पति पत्नी का रिश्ता – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

सुंदरलाल जी अपने कमरे मे गुमसुम से बैठे एक तस्वीर को निहार रहे थे वो तस्वीर उसकी थी जो कुछ दिनों पहले तक जीती जागती सुंदरलाल जी के साथ थी पर आज तस्वीर हो गई थी । वो तस्वीर थी सुंदरलाल जी की अर्धांगिनी सरला जी की जो अभी पंद्रह दिन पहले उनके साथ अड़तालिस साल का सुखी वैवाहिक जीवन जीकर पंचतत्व मे विलीन हुई है ।

यूँ तो सुंदरलाल जी का अच्छा खासा परिवार है बेटा बहू , बेटी जमाई , नाती पोते पर उम्र की संध्याबेला मे पत्नी का जाना उन्हे बहुत खल रहा था। बाहर सभी लोग बैठे बात कर रहे थे तो सुंदरलाल जी चुपचाप उठकर अपने कमरे मे आ गये और पत्नी की तस्वीर देखने लगे।

” दादू आप यहां क्यो चले आये देखो मम्मी ने आपके लिए पकोड़े बनाये है !” तभी उनका सत्तरह साल का पोता आरव आया और बोला।

” बस ऐसे ही बेटा !” पोते की आवाज़ से उन्हे एहसास हुआ उनकी आँखों मे आंसू है उन्होंने झटपट उन्हे कुर्ते की बाजू से पोंछ डाला।

” दादू आप रो रहे है ?” आरव उनके कदमो मे बैठता हुआ बोला। 

” नही तो !” सुंदरलाल जी झूठी मुस्कान ओढ़ बोले।

” नही दादू आप झूठ बोल रहे है आपको दादी की याद आ रही है ?” आरव बोला।

” बेटा तेरी दादी के साथ अड़तालिस साल गुजारे है मैने याद तो आएगी ना !” सुन्दरलाल् जी बोले।

” अच्छा अब आप पहले ये पकोड़े खा लीजिये वरना ठंडे हो जाएंगे !” आरव बोला।

” नही बेटा मन नही है !” सुन्दरलाल् जी बोले।

” ऐसे कैसे जब दादी आपको पकौड़े खाने को मना करती थी तब तो आप उनसे लड़ते थे और अब जब आपकी पकौड़े मिल रहे है तो आप मना कर रहे है !” आरव हैरानी से बोला ।

” बेटा जब तेरी दादी मुझसे कुछ खाने को लड़ती थी तब उस चीज मे स्वाद बढ़ जाता था पर जबसे वो गई है कुछ अच्छा ही नही लगता !” सुंदरलाल जी दुखी होते हुए बोले।

” बड़ी अजीब बात है दादी थी तब मैने आप दोनो को ज्यादातर लड़ते देखा है कभी खाने के लिए कभी घूमने के लिए कभी किसी चीज के लिये और आज आप उनको याद कर आँसू बहा रहे है ये चीज मुझे समझ नही आई !”  आरव बोला।

” बेटा पति पत्नी का रिश्ता होता ही ऐसा है जवानी मे जिम्मेदारियां पूरी करते करते एक दूसरे का साथ देते देते कब बुढ़ापा आ जाता है पता नही लगता और बुढ़ापे मे आते आते दोनो के बीच नोक झोंक होने लगती है वो नोक झोंक कोई लड़ाई नही होती एक दूसरे की फ़िक्र होती है । लेकिन बुढ़ापे मे जब वो अपनी जिम्मेदारी निभा चुके होते है तब एक दूसरे के साथ यूँही हँसते खेलते , लड़ते झगड़ते एक दूसरे की फ़िक्र करते जिंदगी की संध्या बेला को जीते है ।” ये सब बोलते बोलते सुंदरलाल जी के चेहरे पर चमक आ गई मानो वो पुराने दिन याद करने लगे हो । 

” आपका मतलब है बुढ़ापे मे पति पत्नी का रिश्ता टॉम और जेरी जैसा हो जाता है जिनकी आपस मे बनती भी नही और एक दूसरे बिन रह भी नही सकते दोनो !” आरव हँसते हुए बोला ।

” हाहाहा सही कहा बेटा पर अब जब मेरी जेरी नही है तो उसकी मेरी जिंदगी मे क्या कीमत थी समझ आ रही है  उसके बिना मेरा बिल्कुल मन नही लगता उसकी डांट सुन ये पकोड़े खाना , मीठा खाना अच्छा लगता था पर अब नही । ये अकेलापन काटने को दौड़ता है अब  !” हँसते हँसते अचानक सुंदरलाल जी रो पड़े । 

” दादू आप फ़िक्र मत कीजिये मैं दादी की कमी पूरी तो नही कर सकता पर मैं आपको कभी अकेले नही होने दूंगा । जैसे दादी आपका ख्याल रखती थी वैसे मैं भी कोशिश करूंगा । चलिए अभी पकोड़े खाइये फिर मैं आपको घुमाने लेकर चलूँगा तब आप मुझे अपने और जेरी की लड़ाई और प्यार के किस्से सुनाना !” आरव दादा का हाथ पकड़ कर बोला । पोते की बात सुन सुंदरलाल जी के चेहरे पर फिर हंसी आ गई । 

दादू को हँसते देख आरव को बहुत अच्छा लगा । किशोर मन ने मन ही मन खुद से वादा किया कि दादी की अनुपस्थिति मे वो अपने दादू का दोस्त बनने की कोशिश करेगा जिससे उसके दादू अपने जीवन की संध्या बेला मे अकेलापन ना महसूस करे । दादी के जाने के बाद आरव को भी बड़ो की कीमत अच्छे से समझ आ रही थी और वो नही चाहता था अकेलेपन से घबरा उसके दादू भी उसे छोड़ जाये। 

अब उस घर मे आरव के दादा दादी की नोक झोंक ना सही पर दादा पोते की नोक झोंक और कहकहो की आवाजे जरूर गूंजती है । 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#कीमत

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