिए

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