कितने अरमानों से महेश के माता पिता उसे बहु बनाकर लाए थे अपने इकलौते बेटे के लिए पर उसने उनके घर को ही तोड़ना चाहा। कितना प्यार करते थे सभी पर उसे तो सास ससुर के जिम्मेदारी बोझ लगती थी।
” महेश मुझसे नही होती तुम्हारे मां बाप की सेवा मुझे आजादी चाहिए तुम कही और घर ले लो !” आखिरकार एक दिन सविता ने कह ही दिया।
” सवि वो मेरे माता पिता है मैं उनका अकेला बेटा कैसे छोड़ दूं उन्हे अकेला तुम समझती क्यों नही हो।” महेश ने उसे प्यार से समझाना चाहा।
” मैं भी तो छोड़ कर आई हूं ना अपने मां बाप तो तुम क्यों नही? मुझे कुछ नही पता या तो तुम उन्हे छोड़ो या मुझे !” सविता तुनक कर बोली।
और फिर वही हुआ जो नही होना था अगले दिन सविता ने बैग लगाया और ये कह कर पीहर चली गई की अलग घर ले लो तब मुझे लेने आ जाना। ना महेश ने अलग घर लिया ना सविता वापिस आई आया तो उसकी तरफ से तलाक का नोटिस…दोनो का तलाक हो गया महेश का तो शादी से विश्वास ही उठ गया।
उधर सविता की शादी उसके परिवारवालों ने मोहन से कर दी…वो अकेला शहर में रहता था मां बाप गांव में तो सविता आजाद परिंदे सी थी।
इधर महेश के माता पिता खुद को बेटे का घर तोड़ने का जिम्मेदार समझ घुटते रहते थे आखिरकार उन्होंने महेश को दूसरी शादी को तैयार कर लिया और अब महेश की जीवन संगिनी बनकर आई मालती। मालती के आने से मानो घर में लक्ष्मी का वास हो गया …महेश व्यापार में दिन ब दिन तरक्की करते रहे
मालती के सेवा भाव से महेश और उसके माता पिता पुराने जख्म भूलने लगे। धीरे धीरे मालती तीन बच्चों की मां बन गई और उधर सविता के भी दो बेटे हो गए छोटे बेटे के जन्म के समय उसके सास ससुर गांव से जो आए तो मोहन ने उन्हे वही रोक लिया…अब सविता को अपनी आजादी छिनती नजर आई….उसने सास ससुर की अवहेलना शुरू कर दी पर पोतो के मोह में वो उस अवहेलना को भी सहते रहे। बच्चे थोड़े बड़े हुए तो सविता ने दोनो बच्चों को हॉस्टल डलवा दिया। उसके सास ससुर ने बहुत विरोध किया पर वो मानो अपने सास ससुर से अपनी आजादी छीनने ( उसकी नजर में उसके सास ससुर का साथ रहना आजादी छिनना ही था ) का बदला ले रही हो। यहां मोहन भी सविता के रवइये के वजह से उससे दूर होता जा रहा था क्योंकि सविता को कुछ भी समझाने का फायदा नही हो रहा था।
इधर पौत्र वियोग में दुखी हो मोहन के माता पिता ने बेटे का घर छोड़ दिया और वापिस गांव चले गए। सविता के लिए ये बहुत बड़ी जीत थी अब ना बच्चों की जिम्मेदारी थी ना सास ससुर का बंधन… किटी पार्टी, शॉपिंग यही उसकी जिंदगी उसकी खुशी बन गए थे और अपनी इस खुशी में उसने ये भी जानने की कोशिश नही की के मोहन देर से घर क्यों आता है …क्यों अक्सर खाना नही खाता…। धीरे धीरे सविता के सास ससुर ईश्वर को प्यारे हो गए और मोहन अत्यधिक शराब पीने की वजह से बीमार रहने लगा। उधर बच्चे भी बड़े होने लगे। पढ़ाई पूरी कर नौकरी भी करने लगे पर घर लौट कर ना आए। मोहन की गिरती सेहत का अंदाजा सविता को तब हुआ जब वो चक्कर खाकर गिर गया। सविता नौकरों की सहायता से उसे अस्पताल लेकर भागी बच्चों को फोन किया पर सब एक झटके में खत्म हो गया। अत्यधिक शराब पीने की वजह से मोहन के फेफड़े खराब हो गए थे परिणामस्वरूप आज उसकी मृत्यु हो गई।
सब काम निमटने पर सविता ने बच्चों को वहीं रोक लिया पर घर में वो अजनबियों की तरह ही रहते थे धीरे धीरे दोनो बच्चों ने अपनी पसंद की लड़कियों से शादी भी कर ली और दोनो के बच्चे भी हो गए।
