राम ने बड़ी मुश्किल से पत्नी सीता को कमर से सहारा देकर देहरी उतरने में सहारा दिया और उसी समय दोनो की आंखे मिली और दोनो ने आंखों ही आंखों में पूछा, “कुछ याद आया।” दोनो अतीत में खो गए।
40 वर्ष पहले फरवरी में सगाई हुई थी, एक दूसरे के ख्याल में डूबे रहते थे, उस समय मोबाइल नही था, बड़े मुश्किल से लैंडलाइन फोन कहीं कहीं होता था, पर एक दोस्त के द्वारा चिट्ठी पत्री चलने लगे, जून में विवाह था । सीता दिल्ली में जॉब करती थी, अचानक एक दिन जाते समय उसका एक्सीडेंट हुआ, और पैर में तीन महीने का प्लास्टर चढ़ गया। अब दोनो तरफ के सबलोग चिंतित हो गए, शादी कैसे होगी। पर राम बिल्कुल अपने फैसले पर डटे रहे, सबकुछ तय समय पर ही होगा। शादी लड़के वालों के शहर से होनी थी, दो दिन पहले ट्रेन से माँ पापा के साथ उस शहर पहुँची, राम लेने पहुचे थे और उस दिन उन्होंने कमर से पकड़ के नीचे उतारा, दो दिन बाद हॉस्पिटल ले जाकर उन्होंने ही प्लास्टर कटवाया। और कई लोगो की ताना कसी, चलती रही, शादी तय होते ही, दुर्घटना हुई, ये शुभ सगुन नही है। फिर भी राम सीता को सहारा देकर फेरे लेते रहे।
आज भी सीता के पैर में चोट लगी और दोनो को वाक्या याद आ गया। तीन महीने का प्लास्टर लगा है, जीवन का असली सहारा साथ ही है, इसलिए सीता को कोई चिंता नही है। ईश्वर ने गहन अध्ययन करके पति पत्नी का रिश्ता बनाया है, बस जो इसको निभा ले वो सदा सुखी रहेगा।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़