कभी-कभी इंसान इतना बेबस हों जाता है कि उस इंसान को भी सुना देता है जिसे वो बहुत अच्छी तरह से जानता हो…. ऐसा ही आज सद्भावना निवास में हुआ था जहाँ घर की बेटी तो नहीं पल बेटी जैसी पर भरोसा नहीं किया जा सका था….कनिका वो लड़की जो इस घर को अपना और यहाँ के लोगों पर जान छिड़कती थी पर आज जब उसपर सबने उँगली उठाया तो वो बर्दाश्त ना कर सकी और
उसका दर्द अब आँखो में और ना सिमट सका और आँसू बन कर बाहर बह निकला।
सालों से इस घर में अपनी सेवा के परिणामस्वरूप ऐसा इनाम मिलेगा वो सोच भी नहीं सकती थी।आज वो भी उसको कटघरे में खड़ा कर सवाल करने लगे थे जो कल तक उसपर जान छिड़कते थें।
कनिका भाग कर बूढ़ी दादी के कमरे में गई और उनके पैरों पर अपना सिर रखकर रोती और कहती जा रही थी,‘‘ दादी आप तो सब जानती है ना….मैं कभी भूलकर भी ऐसा नहीं सोच सकती जो इल्जाम बड़ी भाभी ने मुझपर लगाया…..माँ बाबूजी भी बडी भाभी की बात पर भरोसा कर रहे मैं किसके पास जाकर अपना दुखड़ा सुनाऊं ….आप सुन तो लेंगी पर मुझे समझाएगी कैसे…..आप भी बस बिस्तर पर पड़ी हो दादी कुछ तो बोलो?’’एक उम्मीद की नजर से वो दादी को देख रही थी।
दादी जो छःमहीने से बिस्तर पर पड़ी है, ना कुछ बोलती ना कुछ कर सकती ।
कनिका रोती जा रही थी और इस घर में अपनी जगह के बारे में सोच रही थी।
वो इस घर में बचपन से आती जाती रहती थी। उसकी माँ घर की रसोई संभालती और पिता बाग बगीचे की सफाई का काम करते….कनिका इस घर के मालिक कमल जी को बाबूजी और मालकिन चंचला को माँ ही कहती आई…..उनके तीन बच्चों में दो बेटे एक बेटी….अभी दो साल पहले एक एक कर के बड़े बेटे किशोर और बेटी खुशी की शादी किए थे….छोटे कुणाल की शादी बाकी थी….जो कनिका के हमउम्र ही था।
बचपन से ही चंचला जी कनिका को बहुत लाड करती और अपनी बेटी मान उसको भी अपनी बेटी के जैसी ही शिक्षा दीक्षा दिलवाई।
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कनिका के माता पिता वर्षों तक उस घर में अपनी सेवा देते रहे….पर ज्यादा दिन कनिका का साथ ना दे सके। उनके जाने के बाद कमल और चंचला जी ने ही कनिका की पूरी जिम्मेदारी उठा ली। अब वो एक कम्पनी में नौकरी करती थी।
कमल जी का बड़ा बेटा बहू दूसरे शहर रहते थे। वो बस कभी कभी आते थे। पता नही क्यों बड़ी बहू तनु को कनिका एक आँख ना सुहाती थी। उसको हमेशा लगा रहता कि घर में तीन नहीं चार बच्चे हैं और जो भी जमीन जायदाद का हिस्सा तीन में बँटना चाहिए वो चार हिस्सों में ना बँट जाए क्योंकि कमल और चंचला जी का स्नेह ही उसके साथ इतना था।
दूसरा बेटा भी दूसरे शहर में ही नौकरी करता था, घर में एक बड़ी पूजा का आयोजन था इसलिए सब आए हुए थे।
पूजा वाले दिन सब कामों में व्यस्त थे। कनिका कमला जी के आगे पीछे घूम रही थी। तभी बड़ी बहू के जोर जोर से चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। सब भाग कर उधर इकट्ठे हुए पता चला उसके हीरे की अंगूठी नहीं मिल रही। पूरे घर में खोजबीन शुरू हो गई पर अँगूठी ना मिली।
‘‘ कनिका तुने तो नही लिया है ना? कल तू बोल रही थी ना बहुत खुबसूरत अँगूठी है भाभी बहुत जँच रही आप पर। पक्का तुने ही लिया है तुझे लालच आ गया होगा। नहीं तो आजतक कोई चीज गायब ना हुई फिर आज गायब हुई मतलब तुम्हें अच्छी लगी तो ले लिया।’’बडी़ भाभी ने खड़े खड़े सीधे उसपे निशाना साध दिया।’’
