पहले पहले प्रेम का बंधन” – ऋतु गुप्ता

घर में घुसते ही देखा मेज पर एक शादी का कार्ड रखा है, उत्सुकता वश कार्ड खोलकर देखा,कार्ड पर दुल्हन के नाम में अपनी नंदिनी का नाम देखकर जी धक से रह गया, सोचा ये क्या मेरी नंदिनी ही मेरे शहर आ रही है… किसी और की दुल्हन बन कर!

पता नहीं कभी कभी किस्मत भी क्या खेल खेलती है, जिससे मिल नहीं सकते, जिसको दिल भूलना चाहिए उसको ही बार बार सामने लाकर खड़ा कर देती है।

यह पढ़कर हैरान भी था और परेशान भी कि मेरी नंदिनी का रिश्ता हमारे ही शहर में हमारी  ही पहचान वाले घर में हुआ था।

करीब सात वर्ष पहले की सारी बातें आंखों के सामने आ गई, मुझे याद है आज भी वो दिन जब नंदिनी गर्मियों की छुट्टियों में अपनी मौसी के घर आई थी और मैं भी अपने मामा यानी उसके मौसा जी के घर छुट्टियां मनाने गया हुआ था। उसका साफ गेहूआं रंग था, ना ज्यादा गौरा ना ही सांवला

, करीब 5 फुट 3 इंच लंबाई, गुलाबी रंग का सूट सलवार और नीले रंग का दुपट्टा  पहने थी, दोनों कलाइयों में सफेद मोती के कंगन मानो सुरक्षा घेरे में उन कलाईयों को घेरें हो…..लड़की क्या थी, मानो लिली का सफेद फूल हो,सोलह वर्ष की उम्र हुई होगी उसकी, मैंने भी अभी जल्दी में ही अट्ठारहवें वर्ष में प्रवेश किया था।

यूं तो शायद बचपन में भी हम पहले कभी मिले होंगे, लेकिन आज वो मुझे कुछ अलग ही दिखाई दी, मानो कोई अप्सरा धीरे धीरे मेरे दिल में घर कर रही हो, देखने में तो साधारण ही थी, पर उसकी सादगी उसके वो लंबे  काले थोड़े घुंघराले,  कमर तक लम्बे बाल,जब वो बालों को संवारती एक कंधे से दूसरे कंधे तक ले जाती, मानो जैसे मेरे दिल पर बिजलीयां सी गिरा रही हो।

उसको देखकर लगता मानो ये गाना उसी के लिए बना हो,

“ना कजरे की धार, ना मोतियों के हार,ना कोई किया श्रंगार फिर भी कितनी सुन्दर हो”

वैसे भी इस उम्र का मोड़ होता ही इतना सुहावना है कि अपने आसपास हर चीज आपको मनमोहक लगने लगती है, विशेष तौर पर जब, जब कोई आपकी आंखों में कोई इस कदर समा जायें कि उसकी सूरत के अलावा आपको कुछ भी ना दिखाई दे। उसे तो शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि मैं मन ही मन उसे चाहने लगा हूं, वो मेरे एहसासों से अनजान थी।



एक दिन मुझे अच्छे से याद है भारी  चिलचिलाती गर्मी के बाद जब बारिश हुई तो मौसम सुहावना हो गया, मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू आने लगी, और इंद्रधनुष भी अपनी सतरंगी छटा आसमान में बिखेर रहा था, नीले नीले आसमान मे मानो रूई के बोसोन ने जगह जगह अपना डेरा डाल दिया हो, सभी बच्चे इस सुहाने मौसम का लुत्फ उठाने छत पर भागे, नंदिनी भी मेरे मामा की बेटी दिव्या के साथ सुहाने मौसम का लुत्फ उठा रही थी , दोनों के हाथों में शरबत का गिलास था,

मैं कैसे भी उसके गिलास से एकबार शरबत पीकर उसे जताना चाहता था कि मैं उसे दिल की गहराइयों से प्रेम करता हूं,मौका लगते ही मैंने ऐसा किया भी, जैसे ही उसने दुपट्टा संभालने के लिए गिलास मुंडेर पर रखा, मैंने एक एक घूंट पी लिया पर सब बेकार उसने देखा ही नहीं, दोनों दुपट्टा लहरा लहरा कर गा रही थी, इतना क्यों प्यार सजना ,दिल बेकरार सजना ,ऐसा भी क्या मुझमें रे……..तो मैं भी बीच में कूद पड़ा और गाने लगा , बादल है तेरा आंचल, तेरी आंखों का काजल,छीने है मेरी निंदिया रे…

पर शायद आज भी मैं उसे नहीं समझा पाया कि मेरा दिल उस पर आ चुका है, और आज भी सोचता हूं तो वो कच्ची उम्र का प्रेम तो कत‌ई नही था , क्योंकि कच्ची उम्र का प्रेम तो एक आकर्षण होता है जो उम्र के साथ-साथ कम होने लगता है पर  मेरा प्रेम उसके प्रति बढ़ता ही जा रहा था।

उसे तो यह एहसास जब पहली बार हुआ, जब रात को वीसीआर पर “धक धक करने लगा” गाना चल रहा था पूरा परिवार हॉल में बैठकर इस फिल्म का आनंद उठा रहा था, पहले इसी तरह वीसीआर पर फिल्मे पूरा परिवार एक साथ देखा करता था। तब मैंने बातों ही बातों में थोड़ा घुमा फिराकर उससे अपने प्यार का इजहार किया। पता नहीं वो मेरी बात समझी या समझ कर भी अंजान बन गई बस मुस्कुरा भर दी।

 

उस दिन के बाद मैंने भी महसूस किया कि भले ही उसने जुबान से प्यार का इजहार ना किया हो, पर मैं उसका खामोशी भरा  अपने लिए प्रेम का इजहार  सुन सकता था, अपने प्रेम की तड़प  को उसके दिल में भी महसूस कर सकता था।जब मामी जी सभी के लिए शरबत बनाकर उस देकर बोलती जा सब को एक एक गिलास दे दे, तो मेरी बारी आने पर मैं उसकी उंगलियों को छूना चाहता पर उसकी गहरी आंखों में डूबकर सब कुछ भूल जाता।



फिर तो जैसे मेरी आंखें हर पल उसे ही ढूंढती, वो कपड़े धोती तो मैं फटाफट बाल्टी में पानी भर देता, कपड़े सुखा रही होती तो उसके पीछे-पीछे छत पर जाकर उससे बात करने की कोशिश करता, जब कभी वह बाल धोकर उन्हें सुलझाती तो लगता कि जैसे ये घनेरी जुल्फों की छांव सिर्फ मेरे लिए ही है,

वो गाना गुनगुनाती तो लगता उसकी सारी सरगम बस मेरे लिए ही है।जब सभी अतांक्षरी खेलते तो उसका गाया गीत मुझे अपने लिए  ही लगता। तब एक दिन मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हारी हर अदा का कायल हो चुका हूं, बस मुझे तुम्हारा डांस और देखना है,वो भी एक रहस्यमई मुस्कान देते हुए  चली गई,मैं भी हर काम सिर्फ उसे ही इंप्रेस करने के लिए करता। एक दिन जब मामा के बेटे की बर्थडे पार्टी में उसने डांस किया तो बस मैं तो उसका दिवाना ही हो गया,मुझे बस हर समय उसकी ही खुमारी छाई रहती, उसके प्यार का नशा मुझ पर चढ़ता ही गया।

गर्मियों की छुट्टियों के वो दिन मेरे लिए आज तक के सबसे ज्यादा यादगार पल बन गए। फिर कुछ समय बाद वो अपने शहर वापस आ गई और मैं अपनी शहर चला आया। पर वो हर समय मेरे साथ होती, मेरे ख्यालों में, मेरे सपनों में, मेरी रातों में, मेरी नींदों में, शायद उसको भी मेरी तड़प इतनी ही रही होगी, कह नहीं सकता।

एक बार तो उसकी याद ने मुझे इतना परेशान कर दिया कि मैंने उसके शहर जाकर उससे मिलने का निश्चय कर लिया,और मै पहुंच गया उसकी ट्यूशन टीचर के घर के बाहर,उसके बाहर आने का इंतजार करने लगा, जब वो वट्यूशन पढ़कर बाहर आई तो मुझे देखकर आश्चर्य से देखते ही रह गई और उसने मेरे आने का कारण पूछा… तो मैंने उसे बताया बस तुम्हें देखना चाहता था। मेरा इतना कहना ही था कि उसने सिर्फ इतना कहा इस तरह मिलने से हमारे परिवारों की बदनामी हो सकती है,

तुम्हे अपने मां पापा  से हमारे लिए बात करनी होगी। मैंने कहा यदि नहीं माने तो क्या तुम सब कुछ छोड़कर मेरे साथ चलोगी ,तो उसने कहा शादी तो घरवालों की मर्जी से ही करेंगे नहीं तो मैं भी भूल जाऊंगी और तुम भूल जाना कि हम कभी मिले थे। मैं समझ सकता हूं ये कहना उसके लिए भी आसान नहीं रहा होगा, लेकिन उस समय परिवार  के संस्कार‌ और समाज की फ़िक्र अक्सर प्रेम पर भारी पड़ जाते थे। मैंने भी उससे वादा किया कि अब घर पर  हमारे रिश्ते की बात करके ही तुमसे मिलने आऊंगा।


घर आकर  इस बात को करने पर सभी ने इस रिश्ते को यह कहकर मना कर दिया कि लड़की वाले थोड़े मध्यम वर्ग के हैं और शायद हमारे रुतबे के अनूरुप शायद ये रिश्ता नहीं होगा और रिश्ता तो बराबर की हैसियत वालो मे होता है, कहकर मेरे प्यार को कोई नाम मिलने से पहले ही बेनाम कर दिया, और मैं भी अपनी बात के समर्थन में अपने घर वालों से लड़ न सका।उस समय ऐसा ही था, घरवाले प्रेम विवाह को जल्द ही समर्थन नहीं देते थे, उनकी नाक बच्चों की खुशियों से बड़ी होती थी,

यदि बच्चे प्रेम विवाह करना भी चाहें तो प्रेम और परिवार में से एक को चुनना पड़ता था।पर नंदिनी भी इस तरह अपनो से ही बगावत कर अपनी खुशियों की बुनियाद नहीं रखना चाहती थी,उसका कहना था कि मां बाप के दिल को ठेस लगाकर और उनके आशीर्वाद के बिना हम अपनी गृहस्थी बसा भी ले तो सब बेकार है क्योंकि जिन मां बाप ने हमारा पालन-पोषण किया , हमें आज तक संभाला,तो कुछ समय पहले हुए प्रेम के लिए हम उनके आज तक के दिए प्यार का हम ये सिला नहीं दे सकते।

इस बात को आज पांच वर्ष हो चुके ,ना मै अपना वादा पूरा कर सका, ना ही उससे कभी मिलने जा सका और आज उसकी शादी का कार्ड अपने हाथ में लिए ठगा सा खड़ा था। बाहर गाना चल रहा था, “पहले प्यार का पहला गम……उस गाने में मुझे सिर्फ अपना ही गम नजर आ रहा था।

मैं उसकी शादी में जाने से अपने को रोक ना सका…. जब उसे दुल्हन के रूप में गुलाबी लहंगे में देखा तो देखता ही रह गया, सुनहरे गुलाबी रंग के लहंगे में उसका गुलाबी रंग और भी गुलाबी हो गया था, और उसकी वही बड़ी-बड़ी आंखें शायद आज भी खामोशी से प्यार का इजहार कर रही थी और कह रही थी कि आकाश  मेरा और तुम्हारा रिश्ता किसी बंधन का मोहताज नही, राधा और कृष्ण भी सामाजिक बंधनों के कारण एक दूसरे के नहीं हो सकें लेकिन उनके जैसा प्रेम न तो आज तक हुआ है न ही कभी होगा,आज से हम दोनों को अपने प्रेम की नई कसौटी पर चलना होगा और हम दोनों ही शायद इस कसौटी पर खरा उतरने के लिए तैयार थे।

#बंधन

 

अपनी कलम से

ऋतु गुप्ता

खुर्जा

बुलंदशहर

उत्तर-प्रदेश

 

2 thoughts on “पहले पहले प्रेम का बंधन” – ऋतु गुप्ता”

  1. आपके शब्दों का चयन काफी सुंदर है , अच्छी हिंदी लिखी है आपने 70 के दशक में जन्मे लोगों को आपकी कहानी समसामयिक लगेंगी । सादर धन्यवाद।

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