पिता का स्वाभिमान- शिप्पी नारंग : Moral Stories in Hindi

“अनूप और प्रिया आए हैं”। ममता जी कमरे में घुसते हुए पति सूरज जी से कहा । सूरज जी ने अखबार चेहरे से हटाकर पत्नी की तरफ देखा थोड़ा गुस्से से पूछा “कौन आया है ?” “आपके बेटा बहू …’और अभी आगे पति से कुछ कहती कि सूरज जी थोड़ी तल्खी से बोले “आता हूं बाहर।

” ड्रॉइंग रूम में अनूप और प्रिया, उनके बेटा और बहू बैठे हुए थे। पिता को देखते ही दोनों उठे और पांव छूने के लिए झुके “ठीक है ठीक है बैठो।” कहते हुए सूरज जी एक सोफे पर बैठ गए। ममता जी किचन की तरफ चल दी। जब तक ममता जी चाय और कुछ स्नैक्स लेकर नहीं आयीं

तब तक कमरे में गहन चुप्पी छाई रही। ममता जी ने ही पूछा -” और सब ठीक है ? आज चार साल के बाद हमारी याद कैसे आ गई ?”  अनूप ने पहले मां की तरफ देखा फिर पापा कि तरफ देखा और बोला ” याद तो मम्मा बहुत दिनों से आ रही थी पर हिम्मत आज ही कर पाएं हैं

आपके सामने आने की” और अनूप अचानक उठ कर पापा के पास गया और उनके पैर पकड़ कर बिलख उठा। प्रिया ने मुंह नीचे कर लिया उसकी भी आंखों में नमी थी। सूरज जी ने कुछ नहीं कहा। ममता जी की आंखों में आश्चर्य था कुछ पूछती कि अनूप की आवाज़ अाई ” पापा थैंक्यू शब्द बहुत छोटा है पर आज आप की वज़ह से ही मैं सिर उठा कर सब का सामना कर पा रहा हूं।

अगर आपने वक़्त पर हमारी सहायता न की होती 50 लाख न दिए होते तो पापा आज मैं जेल में होता ।” ममता जी ने चौंक कर पति की तरफ देखा- “50 लाख कब दिए, क्यों दिए ये मुझे नहीं पता और आपने  मुझे बताया भी नहीं ?” अब आश्चर्यचकित होने की बारी अनूप और प्रिया की थी। सूरज जी की आवाज़ अाई ” हां नहीं बताया क्योंकि तुम तब तनाव में आ जाती हैं जब मैं तुम्हे ये बताता कि हमारे इस साहबजादे ने लाखों रुपए लोन

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लिया था एक फाइनेंस कंपनी से जिसे ये चुका नहीं पाया और कंपनी ने इस पर केस कर दिया था तो मैंने वो चुका दिए बस।” “नहीं पापा बस नहीं – आपको नहीं पता आपने हमारे लिए क्या किया है जब सब ने हमारी सहायता करने से मना कर दिया तब आपने ही बिना कुछ जताए हमें इस मुसीबत से निकाला ।

मैं और प्रिया आज उसी के लिए आपके पास आए हैं हम दोनों ने आपके साथ जो किया उसके बाद भी आपने हमारी सहायता की वो हमारा सुर झुकाने के लिए काफी है हम माफी मांगने आए हैं। आप दोनों प्लीज़ हमें माफ़ कर दें, जो हुआ उसे भूल जाएं आगे से ऐसी गलती  फिर नहीं होगी, हम फिर इकट्ठे रहेंगे,

आपको शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा। हम…” सूरज जी ने हाथ उठा कर अनूप को इशारा किया -“नहीं, माफ तो मैं तुम्हे मरते दम तक नहीं करूंगा। तुमने मुझे कुछ कहा होता तो शायद मैं सह भी लेता पर तुमने और तुम्हारी बीवी ने अपनी इस मां पर सोने के सेट की चोरी का इल्ज़ाम ही लगा दिया।

