सीमा और सुधाकर का विवाह हुए दस वर्ष हो गए थे. प्रेम विवाह था. अंतर्जातीय होने के कारण दोनों के ही परिवारों की मंजूरी न मिलने की वजह से कोर्ट मैरिज की. संग जीने मरने की कसमें खाईं और एक नए शहर में विवाहित जीवन की शुरुआत की. दोनों ही शिक्षित तथा अच्छी नौकरी में थे. दोस्तों का एक बड़ा सर्किल था. दिन चांदी के और रातें सोने सी चमक लिए थीं. पांच वर्ष कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. नौकरी की तरफ से टूरस में पूरा विश्व ही घूम लिया.
लेकिन फिर जैसे उनकी खुशियों को ग्रहण लगने लगा. मित्र गणों के बच्चों को देख कर मन में इच्छा बलवती हुई कि उनके यहां भी बच्चे की किलकारी गूंजे. दोस्त भी जिज्ञासु होने लगे थे. कुछ दिन तो ‘ अभी तो मौज मस्ती के दिन हैं, बच्चे का झंझट कौन पाले ‘ कहकर काम चलाया. लेकिन फिर सोचा कि डाक्टर की सलाह लें. सभी टैस्ट हुए, डॉक्टरों ने भरोसा भी दिलाया , लेकिन कुछ न हुआ. उम्र भी बढ़ रही थी इसलिए दोनों ही परेशान रहने लगे. यहां तक कि सीमा और सुधाकर के रिश्ते में खटास आने लगी. सीमा चिड़चिड़ी सी रहने लगी. बात बात पर लड़ने लगे. सुधाकर तो अपना सारा समय ऑफिस में ही व्यतीत करने लगा.
कई मन्नतें भी मानीं, मज़ारों पर भी गए , तीन बार कृत्रिम गर्भाधान भी सफल नहीं हुआ. फिर किसी ने सरोगेट गर्भ की भी सलाह दी, लेकिन सुधाकर इसके लिए तैयार नहीं हुआ. सीमा ने तो खाट ही पकड़ ली. शहर के अच्छे अस्पताल में भर्ती कराया. लेकिन कोई रोग हो तो पकड़ में आए.
एक दिन अस्पताल से घर जाते हुए सुधाकर को सड़क के किनारे पड़ी दर्द से कराह रही युवती दिखी. प्रसव का समय लग रहा था लेकिन कोई साथ न था. भीड़ जुट गई लेकिन मदद के लिए कोई न आया. सुधाकर ने किसी तरह उसे कार में लिटाया और अस्पताल ले आया. युवती की जान नहीं बच पाई लेकिन नर्स एक नवजात बच्ची सुधाकर की गोद में गई. पुलिस में रिपोर्ट लिखाई गई लेकिन कुछ पता नहीं चला.
सुधाकर उसे सीमा के पास ले गया. अंधे को क्या चाहिए था, दो आंखें. दोनों ने आंखों ही आंखों में निश्चय किया. पुलिस से बच्ची को पास रखने की इज़ाजत ली. कुछ ही दिनों में वह कलेजे का टुकड़ा बन गई. गोद लेने की प्रक्रिया पूरी की गई. इस नन्ही सी गुड़िया ने उस बंधन को, जो टूटने को था, ऐसे कस कर बांधा कि सीमा और सुधाकर की दुनिया ही बदल गई.
– डॉ. सुनील शर्मा
गुरुग्राम, हरियाणा