आज इतवार था तो सहेजना ज़रा देर से उठी,वरना तो रोज सुबह के साढ़े पांच बजे दिन शुरू होता। चाय, बच्चों, पति और अपना टिफिन पैक कर भागम भाग ऑफिस पहुंचती और आते ही फिर वही बच्चों का होमवर्क और रात का खाना करते करते ग्यारह बज ही जाते।
उठकर रसोई में पहुंची तो सास का बड़बड़ाना चालू था,आजकल की बहुओं को तो शर्म लिहाज़ है ही नहीं, ये नहीं कि उठकर दो कप चाय बना दे, ननद आई हुई है, ये सात बजे सोकर उठ रही है। सहेजना का दिमाग तो खराब हुआ कि न तो ननद का कभी कभी का आना है कि सहेजना मेहमानों की तरह स्वागत करे और न ही सासू मां इतनी बूढ़ी हुई हैं कि दो कप चाय न बना सके फिर क्यों सुबह सुबह घर का माहौल खराब करती हैं। पर कौन मुंह लगे, ये सोचकर वो चुप ही रही।
पर सुबह सुबह के प्रवचन सुन उसका मन नहीं था, चाय की पूछने का, यूं भी पूछने का मतलब था दो बातें ओर सुनना।वैसे भी वो जाकर देती थी तब भी सारे रिश्तेदारों के सामने तक बुरी ही थी, यही सोच उसने पति के हाथ ही चाय बनाकर सास ससुर और ननद को भिजवा दी।
फटाफट छोले उबालने रख, बच्चों का दूध और पति की चाय दी, अपनी चाय वहीं रसोई में पी, आटा लगाकर, कपड़ों की मशीन लगाने चल दी।
सास और ननद अब भी अपने ही गप्पों में व्यस्त थी। ससुर जी वहीं अखबार पढ़ रहे थे, वैसे भी उन्हें घर में सिर्फ सुनने की ही आदत थी, बोलते कम ही सुना था सहेजना ने।पतिदेव बच्चों के साथ बिस्तर में ही थे।
सहेजना रसोई के सारे काम निपटा, पीछे बालकनी में कपड़े सुखाने गई तो सासू मां बेटी को पट्टी पढ़ा रही थी, ज़्यादा सास की मत सुना कर,तेरी सास तो ननद के कहे पर चलती है।पति को वश में रख, उसे इतना ढीला ही मत छोड़ कि मां बाप के पास ज़्यादा बैठे। अच्छा पहना कर, अच्छा खाया कर, बन संवरकर रहा कर। बुढ़िया तो यूहीं करती रहती है। समझ गई न?
आज सहेजना का भी मन चुटकी लेने का कर गया और वह नहले पर दहला मार बोली, जी मांजी! मैंने भी सब समझ लिया है । आज पहली बार वाचाल सासू मां और ननद बाई सकपका कर किंकर्तव्यविमूढ़ सी चुपचाप थी।
ऋतु यादव
रेवाड़ी (हरियाणा)