गौरी की भाभी (नित्या) बड़ी मेहनती है, बहुत अच्छी बहु मिल गई सुनीता (गौरी की मां) को, सारा घर आते ही संभाल लिया.सुबह चार ही बजे जगती है और शाम तक लगी रहती है फिर भी जरा सी भी शिकन नहीं लाती चेहरे पर!परफेक्ट बहु है नित्या।
सासू मां जबसे बड़ी वाली जेठानी जी (गौरी)के मायके से आई हैं, उनकी भाभी के गुणगान किए जा रही हैं! हम ससुराल में नए नए थे!इतनी तारीफ सुन हम भी नित्या भाभी के बड़े वाले फैन बन गए!और खुद को उन्ही की तरह बनाने की जुगत में लग गए खैर वो बात अलग है कि हम चाहें जितना कुछ कर लें, सासू मां हमारी तारीफ तो करने से रही लेकिन फिर भी हम मन में एक आस लगाए रहे कि शायद सासू मां कभी भूल चूक से ही मेरी तारीफ कर दें, या कभी हमारे गले में भी परफेक्ट बहु का तमगा लटका दें।
अरे, अपने बारे में तो हम बताए ही नहीं,अरे हम, अपनी सासू मां की छुटकी बहु तारा, काम में फिसड्डी,आलसी, कामचोर,,,और भी जाने क्या क्या…. सासू मां की नजर में! ऐसे शब्द बोल बोल कर सासू मां मुझको शर्मिंदगी का एहसास कराती रहती और मुझे खुद इस बात से शर्मिंदगी महसूस होती कि मैं एक परफेक्ट बहु नही हूं!
खैर, मेरी दोनों जेठानियां अलग अलग शहरों में रहती हैं, हां,,कभी कभार तीज त्योहार में आती हैं!ऐसा नहीं कि मेरी वो दोनो जेठानी सासू मां की नजर में परफेक्ट बहुएं हैं, उनकी भी पहचान सासु मां की नजर में वही है,जो मेरी है!
दूसरी बार सासू मां मेरी दूसरी वाली जेठानी सरिता भाभी के मायके गईं और जब वहां से लौटीं तो उनकी भाभी का गुणगान करने लगीं, रीमा तो बड़ी गुणवान है…एक पैर पर चकरघिन्नी की तरह दिन भर नाचती रहती है और अपनी सास नंद को तो कुछ करने ही नहीं देती…खाने के टेबल पर तो छप्पन व्यंजन बना कर रखती है, किस्मत वाली हैं समधन जी, जो ऐसी बहु पाई हैं!
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सासू मां की बात सुन, अब मैं रीमा भाभी की भी वही बड़की वाली फैन हो गई. मैं भी खाने में छप्पन व्यंजन बनाने की कोशिश करती फिर भी पता नहीं कौन सी कमी रह जाती है जो मैं परफेक्ट बहु नहीं बन पा रही हूं!मुझे खुद पर खीझ होती!ये खीझ उस समय तो और बढ़ जाती, जब सासू मां मेरे कामों में मीनमेख निकालतीं और रिश्तेदारी की बहुओं की तारीफ करतीं,और सिर्फ रिशेतरों की ही नहीं, आस-पड़ोस की बहुओं की भी खूब तारीफ करती! कभी-कभी तो इस खीझ में मैं खुद को बीमार कर लेती और बीमारी हालत में भी एक टेंशन लगी रहती कि अभी घर का काम पड़ा है, कैसे होगा!
समय बीतता रहा, और मैं खुद को परफेक्ट बहु के पैमाने पर खरा उतारने का असफल प्रयास करती रही! हां, असफल प्रयास, क्योंकि परफेक्ट बहु का कोई पैमाना होता ही नहीं…ये बात मुझे भी बहुत दिन बाद पता चली!
जब एक बार हमारे घर इत्तफाक से दोनों जेठानियों की मम्मियां आई!तीनों समधनें बैठकर बातें कर रही थी, यूं ही बातों बातों में सुनीता आंटी बोल पड़ी,समधन जी,आप बड़ी खुशकिस्मत हैं, जो ऐसी बहु मिली है…इतना काम करती है घर को इतने अच्छे से संभाला हुआ है, आपकी सेवा भी करती है!तरह तरह के व्यंजन बनाती है!