इधर महेश के दोनो बेटों और एक बेटी का भी विवाह हो गया उसके बेटे तो श्रवण कुमार थे ही बहुएं भी बेटी से बढ़कर आई बेटी अपने घर परिवार में खुश थी घर में नाती पोते खेलते थे। अपनी जिंदगी में मालती जैसी बहू पा महेश के माता पिता तृप्त हो दुनिया से कूच कर चुके थे। विवाह के पैंतीस साल बाद मालती भी एक असाध्य बीमारी के कारण दुनिया से रुखसत हो चुकी थी। महेश जी के बेटे बहु उनका बहुत अच्छे से ख्याल रखते थे।
अचानक वृद्धाश्रम में कोलाहल हुआ …” सेठ महेश दास अपनी पत्नी की पुण्यतिथि पर अपने परिवार के साथ यहां पधारे हैं। सभी वृद्धों को फल और कपड़े वितरित करने।
” माफ कीजिएगा आपका चेहरा मुझे जाना पहचाना लग रहा है पर कहां देखा ये याद नही आ रहा !” सविता को फल कपड़े देते हुए महेश जी अपने चश्मे को ऊपर करते हुए बोले।
” आपने भले न पहचाना हो पर मैं पहचान गई आपको मैं सविता हूं !” सविता जी नम आंखों से बोली।
” ओह तुम यहां वृद्धाश्रम में ?” महेश जी हैरानी से बोले।
” हां अपने कर्मों का फल भुगत रही हूं !” सविता बोली।
” मैं तुमसे यहां से फ्री हो बात करता हूं बाहर गार्डन में आ जाओ तुम !” महेश मोहोल को देखते हुए बोले और आगे बढ़ गए वहा से फ्री हो बेटे बहु को उन्होंने ये कहकर वापिस भेज दिया कि वो कुछ समय इन लोगों के साथ बिताना चाहते हैं।
” हां सविता अब कहो क्या हुआ ऐसा जो तुम्हे वृद्धाश्रम आना पड़ा!” महेश जी ने पूछा।
सविताजी ने महेश जी से तलाक के बाद की सारी घटना बताई साथ ही ये कहा बेटे बहु की उपेक्षा से खिन्न हो अपने पापों का प्रायश्चित करने वो खुद यहां आई हैं। महेश जी सविता जी को सांत्वना देने लगे। फिर सविता जी ने उनके बारे में पूछा तो महेश जी ने सब सच सच बता दिया। सविता जी ने उनसे अपने किए की माफ़ी भी मांगी तब महेश जी बोले माफ तो मेने तुम्हे उसी दिन कर दिया था जब मालती मेरी जिंदगी में आई और मेरे घर संसार को स्वर्ग बना दी। सविता जी से विदा ले महेश जी आश्रम के संचालक के पास आए।
उन्होंने ऑफिस से सविता जी के बेटों का नंबर निकलवाया जो सविता जी ने आश्रम में आने कर दिया था।
” हैलो कौन ?” महेश जी के फोन करने पर वहां से आवाज आई।
” आप आशीष बोल रहें है … मैं सेठ महेश दास बोल रहा हूं !” महेश जी बोले।
” जी मैं आशीष पर आप जैसी बड़ी हस्ती ने मुझे फोन करने का क्यों कष्ट किया!” आशीष बोला।
” मैं तुम्हारी मम्मी का दोस्त हूं यहां वृद्धाश्रम में उनसे मुलाकात हुई तो उनके बारे में पता चला सुनकर अफसोस हुआ !” महेश जी बोले।
” पर वो खुद की मर्जी से वहां गई है!” आशीष बोला।
” बेटा उसने जो किया वो गलत था पर तुम जो कर रहे वो भी तो ठीक नही क्या उम्र के इस मोड़ पर उनको यूं अकेला करना ठीक था …बेटा तुम्हारे पिता की उम्र का हूं फिर भी एक विनती करता हूं सविता ने अपने गुनाह की सजा पा ली अब उसे अपना कर तुम अपराध का बोझ कुछ कम कर दो उसके सर से !” महेश जी बोले।
इसे महेश जी का रुतबा कहो या आशीष में अपने पिता के संस्कार जो भी हो आशीष अपने भाई के साथ आश्रम आने को तैयार हो गया। थोड़ी देर बाद वो आए और सविता जी से अपने किए की माफ़ी मांगी सविता जी ने बरसों बाद बेटों को गले लगा लिया।
” मां चलो अपने घर !” आशीष बोला।
सविता जी बिना कुछ बोले अपने कमरे में चली गई उनके बेटों ने सोचा सामान लेने गई हैं पर जब काफी देर तक वो नही लौटी तो वो दोनो मां के पास पहुंचे ।
” मां चलो देर हो रही है!” आशीष ने बेड पर बैठी मां को झकझोड़ा। पर ये क्या सविता जी एक तरफ लुड़क गई। हाथ से अपने पति और बच्चों की तस्वीर एक तरफ गिर गई। सविता जी की आंखे खुली थी पर चेहरे पर संतोष था आखिरी समय अपने बच्चों को गले लगाने का संतोष , अपना प्रायश्चित पूरा करने का संतोष।
आपकी दोस्त
संगीता