रिद्धि की नई-नई शादी सभी सुख सुविधाओं से संपन्न गुप्ता परिवार में हुई।छोटी बहू के रूप में उसने घर में गृह प्रवेश किवया।
वह एक पढ़ी-लिखी,सभी कामों में दक्ष,व्यवहार कुशल,समझदार लड़की थी।वह नये माहौल में सब के साथ सामंजस्य बनाने में लगी हुई थी।
अपने व्यवहार से उसने सभी का दिल जीत लिया।सासू मां तो लाड़ के मारे उसे कोई काम ही नहीं करने देती लेकिन धीरे धीरे वह घर के सभी कामों में हाथ बटाने लगी।
जेठानी भी उसे जब तब छिड़क दिया करती ,अरे अभी तो तुम्हारी हाथों की मेहंदी भी नहीं हटी है और आ जाती हो तुम किचन में काम करवाने!!
अभी तो सजने सवरने और देवर जी को रिझाने के दिन हैं तुम्हारे!!चलो जाओ अपने कमरे में जाकर आराम करो!! ऐसा ससुराल पाकर वह फूली नहीं समाई।
जेठानी के 3 साल के बेटा समर्थ तो उसे बहुत प्यार लगता ।उसकी प्यारी प्यारी बातें सुनकर उसे अपार खुशी मिलती।
वह देखती ,जब भी समर्थ खाना खाता या नहीं खाता, किसी चीज की जिद करता,या फिर रोने लगता तो जेठानी जी उसे फोन देकर चुप करा देती और आराम से अपने कामों में लगी रहती।मोबाइल या टीवी के आगे वह पुरा दिन लगा रहता।
रिद्धि कई बार समर्थ को बोलती,ज्यादा मोबाइल नहीं दिखते आपकी आंखें खराब हो जाएंगी!! नन्ना समर्थ उसकी बातो को अनसुना कर सही गलत से अनजान मोबाइल में ही लगा रहता!!
जिठानी जी भी कुछ नहीं बोलती।कई दिन से लगातार रिद्धि,जिठानी जी का यही रवैया देख रही थी।
उसने समर्थ की परवाह करते हुए आखिरकार जिठानी जी को टोक दिया,”दीदी खिलौने खेलने की उम्र है अभी इसकी”पर आप हमेशा इसको मोबाइल पकड़ा देती हैं। अभी कितना छोटा है यह,आंखें तो खराब होंगी ही साथ साथ मोबाइल की लत लग जाएगी।
उसे लगा था जेठानी जी उसकी बात के मर्म को समझेगी लेकिन हुआ उल्टा,जेठानी ने उसको ही सुना दिया,,,,,,,,,,,,,,,, मुझे मत सिखाओ बच्चों को कैसे पालना चाहिए,जब खुद मां बनोगी तब देखूंगी। घर के ढ़ेरो काम सामने हो और बच्चा रोता या जिद करता हुआ दिखाई दे तो कुछ और नहीं सूझता।
और रही बात खिलौनों की तो वह उनसे खेलता कम बिखेरता ज्यादा हैं,मोबाइल देख्कर कम से कम चुप तो रहता है,साथ साथ खाना भी पूरा खाता है।
रिद्धि अपना सा मुंह लेकर चुप कर गई फिर भी उसकी कोशिश यही रहती,जब भी समर्थ उसके साथ हो तो मोबाइल से दूर रहे,वह उसके साथ खेल कर या बातें करके उसका ध्यान मोबाइल से हटाती।
कुछ ही दिनों में समर्थ उसके साथ हिल मिल गया।जब भी वह उसके साथ रहता फोन से दूर रहता।
थोड़ा समय बीत गया,रिद्धि को भी मातृ सुख की प्राप्ति शीघ्र होने वाली थी।
समय पर बच्चा नार्मल हो गया,वह और बच्चा सकुशल घर वापस आ चुके थे। घर में उत्साह का माहौल था।