इतना सुनते ही तो मैं आसमान में उड़ने लगी, मतलब मैं भी परफेक्ट बहु की श्रेणी में आ गई, खुशी से मेरे गाल लाल हो गए,सच्ची! लेकिन अगले ही पल कुछ ऐसी बात सुनी मैंने कि सीधे आसमान से जमीन पर धड़ाम से गिरी!
सुनीता आंटी आगे बोलीं, एक मेरी बहु है…जो बस उल्टा सीधा काम निपटाया और चली गई अपने कमरे में आराम फरमाने, ना खाना ढंग का बनाना आता है, और न कुछ!एक नंबर की आलसी है!
हैं…सासू मां तो कितने बखान करती थीं नित्या भाभी के और उनकी सास उनमें कमियां निकाले जा रही हैं!
मैं सोच ही रही थी कि शीला आंटी ने भी बोलना शुरू किया, हां समधन जी, आप सच में किस्मत की धनी हैं… वर्ना ऐसी बहु मिलती कहां हैं भला! मेरी बहु भी तो आलसी कामचोर है और क्या क्या बताएं समधन जी!
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हैं,,,रीमा भाभी भी??मुझे तो झटके पे झटके लग रहे थे, बस इतना समझ लो कि बेहोश होते होते बची मैं!जिन दोनों भाभियों को मैं अपना आदर्श मान रही थी ,वो खुद मेरे जैसे निकली, मेरा मतलब हमारी सासो के नजरिए से, काम में फिसड्डी, आलसी, कामचोर!
खैर,,,,मेरी सासू मां को कहां खबर थी कि उनकी बातें मेरे कानों तक पहुंच रही हैं!उनके जाने के बाद भी मेरे सामने उनकी बहुओं की तारीफें सासू मां करती रहतीं और मेरे कामों में मीनमेख निकालती रहतीं!
लेकिन, एक बात तो मुझे समझ आ ही गई थी कि दूसरों की बहुओं की तारीफें करने के पीछे सासू मां की बस एक ही मंशा होती थी कि मैं बस परफेक्ट बहु के पैमाने पर खरा उतरने का प्रयत्न जारी रखूं, वो पैमाना जिसका कोई आकर ही नहीं!एक बात और समझ गई थी, कि अपनी बहु किसी को नहीं भाती।बस दूसरों की ही बहु सबको अच्छी लगती है।
एक दिन मैंने बोल दिया, सासू मां, किसी भी सास को अपनी बहु में कमियां और दूसरों की बहु में खूबियां ही नजर आती हैं!कोई भी सास अपनी बहु से कभी खुश हो ही नहीं सकती!हर सास को बस दूसरे की बहु ही अच्छी और परफेक्ट लगती है! वो कहते हैं ना,दूर के ढोल सुहावन होते हैं!अपनी सास के नजर में कोई बहु परफेक्ट हो ही नहीं सकती, हां, दूसरों की नजर में जरूर परफेक्ट बहु बन सकती है और वो दूसरों की नजर में मैं भी बन चुकी हूं! उस दिन मैंने सुनीता आंटी और शीला आंटी से अपनी तारीफें सुन ली थी!
सासू मां तो हक्की बक्की रह गईं,,ये सुनकर!
लेकिन सच बता रही हूं…उस दिन से खुद को परफेक्ट बहु की रेस से बाहर कर लिया मैने!परफेक्ट बहु के पैमाने पर खरा उतरने का प्रयत्न करना छोड़ दिया मैने!सच,,,, उस दिन से अब अपने ऊपर न खीझ होती है,,,ना ही फ्रस्ट्रेशन!अब अपने में ही खुश रहती हूं मैं,,,जितनी हिम्मती जचती है,,,उतना ही काम करती हूं,,,,अपनी क्षमता से ज्यादा कर के खुद को बीमार नही करती मैं!
और अब मुझे खुद पर शर्मिंदगी भी नहीं महसूस होती,,, कि मैं परफेक्ट बहु नहीं हूं, हां क्योंकि मैं जान गई हूं कि परफेक्ट बहु का कोई पैमाना होता ही नही!और मुझे ये भी पता चल गया कि नित्या भाभी, और रीमा भाभी भी कामचोर या आलसी नही है,,बस उनकी भी सासों का ये नजरिया है कि, उनकी बहु कामचोर और आलसी है!
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और अब सासू मां को भी शायद समझ आ चुका है,,,ये दूर के ढोल सुहावन वाली कहावत का मतलब,,,तभी तो,,,अब वो किसी और की बहु से मेरी तुलना नही करती हैं!सच्ची..!!
#बहु स्वरचित मौलिक
प्रीती वर्मा