बहुत दिनों बाद आज रविवार को बच्चों के साथ राशि गप्पें मार रही थी…पति निकुंज की कल से दूसरे शहर में ट्रेनिंग शुरू होने वाली थी तो वो सुबह ही निकल गए थे ।
ऐसा वक्त बहुत कम मिलता था जब दोनों बच्चे और राशि एक साथ गप्पें मारते…आज तो दोनों ने कह भी दिया था कि आज तो मम्मी आप बीच में सोना और हम आपको पकड़कर सोएँगे… वैसे बच्चे ये बात बख़ूबी जानते हैं कि उनकी माँ की जगह तय रहती और वो एक किनारा पकड़कर सोती पर आज ना जाने क्यों राशि बच्चों को मना ना कर पाई और फिर रात जल्दी खा कर बच्चे राशि के कमरे में आ उसे भी जल्दी आओ ना माँ…कहे जा रहे थे
“ अब इन बच्चों को कौन समझाए…रसोई बिना समेटें कैसे सोने चली जाऊँ…।” मन ही मन कहती राशि कपड़े से चूल्हे और स्लैव पोंछ रही थी ।
इधर बच्चे कितना काम करोगी कह कर बुलाए जा रहे थे..
सब काम निपटा कर कमरे में गई तो बच्चों बैठ कर उसका इंतज़ार कर रहे थे
“ अरे सोए नहीं तुम लोग … सो जाओ ना बेटा कल फिर स्कूल भी तो जाना है ।” राशि बिस्तर पर आ लाइट ऑफ करते हुए बोली
“ मम्मी हम तो हर दिन सुबह उठ स्कूल जाना फिर होमवर्क ये सब कर बोर हो जाते..एक जैसे रूटीन पर चलना उफ़ सो बोरिंग… हमारा दिल तो चाहता है अपनी मर्ज़ी से देर तक सोते रहें… उठें फिर खेलें और मनपसंद डिशेज खाएं… आहा कितना मज़ा आएगा ना जब अपनी मर्ज़ी से करने को मिलेगा ।“ दीया ने कहा
“ दीदी हम तो फिर भी शनिवार और रविवार की छुट्टी में अपने दिल का कर लेते हैं.. पर मम्मा उसके लिए तो हर दिन एक समान ही होता है.. है ना मम्मा… बताओ ना आपका दिल क्या चाहता है?” दिव्य ने पूछा
राशि बच्चों की बात सुन मुस्कुराते हुए बोली,“ बेटा दिल चाहने से क्या होता है…हम औरतों के लिए पति और बच्चे उनकी प्राथमिकता होते हैं… सास ससुर मतलब तुम्हारे दादा दादी भी यहाँ हमारे पास रहते तो उनकी ज़िम्मेदारी भी देखनी होती… हाँ कभी कभी मेरा भी मन करता एक रविवार देर से सो कर उठूँ… मुझे भी बनी बनाई चाय मिले…रसोई से एक दिन की छुट्टी मिले पर ये सब हो नहीं सकता इसलिए दिल ने चाहना भी बंद कर दिया है… चलो अब दोनों अपनी अपनी आँखें बंद करो और सो जाओ ।” कहते हुए राशि ने दोनों बच्चों को सीने से लगाकर सोने को बोला
कुछ देर में बच्चे सो गए…. दीया के सवाल पर राशि सोचने लगी…..
