राघव एक सीधा सादा नवयुवक था पिता की एकमात्र संतान ,
अच्छी पढ़ाई व पालन पोषण के कारण समाज मे अच्छी प्रतिष्ठा थी,
लोग बहुत सम्मान करते थे,
शादी के लिये रिश्ते आये तो जानकी नाम की एक शिक्षित व सुसंस्कृत महिला से विवाह कर लिया,
इधर एक बेटा हुआ राघव के तो दोनो बहुत खुश हुये ,,
उसका नाम कान्हा रख्खा
इस बीच एक एक कर राघव के माता पिता स्वर्ग सिधार गये,
तो राघव पुश्तैनी दुकान पर पूरा समय देने लगे,
इस बीच अब कान्हा स्कूल जाने लगा ,
पढ़ाई में बहुत अच्छा था जब भी रिजल्ट आता तो कान्हा प्रथम ही आता ,राघव खुश होकर स्कूल में मिठाई भेजता था ,और टीचर को गिफ्ट भी,
उसे कान्हा में एक अच्छे योग्य बेटे का अक्स दिखने लगा वह बड़े बड़े सपने देखने लगा,
इंटर की पढ़ाई के बाद कान्हा को विश्वविद्यालय की पढ़ाई हेतु भेज दिया गया,,
राघव और जानकी बहुत खुश थे कि उनका बेटा अधिकारी बनकर बापस आयेगा,
ओर खुशी में उनकी आंखें नम हो रही थी,
कान्हा चला गया तो थोड़ी देर तक लगा कि घर खाली हो गया,
उधर कान्हा पढ़ाई में लग गया,
विश्वविद्यालय में एक लड़का रतन कान्हा का खास दोस्त बन गया वह बहुत बिगड़ैल किस्म का था,
वह कभी घर नही जाता था और पिता को उल्टा सीधा कहता था,
कान्हा को लगा यह अपने पिता को कहता है तो हंमे क्या ,
एक दिन वार्षिक उत्सव था तो कान्हा ने घर पर मम्मी पापा को भी बुलाया पर राघव की तवियत खराब हो गई तो कोई न पहुंचा उधर कान्हा भी नही आ पाया देखने,
पर कान्हा के मन मे अपने दोस्त की बात घर कर गई कि पिता सिर्फ पढ़ने छोड़ देते है स्कूल में और मिलने भी नही आते,
शाम को दोनो कैंटीन पहुंचे और दोस्त के उकसावे पर एक पैग लगा लिया फिर क्या थी नशे की लत लग गई,
घर से सम्पर्क टूट गया ,फोन करने पर बात नही करता था,मम्मी को कहता था पढ़ाई डिस्टर्व होती है ,
एक दिन राघव विश्वविद्यालय पहुंचा और कान्हा से मिला तो कान्हा ने कहा आप सिर्फ पैसे बना लो हमसे क्या लेना,
हम तो अब बाहरी हो गये है,
राघव को जैसे सदमा सा लगा ओर चक्कर आ गया,
स्कूल से वाहर आकर एक पेड़ के नीचे बैठकर बहुत रोया,
फिर ट्रेन पकड़ कर घर आ गया,जानकी ने पूंछा तो हंसकर कहा कान्हा जल्द ही पढ़ाई पूरी करके घर आ जायेगा,
एक अधिकारी बनकर उसी के लिये तो मेहनत कर रहे है,
कुछ और मेहनत ज्यादा करेंगे क्योकि फीस फिर से जमा करनी होगी,
कान्हा के बदले व्यवहार से बहुत दुःखी था राघव ,
इसी कारण बीमार रहने लगा ,
उधर मेहनत भी बहुत करता था,
अंतिम वर्ष की फीस भेजते वक्त उसने एक पत्र भी लिखा कान्हा को,,
,पर कान्हा ने फीस लेकर जमा कर दी और लेटर अलमारी में रख दिया खोलकर भी नही पढ़ा,
कैंपस सिलेक्शन हुआ तो एक विदेशी कम्पनी में मैनेजर की पोस्ट मिल गई,
ज्वाइन करने चला गया,बापस आकर
हॉस्टल में जो सामान था उसे लेकर घर रखने हेतु वह घर रवाना हुआ,
इधर राघव की अंतिम सांस चल रही थी पास ही जानकी व्यथित थी कि कैसे क्या होगा,
दुकान बंद हो गई थी,
बीमारी के कारण इधारी चुकाने में ही सारा सामान बिक गया था,
कैंसर था राघव के तो डॉक्टरों ने जवाव दे दिया था,
अचानक जब घर के वाहर गाड़ी रुकी तो कान्हा ने पिता जी को आवाज दी राघव ने आंख खोलकर देखा तो कोई नही था उसने इशारा किया जानकी को कि देखो वाहर कान्हा आया है,
जानकी ने देखा तो राघव के लिपट गई कहा और हाथपकड कर राघव के पास ले गई तो कान्हा को चक्कर आ गया,
पिताजी की हालत देखकर रोने लगा और कहा इतनी खराब हालत थी तो खबर क्यो नही की,
तो जानकी ने कहा तुम्हारा नम्वर भी तो नही लगता लगता था तो बात नही करते थे ,पिताजी मिलने गये तो तुमने हालचाल भी नही लिया ,
एक लेटर भेजा फीस के साथ शायद तुमने वह भी नही पढ़ा,
कान्हा दौड़ते हुये गया और सामान में वह लेटर तलाशने लगा ,
एक लिफाफा हाँथ लगा खोला तो वही लेटर मिला,
खोला तो पढ़ते पढ़ते आंसू का सैलाब आ गया लिखा था,,
प्रिय कान्हा
तुमसे मिलने गया था सोंचा एक पिता अपना हर दर्द बेटे के साथ साझा करें जो जानकी के साथ नही कर सकता ,
मुझे कैंसर है मेरी जिंदगी थोड़ी सी है,
जो पैसे है वह दवा के रूप में खर्च हो रहे है दुकान बेच दी है,
जो पैसे है उनमें से तुम्हारी फीस भेज रहा हूँ,
यदि समय हो तो देख जाना शायद अब न मिल सकूं,
माँ का ख्याल रखना,
तुम्हारा पिता,
राघव,
कान्हा जैसे ही राघव के पास फिर पहुंचा तो राघव के प्राण पखेरू उड़ चुके थे,
कान्हा सर पकड़कर वही बैठ गया कि काश एक पिता को समझ पाता,
अंतिम संस्कार और सारे कार्यक्रम के बाद
माँ को लेकर चला गया ,
सबक,,
बच्चो को माता पिता से भी उनके हालचाल लेते रहना चाहिये,,
गलतफहमी कभी कभी बहुत दुःख देती है,,,,
लिखते लिखते आंसू टपक रहे है
लेखक गोविन्द