Moral Stories in Hindi : महेश हमारा बहुत पुराना ड्राइवर था।उसके पास ख़ुद का ऑटो और एक मारुति वैन थी।सभ्य,सरल और शिक्षित होने की वजह से पूरे कस्बे का विश्वसनीय ड्राइवर था महेश।अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित था वह।पैसों के लिए कभी झगड़ते नहीं देखा था उसे।कोविड काल में वही एकमात्र ऐसा व्यक्ति था, जो अपने ऑटो में बैठाकर कोविड संक्रमित रोगियों को चौबीस किलोमीटर दूर सरकारी अस्पताल में ले गया था।
उसकी सज्जनता एक मिसाल थी मेरे लिए भी।दो साल पहले गाड़ी चलाते हुए उसने बताया था”भाभी,बड़े बेटे को नौकरी मिल गई।”मैंने भी खुश होते हुए पूछ लिया”कौन सी कंपनी में भैया?”उसने सहजता से ए सी सी कंपनी का नाम लिया।मैंने दोबारा जब फिर बधाई दी तो वह खुलकर बोला”एसिस्टेंट मैनेजर की पोस्ट मिली है भाभी।
“मैं अवाक होकर देख रही थी उसे।कभी ज्यादा नहीं पूछा था उसके परिवार और बच्चों के बारे में।इतना जरूर पता था कि बेटा उसका बहुत होशियार है पढ़ने में।आज पता चला कि उसने आई आई टी धनबाद से ग्रेजुएशन किया था।मेरे मन में अपार श्रद्धा जग गई उसके लिए।हंसकर मिठाई खिलाने का आग्रह किया था मैंने।
कल शाम को अपने ऑटो में पत्नी को बिठाकर दो पैकेट मिठाई लेकर आए थे महेश भैया।मैं पहली बार मिल रही थी उनकी पत्नी से। उत्सुकतावश मैंने पूछ ही लिया”अरे भैया,दो अलग -अलग पैकेट क्यों?”उनकी जगह उनकी पत्नी ने सगर्व जवाब दिया”दीदी ,एक पैकेट बड़े बेटे की नौकरी के लिए और दूसरा छोटे बेटे के मेडिकल में सेलेक्ट होने के लिए।
“मेरे लिए यह खबर चौंकाने वाली थी।उसने अपनी चमकीली आंखों से खुशी छलकाते हुए आगे कहा”दीदी,शुभम (बड़े बेटे)ने गेट में टॉप किया है।उसी ने छोटे भाई की तैयारी करवाई नीट के लिए।वही भोपाल में एडमिशन करवाकर आया छोटे भाई का।”
मेरे लिए यह किसी परीकथा से कम नहीं था।एक बेटा मैनेजर,दूसरा डॉक्टर।ईश्वर ने अपने आशीर्वाद में कहीं कंजूसी नहीं की।एक ऑटो ड्राइवर के दोनों बेटे उस जगह पर पहुंच गए थे,जहां जाने के लिए लाखों रुपए खर्च करके भी नहीं पंहुच पाते बच्चे।पूनम(महेश की पत्नी)मेरे पैर छू रही थी,और मैंने खुशी से रोते हुए उसे आशीर्वाद दिया”रत्नगर्भा हो तुम पूनम।ईश्वर तुम्हारे दोनों बेटों को बहुत खुशियां दे।”
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“हां दीदी,यही आशीर्वाद दीजिए उन्हें कि, कभी बदले नहीं वो खुद को।हमारे खानदान में सारे रिश्तेदारों ने बहुत ताना दिया था हमें,जब मैंने कहा था कि शुभम बहुत बड़ा आफीसर बनेगा।आपको पता है,उन्होंने हंसते हुए कहा था कि यह सपना मत देखो।एक ऑटो ड्राइवर की बीवी होकर, तुम्हें ऐसा कैसे लग सकता है कि बेटा आफीसर बनेगा?अपनी औकात में रहकर ही सपने देखा करो।मैंने तब उनसे कहा था दीदी,मैंने पैदा होते ही अपने बेटे की आंखों में भविष्य का आफीसर देखा था।मैंने भी उसी दिन प्रतिज्ञा ली थी कि, मैं अपने बेटे को एक दिन आफीसर बनाकर ही रहूंगी।अब देखिए उसने अपने भाई को भी डॉक्टर बनाने की प्रतिज्ञा पूरी कर दी।”
मैं नतमस्तक थी उस मां की ममता के आगे,जो गरीबी में रहकर अपने खर्चों में कटौती कर-करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी करके दिखा दी।वह आज पहली बार मुझसे मिल रही थी,पर मिलते ही खुल गई।उसने अनवरत बोलना जारी रखा”पता है दीदी, गर्मी में मैंने मेरे बेटे को बिना पंखे के पढ़ने की आदत डलवाई ,ताकि बिल भी ज्यादा ना आए और उसे नींद भी ना आए।हम जहां रहते हैं अच्छा नहीं है माहौल वहां का,मैंने हमेशा उससे यही कहा कि पापा रातों को भरी सर्दी -गर्मी और बरसात में भी स्टेशन के चक्कर लगाते हैं सवारी के लिए।
दो -चार जोड़ी कपड़ों में पूरी ज़िंदगी निकाल दी उन्होंने।जाने कितने बच्चों को कोटा,इंदौर ,भोपाल और भी कितनी जगह पढ़ाई के लिए जाने के लिए स्टेशन पंहुचाया है उन्होंने।कभी तुम लोगों को समझने भी नहीं दिया अपनी आर्थिक तंगी के बारे में।मुझे उनकी ऑटो में बैठकर तुझे कुछ बनकर स्टेशन जाते हुए देखना है।मुझे दुनिया को यह दिखाना है कि, केवल बड़े आदमी को या पैसे वालों को ही ऊंचे सपने देखने चाहिए।
गरीबों को भी सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हक दिया है भगवान ने।”वह रोने लगी थी ,खुशी के मारे या अतीत में अपने मन पर लगे रिश्तेदारों के घावों के रिसने की वजह से।महेश ने असहज होकर कहा”पूनम, अब बस भी करो।भाभी हमेशा हमारे सुख-दुख में काम आईं हैं।भैया भी हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते थे।चलो अब चलतें हैं।”
मैं एक शिक्षक होकर सोच रही थी कि लाखों माता-पिता अपनी औलादों को ऊंची फीस देकर , बड़े-बड़े संस्थानों में पढ़ने भेजकर भी निराश ही रह जातें हैं।बच्चे कभी क़िस्मत का , कभी कठिन पेपर का और कभी पेपर लीक होने की बात करतें हैं।ऐसा होता भी है,पर महेश भैया के बेटों ने अपनी मां की ली हुई प्रतिज्ञा को पूर्ण करके,ममता की लाज रखी है।ममता ना कल हारी थी,ना आज हारी है और ना ही कल हारेगी।एक सफल और असफल बच्चे के पीछे मां की ममता ही होती है।ठान ले तो राजा बना दे अपने बच्चे को ,और कमजोर पड़ जाए तो नालायक।
शुभ्रा बैनर्जी