वर्मा परिवार की बेटी नेहा की सगाई होने जा रही थी, परिवार में भाई-भाभी सब तैयारी में लगे हुए थे, वो अपनी सगाई को लेकर बहुत खुश थी, और अपने ससुराल वालों के आने का इंतजार कर रही थी, दोपहर तक सभी ससुराल वाले आ गये, सभी से नेहा मिली पर उसने ये चीज गौर की कि उसकी जेठानी इस रस्म में नहीं आई थी, ये देखकर वो हैरान थी।
नेहा की सगाई विनीत से होने जा रही थी, विनीत ने तो बताया था कि उसके बड़े भैया सुमित और भाभी रचना भी है, और इससे आगे उसने कुछ नहीं बताया, हालांकि ये सगाई जल्दबाजी में हो रही थी, विनीत की दादी जी बीमार है और वो जाने से पहले अपने सबसे लाडले पोते की शादी देखना चाहती थी।
उसे अपने जेठ और जेठानी की कमी महसूस हो रही थी, दो ही तो भाई थे, उनमें से भी एक नहीं आये, उसने विनीत से पूछा तो वो बोला, बाद में आराम से बात करते हैं।
सगाई का कार्यक्रम हो गया और कुछ दिनों के बाद शादी थी, नेहा अपनी शादी की तैयारी में लग गई।
शादी में भी उसके जेठ -जेठानी नहीं आये, इस बात से वो बहुत परेशान थी, आखिर ऐसा क्या हो गया? जो उसके सगे जेठ-जेठानी शादी में नहीं आयें।
ससुराल में उसका भव्य स्वागत हुआ, ननद और देवर ने बड़े प्यार से स्वागत किया, सास-ससुर और दादी सास के प्रेम में भी कोई कमी नहीं थी।
बातो ही बातो में उसे विनीत से पता चला कि उसके जेठ -जेठानी पास ही के कुछ मकान छोड़कर रहते हैं, वो अब ये जानने को उत्सुक हो गई थी कि आखिर बात क्या है?
एक दिन अपना सब काम निपटाकर वो मंदिर जाने के बहाने जेठानी के घर चली गई।
उसकी जेठानी ने दरवाजा खोला और उसे वहीं बाहर ही रूकने को कहा, नेहा को बड़ा ही अजीब लगा, लेकिन थोडी देर बाद ही वो आरती का थाल लेकर आई, ‘नेहा तुम पहली बार अपनी जेठानी के घर आई हो, तो आरती के बिना अंदर कदम नहीं रख सकती हो, आरती करके तिलक लगाकर रचना ने उसे अंदर आने को कहा, प्रेम से नाश्ता करवाया और बातें करने लगी।
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नेहा ने सीधा सवाल किया, ‘आप हमारी शादी में क्यों नहीं आई? मुझे तो आपके आने का बहुत इंतजार था।’
रचना थोड़ा दुखी स्वर में बोली, ‘आने का न्यौता नहीं मिला, वरना तो जरूर आती, पर मै भी क्या करूं?
