यह कहानी है हरियाणा की जिंद की रहने वाली संध्या की इनकी शादी लव मैरिज हुआ था संध्या का हस्बैंड मनोहर आर्मी में नौकरी करता था और बचपन से ही एक दूसरे को जानते थे। संध्या पूरे घर को सजाने में लगी हुई थी क्योंकि मनोहर 1 दिन बाद ही आर्मी से छुट्टी लेकर घर आने वाला था और फिर कुछ दिनों बाद संध्या को भी अपने साथ ले जाने वाला था।
संध्या अपने घर के छत की सफाई कर रही थी तभी उसे अचानक से नीचे उसके सास-ससुर के रोने की आवाज आई। संध्या दौड़ते हुए नीचे आई वह समझ नहीं पा रही थी उसके सास-ससुर क्यों रो रहे हैं धीरे-धीरे आस-पड़ोस के लोग भी जुटना शुरू हो गए और कुछ देर के बाद ही वहाँ आई हुई औरतों ने संध्या के मांग से सिंदूर मिटा दिया और उसके हाथों की चूड़ियां तोड़ दिया अब संध्या को समझते देर ना लगी कि क्या हो गया है इतना होने के बाद अब संध्या को कुछ भी बताने की जरूरत नहीं थी वह समझ गई थी उसका मनोहर अब नहीं रहा उसके सारे सपने चकनाचूर हो चुके थे।
संध्या के ससुर दीनानाथ जी ने संध्या को सर पर हाथ रख कर बोले “बेटी हमारा बेटा इस दुनिया से शहीद होकर गया है लोग तो मरते हैं लेकिन हमारा बेटा तो अमर हो गया है लोगों के दिलों में। मुझे अपने बेटे पर गर्व है और तूझे भी अपने पति पर गर्व होना चाहिए क्योंकि तुम एक शहीद की बीवी हो।
शाम तक मनोहर का पार्थिव शरीर भी गांव में आ चुका था और उसके बाद सम्मान पूर्वक मनोहर के पार्थिव शरीर को जलाया गया और गांव के सभी लोगों ने यह फैसला किया कि मनोहर के नाम से गांव के मुख्य द्वार पर एक मूर्ति स्थापित किया जाएगा ताकि इस गांव के आने वाली पीढ़ियों को मनोहर पर गर्व महसूस हो।
मनोहर के तेरहवीं समाप्त होने के बाद ही संध्या के मां-बाप संध्या को अपने घर ले जाने लगे क्योंकि अभी संध्या की शादी को 1 साल भी नहीं बिता था वह अब अपनी बेटी को किसके सहारे छोड़ते। लेकिन संध्या अपने मां बाप के साथ जाने को राजी नहीं थी उसने अपने मां बाप को बोल दिया कि पापा मैं अगर चली जाऊंगी तो जो यहां पर मेरे मां- बाबूजी हैं इनकी देखभाल कौन करेगा वहां पर तो फिर भी भैया है जो आपका देखभाल करेगा लेकिन इनकी देखभाल कौन करेगा। संध्या के सास- ससुर ने भी संध्या को बहुत समझाया बेटी हम तो जैसे-तैसे जी ही लेंगे अब हमारा क्या है कुछ दिन बचे हैं हमारे जीवन के वह कैसे भी करके बीत ही जाएगा। तुम्हारा तो अभी पूरा जीवन बाकी है तुम चली जाओ अपने मां-बाप के घर। संध्या ने किसी की नहीं सुनी और यहीं पर अपने ससुराल में ही रहने का फैसला किया।
वैसे तो संध्या बचपन से ही चंचल लड़की थी लेकिन मनोहर के गुजरने के बाद वह बिल्कुल ही गुमसुम रहने लगी थी और दिन भर अपना काम निपटाने के बाद खिड़की की तरफ बैठ कर देखती रहती थी उसे लगता था कि उसका मनोहर कभी ना कभी जरूर आएगा लेकिन जो इस दुनिया से चला जाता है वह कहां फिर लौट कर आता है।
संध्या के घर के बगल में ही 2 बच्चे रहते थे वह सुबह-सुबह लड़ते झगड़ते स्कूल जाते थे।
एक दिन उन बच्चों को देखकर संध्या भी अपनी यादों के झरोखे में चली गई और अपना बचपना याद आने लगा कैसे वह मनोहर से मिली थी और कैसे इनका प्यार हुआ।
संध्या के गांव में पांचवी तक का ही स्कूल था और आगे की पढ़ाई के लिए गांव से 10 किलोमीटर दूर एक छोटा सा कस्बा था वहां जाना पड़ता था इतनी दूर लड़कियों को पढ़ने कौन भेजता है तो संध्या के मां-बाप ने संध्या को उसके बुआ के घर जो इसके गांव से कोई 50 किलोमीटर दूर था रहने के लिए भेज दिया आगे वह अपनी मैट्रिक तक पढ़ाई वहीं से करेगी क्योंकि संध्या के पिता जी अपनी बेटी को पढ़ाना चाहते थे।
संध्या के बुआ जी ने अपना फर्स्ट फ्लोर किराए किराए पर दे रखा था और उसी किराए के घर में मनोहर के मां-बाप रहा करते थे मनोहर जीस स्कूल में पढ़ता था उसी स्कूल में संध्या का भी नामांकन हो गया था और अब दोनों एक साथ ही स्कूल जाना शुरू कर दिया था।