कमल जी और चंचला जी ने बहुत कहा ,‘‘ बड़ी बहू तुमने ही कही रख दिया होगा एक बार देख तो लो ….बेकार इस पर इल्ज़ाम लगा रही हो….इतने साल से ये हमारे साथ है मजाल है जो कुछ बिना पूछे हाथ लगा दें।’’
पर बड़ी भाभी अपनी बात पर ऐसे अड़ गई कि सच में कनिका ने ही अँगूठी लिया होगा…..“पता नहीं क्या क्या लेकर जाएगी यहां से.. ..ऐसा लगता है घर की सगी हो, जमीन जायदाद पर भी अपना हिस्सा मांगने लगेगी….आप दोनों इसको सिर पर चढ़ा कर रखे हुए है ….मुझे तो लगता है ये इस घर की बहू बनने के सपने देख रही है….. ।”और भी ना जाने क्या क्या.. ।
‘‘ देख बेटा अगर तुम्हें पसंद आ गई और तुने ले लिया तो बता हम तुम्हें दूसरी बनवा देंगे पर चोरी करना सही नहीं।’’चंचला जी प्यार से बोली
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चंचला जी की बात सुनकर कनिका का दर्द आँखो में अब और ना सिमट सका और आँसू बन कर बाहर बह निकला। बड़ी भाभी तो अभी की आई है वो बोल भी रही तो वो मन में कुछ ना रख रही थी पर जैसे ही माँ स्वरूपा चंचला जी ने कहा वो खुद को रोक ना पाई….और भाग कर दादी के पास आ गई थी।
अपने आपको समझाते हुए कनिका कुछ सोच कर उठी और अपने कमरे में जाकर सामान बाँधने लगी।
घर से निकलने से पहले वो माँ बाबूजी को मिलने गई , वो भी पनीली आँखो से बस उसे जाते देख रहे थे….क्योंकि बड़ी बहू ने लांछन ही ऐसे लगा दिए थे जो कोई स्वाभिमानी व्यक्ति बर्दाश्त नहीं कर सकता था फिर दोनों बहू के आगे उसको तरजीह दे कर घर का माहौल बिगाड़ना नहीं चाहते थे।
कनिका घर से निकल गई।
कुछ देर बाद कमल जी का बड़ा बेटा घर आया तो बोला,‘‘ तनु कहाँ हो तुम …..अपनी किसी चीज को संभाल के नहीं रख सकती……वो तो भला हो उस धोबी का जिसने तुम्हारे कपड़ों में लिपटी ये अँगूठी मुझे दे दी।’’
‘‘ मैं कह रही थी तुम एक बार देख लो, पर तुमने तो कसम खा रखी थी ना कनिका को जलील करने की….अब खुश रहो चली गईं वो अब यहां से…..जाने अब आएगी भी और नहीं।’’दुखी स्वर में चंचला जी बोली
तनु अपने किए पर शर्मिंदा हो कर बोली,‘‘मुझे माफ कर दीजिए माँ…..मैं शायद कनिका को समझ नहीं पाई।’’
‘‘माफी माँगने की कोई जरूरत नहीं है भाभी, देखो ले आया कनिका को।‘‘ सामने अपने देवर की आवाज सुन कर चौंक गई।
कनिका के आँसूओ से भरे चेहरे को देख तनु उससे भी माफी माँग ली।
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‘‘ माँ तुम बिन मेरा कोई ना दूजा फिर ये भरोसा क्यों टूटा?’’ कहकर कनिका चंचला जी को पकड़ कर रोने लगी।
‘‘ मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची, कई बार इंसान विवश हो जाता,…..अब ऐसा कभी ना होगा।‘‘ कहकर चंचला जी कनिका को गले से लगा ली।
कनिका का इस घर के अलावा कोई और आसरा ना था। चंचला जी ने एक साल बाद अपने छोटे बेटे की मर्जी पूछ कनिका को अपनी बहू बना ली।वो जानती थी इससे अच्छी बहू कोई और उनको मिल भी नहीं सकती जो इस घर को इतना अपना समझ सकें।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश