बहू… यह क्या तुमने विनीत के आने से पहले ही खाना खा लिया, अरे हमारी तो छोड़ो कम से कम अपनी पति की इज्जत कर लिया करो, बहू का फर्ज होता है कि जब तक परिवार के सभी लोग खाना ना खा ले तब तक वह खाना ना खाए, तुम्हें पता नहीं कितनी भूख लगती है की विनीत के ऑफिस से आने का भी इंतजार नहीं हुआ! सास कौशल्या देवी बहु नीति के ऊपर चिल्ला रही थी, क्योंकि नीति अपने पति के आने से पहले ही खाना खाने बैठ गई थी! नीति को भूख सहन नहीं होती थी और उसके पति विनीत का ऑफिस से आने का कोई निश्चित समय भी नहीं होता था
अपने सास ससुर को खाना खिलाकर जैसे ही अपनी थाली लगाकर लाई की कौशल्या देवी उसके ऊपर भड़क गई, उनको लगता था कोई भी बहू अपने सास ससुर या पति से पहले खाना कैसे खा सकती है? नीति के सास ससुर कुछ दिनों के लिए गांव से अपने बेटे के पास रहने आए थे! वह फिर से उसे कहने लगी… तुम्हें पता है बहू हमारे समय में तो चाहे पति को आने में कितनी ही देर हो जाए किंतु पत्नी तब तक खाना नहीं खाती थी,
क्योंकि पत्नी हमेशा पति की झूठी थाली में ही खाने को अपना धर्म मानती थी, तुम आजकल की लड़कियां क्या समझोगे यह सब और बहू जब मैं चली जाऊं तब तुम अपनी मनमानी करती रहना किंतु अभी जब तक हम तुम्हारे यहां पर आए हुए हैं मुझे कोई भी गलत काम बर्दाश्त नहीं होगा!और आज आने दो विनीत को, मैं उसको भी सब कुछ बता दूंगी! थोड़ी देर बाद बाद विनीत ऑफिस से घर आ गया और आते ही बोला, मां…. यह क्या तमाशा लगा रखा है, आपको पता है हम यहां इतनी बड़ी सोसाइटी में रहते हैं और आप इतनी जोर जोर से बोल रही थी की आसपास के लोग भी सुन रहे थे!
मां अगर कोई बात हो गई तो उसे शांति से भी तो कह सकती हो! हां हां ….अब तू भी मुझे ही सुना! एक तो मैं तेरी पत्नी को तमीज सीखा रही हूं, ऊपर से तू मुझे ही सुना रहा है, तुझे पता है विनीत… तेरे ऑफिस चले जाने के बाद यह दिन भर या तो सोती है या अपनी सहेलियों के यहां गपशप करने चली जाती है,
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अभी इन दिनों तो यह हमारी वजह से कहीं नहीं जा रही और इस पर इतना भी सब्र नहीं होता कि तेरे आने का इंतजार करें, उससे पहले ही महारानी खाना खा पी कर फ्री हो जाती है, तू बता.. क्या कोई पत्नी ऐसा करती है? क्या मैंने कभी भी तेरे पापा के खाना खाने से पहले खाना खाया है? अरे हम तो उनकी हर बात की हां मे हां मिलाया करते थे, तेरे पापा अगर कह देते कि यह सही है, चाहे वह बात कितनी भी गलत होती थी तो हम उसे सही मानते थे, कितनी इज्जत करते थे हम तेरे पापा की, कितना रौबदार स्वभाव था
तेरे पापा का, आजकल की लड़कियों को तो अपने पति की इज्जत करना तक नहीं आता, यह भी नहीं कि उसका पति भी तो थकाहारा ऑफिस से घर आएगा, पर नहीं.. उसको इस बात की कहां चिंता? पता नहीं शायद उनके घर में भी यही चलन होगा? बस करो मां बस… मां.. क्या कोई भी स्त्री भूखे प्यासे रहकर अपने पति की इज्जत कर सकती है,
मां मैंने ही नीति ही को समय से खाना खाने के लिए बोला था, आप तो जानती ही है मुझे ऑफिस से आने में देर हो जाती है तो वह कब तक भूखी प्यासी रहकर मेरा इंतजार करेगी, मुझे भी ऑफिस में भूख लगती है तो मैं तो वहां से लेकर कुछ खा लेता हूं, तो क्या यह जरूरी है कि यह यहां पर भूखी बैठी रहे और मां… आपको याद है… जब पापा कई बार बाहर जाने के बाद काफी देर तक आते थे तब आप भूख से व्याकुल होकर कितना तड़पती थी, हम बच्चे आपसे कहते भी थे मां.. प्लीज खाना खा लो,
हमसे आपकी हालत नहीं देखी जा रही! पापा को आने में देर हो जाएगी पर आप खाना नहीं खाती थी और सच बताओ मां.. क्या उस वक्त आप पापा की इज्जत करती थी, बल्कि आप मन ही मन में पापा को भला बुरा कहती थी कि उनकी वजह से आपको भी इतनी देर तक भूखा रहना पड़ता है!
एक बार हमारे बहुत कहने पर आपने जब जल्दी खाना प्रारंभ किया तभी पापा घर में आ गए और पापा ने आपको कितना डांटा था, उसके बाद से आप पापा से हमेशा डरी और सहमी रहने लग गई थी! मां नीति मेरी हमसफर है, ना कि मेरी गुलाम! मैं उसे इसीलिए नहीं लाया कि वह मेरी हर आज्ञा का पालन करें,
उसकी अपनी भी कोई जिंदगी है, एक हमसफ़र होने के नाते मैंने उस से यह वादा किया था कि मैं उसका हमेशा ख्याल रखूंगा और उसे खुश रखूंगा, तो क्या उसे भूखा रखकर या किसी तरह से उस पर पाबंदी लगाकर मैं उसे खुश रख सकता हूं, उसका सच्चा हमसफ़र बन सकता हूं? मां…मैंने सात फेरे लेते समय उससे जो भी वादे किए थे मैं उनको ईमानदारी के साथ निभाना चाहता हूं और मैंने यह कोई भी वचन नहीं लिया कि नीति मेरे खाना खाने से पहले खाना नहीं खा सकती? क्या कभी मैंने ऐसा सोचा कि आज नीति ने खाना नहीं खाया तो मैं कैसे खाना खा लूं? मां अब जमाना बदल गया है जमाने के साथ-साथ सोच भी बदली है,
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आपको भी अपनी सोच बदलनी पड़ेगी! आप अगर नीति को अपनी बेटी की नजरों से देखोगी तो आपको उसकी कोई भी बात गलत नहीं लगेगी, मां… क्या आपकी इज्जत करने में उसने कोई कसर छोड़ी है? हां बेटा… तू सही कह रहा है, आज तूने मेरी आंखें खोल दी! हमसफर का मतलब जिंदगी भर पति-पत्नी को खुशी-खुशी से जीवन बिताना है ना की किसी डर या दबाव में आकर!
कौशल्या की यह बात सुनकर आज उनके पति रामेश्वर जी की आंखें भी शर्म से झुक गई, क्योंकि वह भी अब तक यह समझते आए थे की पत्नी को अपने बराबरी का दर्जा कैसे दे सकते हैं,? उनकी आंखों में भी शर्म और पश्चाताप दिखाई दे रहा था, तब कौशल्या जी ने अपनी बहू को पास बुलाते हुए कहा बेटा…. सच में मैं बहुत गलत थी, जो मेरे साथ अब तक होता आया है मैंने वही तुम पर लागू करने की कोशिश की,
किंतु मैंने देखा तुम और विनीत एक दूसरे के साथ कितने खुश हो तुम्हें एक दूसरे से कोई शिकायत नहीं है तुम्हारे मन में मेरे बेटे के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है, क्योंकि मेरा बेटा भी तुम्हें उतना ही आदर सम्मान देता है जितने कि तुम हकदार हो! तुमने मेरी सोच को आज बदल दिया बहू! आज से तुम भी अपनी मन मुताबिक जिंदगी जियोगी और इसमें मुझे कोई एतराज नहीं है, ऐसा कहकर उन्होंने अपनी बहू नीति को गले से लगा लिया!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता #हमसफर