“कुछ दिनों से ऐसा लगता है सब काम गलत ही हो रहा है… जिस काम में हाथ डालो… वही उल्टा पड़ जाती है… क्या करूं कुछ समझ में ही नहीं आ रहा…!” सुमति जी ने अपनी मां के बाल बनाते हुए कहा…
सुमति जी की मां अभी दो दिन हुए उनके पास आई थी… मां अपने सफेद बालों पर हाथ फेरते हुए बोली…” कोई ग्रह, दशा ,ज्योतिष ,पंडित कुछ दिखाया है…!”
” कहीं नहीं मां… तुम तो जानती हो तुम्हारे जमाई को… इन सब में विश्वास नहीं है…!”
” अरे विश्वास नहीं है क्या होता है… ऐसे थोड़ी होता है… चंदन का ब्याह भी हो गया… बहू भी घर आ गई… और तुम लोग हो कि ढंग से एक पूजा घर में नहीं करवा पाए… अब तो चंदा भी है तेरा हाथ बटाने को… बहू के साथ मिलकर कर ले पूजा… बहु बेटे बैठ जाएं पूजा में… जरा ग्रहों की शांति हो जाए और मेरे मन की भी…!”
” पर मां यह नहीं मानेंगे… देखा नहीं ब्याह में भी पंडित जी से कितने चिढ़े थे…!”
” तू सब दिन उन्हीं का मुंह देखेगी या घर की शांति… रख पूजा… बुला पंडित को… क्या करेंगे जमाई जी… ज्यादा से ज्यादा नहीं बैठेंगे पूजा में यही ना…!”
” ठीक है मां… तुम कहती हो तो……चंदा इधर आना तो…!”
” आई मां… जी मां कहिए…!”
” तुम्हारी नानी सास कह रही हैं घर में ग्रह शांति की पूजा रखने… रखवा लूं क्या…?”
“पता नहीं मां… वह क्या होता है… आप ही अच्छा समझेंगी… मुझे तो यह सब नहीं समझ आता…!”
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बूढ़ी नानी सास रौब दिखा कर बोली…” आजकल की लड़कियों में यही बड़ी कमी है… कुछ भी पूजा पाठ… धर्म कर्म कुछ नहीं जानती… तुम इससे क्या पूछ रही हो… जो बोलोगी… वही करेगी… क्यों है ना बहू…!”
” जी नानी जी…!”
तो तय हो गया घर में ग्रह शांति की पूजा होगी… सुमति जी ने पति से पंगा ले लिया था… बेटे बहू और मां की मदद से पंडित जी को बुलाया… पूरे विधि विधान से सारे सामान इकट्ठे किए… भोग बनाया… प्रसाद बनाया… पड़ोसियों को निमंत्रण दिया गया… पूजा शुरू हुई…
चंदा के ससुर जी अपने कमरे से बाहर नहीं आए… भली-भांति पूजा करने के बाद पंडित जी ने केले के पत्ते पर… अलग से कुछ भोग प्रसाद लेकर सुमति जी को दिया… और कहा कि इसे यत्न से गाय को खिलाया जाए… सुमति ने यह जिम्मेदारी चंदा को दे दी…” ले बेटा जा बाहर देख गाय खड़ी होगी और अगर नहीं होगी तो थोड़ी देर इंतजार कर लेना…!”
चंदा प्रसाद लेकर निकल गई… बाहर तो कोई गाय थी ही नहीं… बेचारी कुछ देर खड़ी रही… यहां वहां झांका… कहीं किसी गाय का नाम नहीं था… वह सोचती खड़ी ही थी कि दूर से एक सफेद गाय आती दिखाई दी… बगल में कमरे से पापा जी उसे खड़ा देख रहे थे… पास आकर बोले…” क्या हुआ बेटा… यहां क्यों खड़ी हो…?”
” वो पापा जी मां ने कहा है इसे गाय को खिला देने…!”
” अच्छा…!”
तब तक गाय पास आ गई…
” आ गई गाय पापा… मैं खिला देती हूं…!”
चंदा ने दरवाजा खोलकर पत्तल गाय के आगे डाल दिया… पापा जी को हंसी आ गई… चंदा ने उनकी तरफ देखकर पूछा…” क्या हुआ पापा जी… आप हंस क्यों रहे हैं…!”
” कुछ नहीं बेटा… तुम खिलाओ ना गाय को…!”
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तभी नानी मां बाहर निकली… बुदबुदाते हुए… “आजकल की लड़कियां ना… एक काम करने गई तो उसी में दस घंटे लगा दिए…!”
अचानक सामने गाय को खाता देख चिल्ला उठी… “हाय राम… यह क्या अनर्थ कर दिया तुमने…!”
” क्या हुआ… बेचारी चंपा डर से कांप गई…!”
घर से सुमति जी भी भागी आ गईं…” क्या हुआ…!”
चंदा के ससुर जी की तो हंसी ही नहीं रुक रही थी… “अरे बेवकूफ लड़की… गाय को बोला था खिलाने… तूने बैल के आगे प्रसाद डाल दिया… हाय राम अब क्या करूं…!”
” मगर नानी मां मुझे नहीं पता था… पापा जी ने भी नहीं बताया…!”
सुमति जी ने तीखी नजरों से अपने पतिदेव को घूरा… वह अब सारा माजरा समझ गईं… पति से पंगा लिया था तो बदला तो मिलना ही था…
वे बेचारे भोली सूरत बनाकर बोले…” क्या जमाना आ गया है… लोग मनुष्यों के हितों की तो वकालत करते हैं… लेकिन जानवरों में जो एक निरीह प्राणी है… जिसकी स्थिति कुत्ते से भी बदतर होती जा रही है… उसे देखने वाला कोई नहीं… इसे कहते हैं लैंगिक भेदभाव… जेंडर डिस्क्रिमिनेशन… क्या हुआ… क्या दोष है इस बेचारे का… यही ना कि यह गाय नहीं है और गाय की तरह दिखता है…!”
चंदा रूआंसी हो गई…” पापा जी आपने जानबूझकर मुझे गलती करने दिया ना… इसलिए आप हंस रहे थे…!”
” कोई बात नहीं बेटा… इसमें रोती क्यों हो…!”
तब तक सभी लोग बाहर आ गए थे.… सबने अपने-अपने तरीके से चंदा को और नानी मां को समझाना शुरू किया… नानी मां ने पास से एक डंडा उठाया और बैल के पीठ पर जमाते हुए उसे भगाया… थोड़ा बहुत जो प्रसाद बचा था उसमें पंडित जी से लाकर और मिलाया… फिर खुद खड़ी होकर गाय का इंतजार करने लगी…थोड़ी देर बाद गाय आई तो उसे खिला कर ही वहां से हटीं……
और बेचारी चंदा… सबसे अलग-अलग तरह की नसीहतें प्राप्त कर… आज अच्छे से जान गई की… गाय किसे कहते हैं… और बैल किसे……
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा
#ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने