पीर पराई – सुधा शर्मा

  माँ ने आवाज़ दी ,’ जल्दी कर अनु , तेरे जाने का समय हो रहा है । जल्दी नाश्ता कर ले।’

यह लडकी भी न अपने अलावा सबकी चिन्ता है ।जाने कहाँ कहाँ से पकड़ लाती है दीन दुखियारे ।जाने कितना सेवा भाव भरा है इसके मन में ।  ‘ माँ कहती रह गई और अनु बिना नाश्ता किये ही जल्दी जल्दी

 तैयार हो कर घर से बाहर निकली अनु।आठ बज गये थे ।ठीक दस बजे साक्षात्कार शुरू हो जायेगा ।रास्ता भी तो बहुत लम्बा है ।

          बाहर आकर जल्दी से टैक्सी ली।सुबह के समय कितना ट्रैफिक होता है।बार बार बेचैनी से घड़ी देख रही थी अनु।

तभी रेड लाइट पर फिर टैक्सी रुक गई।तभी उसकी निगाह सड़क के किनारे गिर पड़े एक करीब दस बारह वर्ष के लड़के पर पड़ी ।किसी गाड़ी के धक्के से शायद वह गिर गया था।पैर से बहुत खून बह रहा था ।दर्द से बुरी तरह से कराह रहा था।शायद कोई हड्डी भी टूटी थी।सड़क से गुजर रहे लोग उसे अनदेखा करते हुये गुजर रहे थे।

          अनु से रहा नही गया ।कितना दर्द से कराह रहा था वह।फौरन उतर कर ड्राइवर की मदद से उसे पास के अस्पताल में भर्ती किया । उसके पास बैठ तसल्ली देती रही ।उसके घर पर फोन  किया। जब तक उसके  पापा आये   तब तक वह रुकी रही।डाक्टर से प्रथम उपचार करवाती रही।

                  बहुत समय बीत गया था। निराश मन से वह साक्षात्कार के लिये पहुँच तो गई पर उसे बहुत देर हो गईथी।

       करीब करीब सब लोग जा चुके थे। कितनी जरूरत थी उसे नौकरी की सोचते हुये वापस जाने को मुड़ रही थी तभी चपरासी ने आकर कहा ,’आपको साहब ने बुलाया है ।’

         आफिस में पहुँचते ही उसे कहा गया कि उसको चुन लिया गया है ।कल आजाये ।’पर मेरा साक्षात्कार तो हुआ ही नही ।’उसने

पूछा ।तभी अन्दर से कम्पनी के मालिक बाहर आकर बोले ‘ वही तो

देकर आ रही हो तुम  ।

       वह उन्हें देखकर चौंक गयीं ।वे उस बच्चे के पिता थे जिसको वह अस्पताल पहूंचा कर आई थी ।

          उसे क्या पता था कि उसे

इतना बड़ा पुरस्कार मिलेगा ।

मौलिक स्वरचित

सुधा शर्मा

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