बचपन से जवानी तक स्कूल कॉलेज जाते हुए कभी ये परवाह नहीं किया की घर में कोई काम भी होते हैं… माँ सुमिता जी सब कुछ सँभाल लेती थीं … दादी कितनी बार कहती बिटिया को इतना सिर ना चढ़ाओ बहू करना तो इसे चूल्हा चौका ही है… पर माँ सामने से कह देती ,“ माँ जी राशि का जब दिल चाहेगा वो करें मना नहीं करूँगी पर अभी से उन सब में उलझा कर क्या रखना…अपना घर कैसे भी हो सँभालना तो पड़ता ही है ।”
राशि ये सब सुन माँ के गले लग गालों पर प्यार से चुंबन दे देती।
जब भी राशि का जन्मदिन आता माँ उसके साथ बिल्कुल बच्चे की तरह व्यवहार करती …पूरे दिन उसकी पसंद की चीजें सबको खाने को मिलती…. राशि जो कह देती वो पूरा करना ही पड़ता… उससे छोटे दो भाई कभी कभी ग़ुस्सा करते हुए कह देते… दीदी तू कब ससुराल जाएगी.. और राशि ठुनककर वहाँ से जा मुँह फूलाकर बैठ जाती…समय गुज़रता गया और शादी की उम्र होते ब्याह की बात चल पड़ी… राशि ख़ूब पढ़ी लिखी थी पर कभी नौकरी करने की महत्वाकांक्षा नहीं थी और उसने स्वेच्छा से घर पर रहकर सबका ध्यान रखना चुना था।
ब्याह बाद सबकी तरह अचानक से काम की अधिकता में वो रो जाती थी फिर माँ समझाती बेटा काम को बोझ समझ कर करेंगी तो कभी नहीं कर पाएगी…उसे मन से कर…और फिर राशि घर गृहस्थी सँभालने में निपुण होती चली गई पर कभी कभी उसका भी दिल चाहता कि पति एक कप चाय ही पिला दे.. पर निकुंज को ये सब ना आता था ना सीखना चाहता था और राशि को कभी वो नसीब ना हुआ जो उसका दिल चाहता है..
बात आई गई हो गई… बच्चे भी अपनी रूटीन में व्यस्त और निकुंज भी … राशि ख़ुशी ख़ुशी सबकी इच्छा पूरी करती
एक दिन बाद उसका जन्मदिन आने वाला था संजोग से रविवार भी था ..इस बार उसने सोच रखा था बहुत दिनों से बच्चों को पिज़्ज़ा बना कर नहीं खिलाया है…बाहर का वो खाने नहीं देती इसलिए वो उस दिन घर पर ही बना देंगी… और बच्चों को बताएँगी भी नहीं… दोनों कितने खुश हो जाएँगे ।
जन्मदिन वाली सुबह वो जब उठी निकुंज सो रहे थे… वो उठने लगी तो बोले,“ सो जाओ यार…आज तो छुट्टी है।”
सुनकर राशि को झटका सा लगा… जो निकुंज उठते राशि से चाय की डिमांड करता वो कह रहा कुछ देर और सो जाओं… राशि भी चादर तान कुछ देर को आँखें बंद कर सो गई
“ उठो भी आज क्या पूरे दिन सोएँ रहने की इरादा है… ये लो चाय पी लो।” राशि को उठाते हुए चाय का कप उसकी ओर बढ़ाते निकुंज ने कहा
ये दूसरा झटका लगा राशि को.. ये हो क्या रहा है ।
“ कैसी चाय बनी है.. मम्मा ?“ कमरे मे आ दोनों बच्चों ने पूछा और राशि के गले लग उसे जन्मदिन की बधाई दी
“ ये सब क्या है….मैं उठ कर बनाती ना चाय।” राशि ने कहा
“ वो तो तुम हर दिन करती ही हो..आज तुम्हारा जन्मदिन है आज तुम बस बच्ची बन कर बिस्तर पर पड़ी रहो… देखते है मैं आपकी ख़िदमत में क्या बना सकता हूँ ।” निकुंज के माथे पर सिलवटें उभर आई कहते हुए पर आज करना तो था
“ वाह चाय अच्छी बनी है।” एक घूंट पीकर राशि ने कहा
चाय पीकर वो उठने को हुई तो बच्चों ने उसे बिठा दिया
“ तुम लोगों से नहीं होगा… मुझे करने दो काम।” कहते हुए राशि उठने की कोशिश करने लगी
“ क्या नहीं होगा राशि… क्या बड़बड़ा रही हो… यार चैन से सोने तो दो।” निकुंज की आवाज़ कानों में पड़ते राशि हड़बड़ा कर उठ बैठी
“ हे भगवान ये सपना था… पता ही है दिल जो चाहता हो वो क़िस्मत वालों को नसीब होता है हम जैसे को नहीं ।” मन ही मन कह राशि जुट गई फिर अपने काम पर ।
रश्मि प्रकाश