एक दिन सुबह-सुबह ही संध्या अपनी बुआ को आवाज देने लगी, बुआ बुआ। क्या हुआ संध्या, बुआ देखो ना आज मनोहर स्कूल नहीं जा रहा है अगर वह स्कूल नहीं जाएगा तो मैं भी स्कूल नहीं जाऊंगी। संध्या की बुआ बोली यह क्या बात हुई वह स्कूल नहीं जाएगा तो तुम नहीं जाएगी। संध्या ने अपना बस्ता उठाया और मनोहर के घर में चली गई और मनोहर को खींचकर स्कूल ले जाने लगी। मनोहर को स्कूल जाने का मन नहीं था लेकिन संध्या के जोर-जबर्दस्ती के कारण स्कूल जाना ही पड़ा मनोहर रास्ते में संध्या से कह रहा था तुम तो ऐसे करती हो जैसे मैं तुम्हारा गुलाम हूं तुम अपने आप को समझती क्या हो। मनोहर के इतना कहते संध्या के आंखों से दरिया बहना शुरू हो गया था मनोहर संध्या को चुप कराया और बोला ठीक है बाबा मैं रोज स्कूल जाया करूंगा अब तो चुप हो जा मनोहर और संध्या की दोस्ती इतनी गहरी हो गई थी कि वे दोनों एक दूसरे के बगैर एक पल भी नहीं रह पाते थे। मनोहर का पढ़ने में ज्यादा मन नहीं लगता था उसका सारा होमवर्क भी संध्या ही कर देती थी।
मनोहर तो कई दिन संध्या से अपना होमवर्क यह कह कर करवा लेता था कि अगर मेरा होमवर्क नहीं कंप्लीट करोगी तो मैं स्कूल नहीं जाऊंगा हमेशा फिर मुझे मनोहर का भी होमवर्क पूरा करना होता था।
धीरे-धीरे हम बड़े हो रहे थे और मैट्रिक का एग्जाम दिया उसके बाद 12वीं भी पास कर लिया और मैं अब अपने गांव वापस आ गई थी। क्योंकि इसके आगे मेरे पापा ने पढ़ने से मना कर दिया था और मनोहर कॉलेज में पढ़ने के लिए शहर चला गया था और कुछ दिनों के बाद ही खबर मिला कि मनोहर का सिलेक्शन आर्मी में हो गया है।
1 दिन मनोहर छुट्टियों में जब घर आया तो वह मेरे गांव मुझसे मिलने आया और चुपके से एक ब्लैक एंड व्हाइट फोन भी मुझे पकड़ा कर गया अब तो हमारी और मनोहर की फोन पर घंटो बातें होती थी हम बचपन की बातें याद करते और हंसते रहते थे।
1 दिन मैं फोन पर मनोहर से बात कर रही थी तभी मेरी मां ने मुझे आवाज दी संध्या नीचे आओ यह फोटो देखो तो कैसा लग रहा है तुम्हें। देखकर बताओ लड़का पसंद है। मैंने बिना फोटो देखे ही मां से बोल दिया ना मुझे अभी शादी नहीं करनी है क्योंकि मैं तो मनोहर से प्यार करती थी और इसी से शादी करना चाहती थी फिर वह दूसरा लड़का चाहे सलमान खान ही क्यों ना हो मुझे नहीं करना था।
मां ने बोला तुम्हें शादी करना हो या ना करना हो एक बार कम से कम फोटो तो देख लो तुम्हारे टेबल पर रख देती हूं। मां जैसे ही टेबल पर फोटो रखकर गई पता नहीं मेरे मन में क्यों ऐसा आया कि एक बार फोटो तो देखी लेती हूं कौन है। जैसे ही मैंने फोटो देखा मेरा होश ही उड़ गया। यह तो मनोहर का फोटो है। मैंने झट से मां के पास गई और मैंने मां से बोला मां मुझे फोटो वाला लड़का पसंद है।
मां ने मुझे सब कुछ बता दिया है कि मनोहर ने हमारी बुआ से हमारे साथ शादी की बात कर ली थी और मनोहर के घर वाले भी राजी थे क्योंकि बचपन से वह भी मुझे जानते थे।
कुछ दिनों के बाद बड़ी धूमधाम से हमारी शादी हो गई और शादी के कुछ दिनों बाद ही मनोहर की छुट्टी अचानक से रद्द हो गई और वह वापस अपने कैंट लौट गया। लेकिन हमारी बात फोन पर होती रहती थी और वह हमेशा कहता था कि मैं यहीं पर किराए मकान ले लिया है और बहुत जल्द तुम्हें अपने साथ रखूंगा।
संध्या अपने यादों के झरोखे में खोई हुई थी तभी संध्या की सास ने कहा बहु तुम्हें पता भी है तुम कब से धूप में बैठी हुई हो देखो खिड़की से कितना ज्यादा धूप आ रहा है। संध्या सच में भूल गई थी कि वह इतनी चिलचिलाती धूप में खिड़की के पास बैठी हुई थी।
संध्या के ससुराल वालों और उसके मायके वालों ने कितनी कोशिश की कि संध्या की दोबारा शादी कर दी जाए लेकिन संध्या तैयार नहीं हुई शादी करने के लिए। प्यार का एहसास ही ऐसा होता है कि जब एक बार आप को किसी से प्यार हो जाता है तो आप किसी और को इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर सकते हैं लेकिन जिंदगी एक नदी की तरह होता है जो लगातार बहता रहता है और इसे बहने देना भी चाहिए अगर आप अपनी जिंदगी में ठहराव लाएंगे तो आपकी जिंदगी नीरस हो जाएगी और आप तनाव ग्रसित हो जाएंगे इसलिए जो हुआ वह ईश्वर की मर्जी समझकर स्वीकार करना चाहिए और अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।
Writer:Mukesh Kumar