अगले दिन समर्थन फोन लेकर छोटे बेबी के पास आ गया,उसको फ़ोन दिखते हुए-देखो छोटू यह मेरे पास कितना प्यारा खिलौना है,जब भी तुम इसको देखोगे तुम बिल्कुल भी नहीं रोओगे।
रिद्धि उसे प्यार से समझाते हुए,समर्थ चाची के पास एक नया प्यारा सा खिलौना आ गया है।अगर आपको चाहिए तो सबसे पहले मम्मी का फोन वापस करके आओ।
समर्थ ने जल्दी से फ़ोन अपनी मां को दिया। अपने बच्चे की मालिश करते करते रिधी समर्थ से ढेर सारी बातें करती ।जब भी वह अपने बच्चे को दूध पिलाती तो समर्थ को भी उसका खाना लेकर अपने पास बिठा लेती।
उसको बोलती देखो छोटा बेबी अपना खाना जल्दी-जल्दी बिना मोबाइल के खा रहा है,तुम भी अपना खाना जल्दी जल्दी खत्म करो।
धीरे-धीरे समय व्तीत होता गया,,,,,,
जब भी समय मिलता वह अपने बच्चे के साथ साथ उसको ड्राइंग,कलरिंग कराती।
जिस दिन कोई खिलौना अपने बच्चे के लिए लाती तो एक नया खिलौना समर्थ के लिये जरूर लाती।
जब भी उसे समय मिलता वह खुद अपने बच्चे और समर्थ के साथ खेलती। कहानियां सुनाते सुनाते दोनों को खाना खिलाती।
धीरे-धीरे रिद्धि की परवरिश देखकर जेठानी को भी समझ आ गया था कि अगर बच्चे के साथ कुछ समय व्यतीत किया जाए तो उनको मोबाइल से दूर रखा जा सकता है।
अब दोनों ही मिलकर जल्दी-जल्दी सारा काम निपटा लेती और अपने बच्चों के साथ कभी पार्क में जाती,कभी साइकिल चलवाती।
एक दिन जेठानी जी रिद्धि से बोली,तुमने बिल्कुल सही कहा था रिद्धि अगर बच्चों को समय दिया जाए और उनके साथ खेला जाए तो फिर उन्हें फोन की जरूरत नहीं पड़ती।
आज तुम समर्थ कि सिर्फ चाची नहीं एक बहुत अच्छी दोस्त भी हो।
समय के साथ समर्थ भी बड़ा होकर रिश्तों की परिभाषा समझने लगा था।घर में दिवाली पूजन की तैयारियां चल रही थी।घर को खूबसूरत झालरों से सजाया गया था।
रिद्धि की बनाई हुई रंगोली की मनमोहक छटा अलग ही बिखर रही थी।
दिवाली के दिन लक्ष्मी गणेश का पूजन करके सभी छोटे अपने बड़ों के पांव छू रहे थे।समर्थ भी आकर रिद्धि के पांव छूने लगा,कि सासू मां ने टोक दिया, वह बोली “अरे समर्थ अपने यहाँ चाची के पांव नहीं छूते हैं”।
लेकिन समर्थ के जवाब को सुनकर वह हैरान रह गई ,
समर्थ बोला दादी यह मेरी चाची नहीं है,यह मेरी छोटी मां है बोलकर रिद्धि के पांव छू लिये।
जेठानी जी की आवाज उसके कानों में गूंजी ,,,हां मां !!समर्थ बिल्कुल ठीक कह रहा है,रिद्धि समर्थ की चाची नहीं छोटी मां है।
रिद्धि प्यार से समर्थ के गाल पर हाथ फेरकर उसके माथे को चूम लिया।खुशी के मारे उसकी आंखों में से दो बूंद आंसू छलक आये।
उसे खुद पता ही नहीं चला कि कब उसका रिश्ता समर्थ से, चाची से छोटी मां के रिश्ते में बदल गया।आज उसे एहसास हो गया कि रिश्तो में अगर प्यार और समर्पण हो तो पराया रिश्ता भी अपना हो जाता है।जिंदगी की असली खूबसूरती खुद से कमाए हुए चंद रिश्तो में है।
समाप्त।
नेहा गुप्ता ।