विनीता के कानों में विदाई के समय, पिता के द्वारा दी गई नसीहत अभी भी गूंज रही थी…”आज से ससुराल ही तेरा असली घर है, हंसी खुशी आएगी तो पीहर के द्वार सदा खुले पाएगी लेकिन ससुराल से कोई शिकायत आई तो इस घर के दरवाज़े अपने लिए सदा के लिए बंद ही समझना”….
विनीता ने भी पिता की ये बात गांठ बांध ली और भरे मन से ससुराल आ गई।… मध्यम वर्गीय परिवार की चार बहन भाइयों में सबसे बड़ी संतान विनीता की पढ़ाई आठवी के बाद ही छुड़वा दी गई हालांकि उसने रो रोकर अपनी मां से ख़ूब मिन्नते भी की थी की मेरी इच्छा पढ़कर अपने पैरो पर खड़े होने की है,
मगर उसकी एक ना चली… सीमित आय और बढ़ते हुए खर्चों से परेशान विनीता के पिता ने एक बिचौलिए के लाए हुई रिश्ते को विनीता की मर्ज़ी जानें बगैर मंजूरी दे दी… मां ने दबी ज़ुबान से विद्रोह भी किया दरअसल रिश्ता एक अमीर घराने से आया था और लड़के का ये दूसरा विवाह था,
उसकी पहली पत्नी का देहांत प्रसव के दौरान हो गया था, मगर लोगों से सुनने में ये आया था की पहली बीवी की मृत्यु प्राकृतिक नहीं थी, मगर पैसे के बल पर ये बात दबा दी गई … विनीता की खूबसूरती और गरीब परिवार की जानकर लड़के वालों ने खुद ही रिश्ता भेजा था… बिना दहेज और शादी का सारा खर्चा लड़के वालों ने खुद ही वहन करने का प्रस्ताव दिया तो विनीता के पिता ने “हां” करने में बिलकुल समय नही लिया।
ससुराल में कदम रखते ही विनीता वहा की वैभवता देख खो सी गई, सभी रस्मों के दौरान सास का रूखापन विनीता साफ़ महसूस कर रही थी… थोड़ी देर बाद विनीता को आराम करने उसके कमरे में भेज दिया, कमरा बहुत सुंदर और फूलों से सजा हुआ था, सुबह से थकी हुई वह थोड़ी देर में ही नींद के आगोश में चली गई।
देर रात किसी के झंझोर के उठाने पर विनिता ने आंखें खोली तो सामने नशे में धुत अपने पति विजय को खड़े देखा, प्यार के दो बोल सुनने को बेकरार विनीता के सारे अरमानों, इच्छाओं को पति विजय ने अपनी वासना पूर्ति के तले रौंद डाला और बेबस विनीता पूरी रात अपनी किस्मत पर सिसकती रह गई।
ससुराल क्या था, पूरा जेलखाना था, सास ससुर का व्यवहार उसके प्रति बेहद रूखा था, अपनी मर्जी से कुछ भी करना विनीता के लिए निषेध था, पूरा दिन पिंजरे में कैद पक्षी की तरह फड़फड़ाती रहती।
विजय सुबह जाकर रात को नशे में धुत होकर आता, विनीता उसके लिए सिर्फ जरूरत पूरी करने के लिए ही थी, उसके दुख सुख से उसे कोई मतलब ही नहीं था… एक बार विनीता ने अपने मन का दुख अपनी मां के साथ सांझा किया तो मां ने उल्टे उसे ही नसीहत दे डाली की अब जैसा है वही तेरा घर है, हम अपना कर्तव्य पूरा कर चुके है तो तुम्हे अपने ससुराल वालो के हिसाब से ही चलना होगा, पढ़ी लिखी भी नही थी की कुछ काम ही कर लेती, हालातों से समझौते के अलावा विनीता के पास कोई रास्ता बचा भी नही था…
एक रात अपने दो दोस्तों के साथ घर पर जमकर दारू पार्टी करने के बाद विजय ने विनीता से कहा आज तुम मेरे दोस्तों को भी खुश कर दो, ऐसी घिनौनी बात सुनकर विनीता गुस्से से भर गई और विजय के साथ उसके दोस्तों को भी खरी खोटी सुनाने लगी, ये विजय को बर्दास्त नहीं हुआ और विनीता का गला पकड़कर तब तक दबाता रहा
जब तक के उसके प्राण ना निकल गए…. सारी घटना को एक्सीडेंट का नाम देकर केस रफा दफा करा दिया गया, गरीब पिता का भी ढेर सारा रुपया देकर मुंह बंद करा दिया…
अर्थी पर दुल्हन की तरह सजी हुई विनीता के ऊपर झूठे आंसू बहा रहे सभी मतलब के रिश्तों को देख, वही एक कौने में बैठी “अभागन” विनीता की रूह परमात्मा से बस यही दुआ कर रही थी की….
“हे दाता, अगले जन्म मोहे बिटिया ना कीजियो”….
स्वरचित मौलिक रचना
कविता भड़ाना