तुम भूल गए थे तुम्हारी इसी मां ने तुम्हारी बुआ के लिए अपना सारा सोना तुम्हारे दादा दादी के हाथ में रख दिया था कि घर की इज्ज़त का सवाल है सोना तो ज़िन्दगी में कभी भी बन जाएगा पर आपकी पगड़ी मैं उछलने नहीं दूंगी।  खुद नौकरी करते हुए भी कभी पैसों का मोह नहीं रखा।

तुम्हारी पढ़ाई लिखाई, तुम्हारे कैरियर को बनाने के लिए उसने क्या क्या ना किया मुझसे पूछो जिंदगी की हर मुश्किल में एक सच्चे हमसफर की तरह मुझे संभाला, परिवार को बिखरने नही दिया, हर कदम पर मेरा साथ दिया और तुमने अपनी मां को ही चोर बना दिया। तुम्हारी बीवी ने तुम्हारी मां की अलमारी की तलाशी तक ले ली

और तुम उसका साथ भी दे रहे थे तलाशी में, तुमसे एक बार भी विरोध में कुछ कहा नहीं गया इसका अर्थ तो ये था ना कि तुम्हे भी लगता था कि तुम्हारी मां ऐसा कर सकती है। और बाद में  वो सेट इसी प्रिया की अलमारी के नीचे से मिला तो तो बड़े आराम से कह दिया सॉरी कभी कभी ऐसा हो जाता है। तो बरख़ुरदार,

ये बात तो मैं ऊपर जाने पर भी नहीं भूलूंगा और माफ़ी तो बहुत दूर की बात है मैं तो तुम दोनों की शक्ल भी नहीं देखना चाहता, साथ रहना तो भूल ही जाओ। आज मुझे मेरा ईश्वर भी आकर कहेगा ना कि इन्हें माफ़ कर दो तो मैं उसे भी मना कर दूंगा। इस देवी का अपमान मेरे स्वाभिमान पर एक चोट है।

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हां, सहायता भी इसीलिए की थी कि अगर तुम्हारे जेल जाने की खबर इसे मिलती तो ये उसी दिन ऊपर चली जाती और मैं इसे खोना नहीं चाहता। तो वो सब मैंने तुम्हारे लिए नहीं अपने लिए किया है।

हां अगर तुम्हारी मां तुमसे मिलना जुलना चाहती है तुमसे रिश्ता रखना चाहती है तो ना मैंने पहले मना किया था ना अब करूंगा फैसला उसका है कोई दबाव नहीं है पर मुझ से तो तुम दोबारा जुड़ने की उम्मीद भी मत रखना” कहते हुए सूरज जी उठकर घर से बाहर ही निकल गए । अनूप ने मां की तरफ देखा तो ममता जी बोल उठी

-” बेटा शायद तुम्हें ये बात अभी नहीं समझ आएगी पर जब तुम खुद बाप बनोगे तब समझोगे कि औलाद का एक गलत कदम ही मां बाप को तोड़ने के लिए काफी होता है। मां बाप तो अपने ही होते हैं बस औलाद ही बदल जाती है।” कमरे में चुप्पी का ये आलम था कि सुई भी गिरती तो आवाज़ हो जाती ।

शिप्पी नारंग

नई दिल्ली

VM

6 thoughts on “पिता का स्वाभिमान- शिप्पी नारंग : Moral Stories in Hindi”

  1. पिता ने अपने नालायक,संस्कार हीन, एहसान फरामोश बेटे बहू को अपनी पत्नी की खातिर मदद करी, वरना वे लोग इसके लायक हरगिज नहीं थे।

  2. बहुत ही सही कदम,
    बेटे और बहु ने मां बाप के स्वाभिवान को ठेस पहुंचाई।
    ऐसे नालायक बच्चो को कभी माफ नहीं करना चाहिए।

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