अपनी गृहस्थी बसानी चाही तो ससुराल वालों से दूर हो गई, और मैं क्या करती? सब मुझसे नाराज़ हो गये है।’ तुम्हारे भैया और मुझसे रिश्ता ही तोड़ दिया।’
रचना की आंखें भर आई।
नेहा ने अपनी जेठानी का हाथ थामा, ‘ भाभी ऐसा क्या हो गया कि सबने आपसे रिश्ता तोड़ दिया।’
रचना अतीत में जाते हुए बोली, ‘ मै अपने माता-पिता की एक ही बेटी थी, दो भाइयों के बीच लाड़ प्यार से पली थी, सुमित के घर से रिश्ता आया तो मना नहीं कर सकें, सुमित दिखने में अच्छे थे, और इनके परिवार वालों ने बताया कि इन्होंने अपना व्यापार शुरू किया है, तो घर-परिवार देखकर मेरा रिश्ता कर दिया गया , शादी होकर ससुराल आ गई।’
शादी के बाद हम हनीमून पर घूमने गये तो आते-आते सारे पैसे खत्म हो गये, मुझे आश्चर्य हुआ कि सुमित का अपना कोई बैंक अकाउंट नहीं था, ना ही ये ऑन लाइन पेमेंट करते थे, ये अपने साथ कुछ ही रूपये लाये थे, मै सब समझ गई थी कि सुमित कुछ करते नहीं है और अपने पापा से रूपये लेकर काम चलाते हैं, मैंने सुमित से कहा कि ‘आपने मुझसे झूठ क्यूं बोला कि आप अच्छा कमा लेते हैं, इस तरह तो जिंदगी नहीं चल सकती है।”
कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि मै गर्भवती हूं, और अब मुझे डॉक्टर के दिखाने जाना, दवाइयां लाना और खान-पान का ध्यान रखना बहुत से खर्चे थे, जो मुझे खुद ही भारी लग रहे थे।
अब मै चाहती थी कि मेरे पति कमाएं और अपने होने वाले बच्चे का खर्चा उठाएं, परिवार में दोनों देवर अच्छा कमा रहे थे, और ससुर जी भी नौकरी करते थे, मुझे बहुत बुरा लगता था कि मेरे पति सबके नौकर जैसे बने हुए थे, जिसने जो कहा वो काम कर दिया, जब पत्नी का पति कमाता नहीं है तो उसकी घरवालों के सामने कोई इज्जत नहीं रह जाती है।
मैंने इनको नौकरी करने के लिए कहा और दूसरे शहर मेरे ममेरे भाई की कंपनी में काम करने को भेज दिया, यहां सब घरवालों का काम अटक गया, सबने मुझ पर इल्जाम लगाया कि मैंने परिवार से बेटा अलग कर दिया, और मुझे अलग घर बसाना था, मैंने नौ महीने सब सहा, सुमित वहां से कमाकर पैसे भेजने लगे, जब अच्छे से काम सीख गये तो मेरे ममेरे भाई की सिफारिश से उनको इसी शहर में नौकरी मिल गई,
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मुझे इज्जत से रहना था तो मैंने अलग रहने का फैसला किया, क्योंकि दोनों देवर की कमाई के मुकाबले सुमित कम ही कमाते थे, बस तभी से सबने हमसे रिश्ता तोड़ लिया और ये कहकर रचना रोने लगी।
नेहा की भी आंखें भर आई, ‘भाभी आप गलत नहीं हो, आपके लिए ये बहुत जरूरी था कि भैया अपने पैरों पर खड़े होकर अपनी पत्नी और बच्चे का खर्चा खुद उठाएं, मम्मी जी को तो गर्व होना चाहिए कि उनका बेटा अपने पैरों पर खड़े होकर अपनी जिम्मेदारी उठा रहा है।
भाभी, होली आ रही है, और अब बेरंग रिश्तों में रंग भरने का समय आ गया है, बहुत जल्दी हम सब साथ में होंगे, आप होली के दिन भैया को लेकर घर आ जाइये, मै सबसे बात करके सब ठीक कर दूंगी, ये कहकर नेहा घर चली आई।
कुछ दिनों बाद नेहा का जन्मदिन आया, घरवाले सब बहुत खुश थे, सास-ससुर ने यही पूछा कि तुम्हें जन्मदिन के उपहार में क्या चाहिए? क्योंकि अभी तुम्हारी शादी हुई है, हमें समझ में नहीं आ रहा है कि क्या उपहार दें?
नेहा ने हाथ जोड़कर कहा कि, मम्मीजी -पापाजी आप भैया भाभी को माफ कर दीजिए, भाभी ने जो भी किया, अपने होने वाले बच्चे के भविष्य के लिए किया, अपनी इज्जत के लिए किया, क्योंकि पति कमाता है तभी पत्नी की इज्जत होती है, और उनकी जगह मै होती तो शायद मै भी यही करती।”
नेहा की बात सुनकर सबकी आंखें भर आई, सच सबको पता था, लेकिन अहंकार को लेकर सब बैठे थे।
अगले दो दिन बाद होली थी, सुबह -सुबह दरवाजे पर रचना और सुमित अपने बच्चे को लेकर आ गये, सास-ससुर जी ने उन्हें माफ कर दिया, सभी भाई-बहन आपस में गले लग गये, सारे शिकवे-गिले, आंसूओं में बह गए, सब एक ही रंग में रंग गए। नेहा ने अपनी कोशिशों से घर-परिवार को एक कर दिया, जो रिशते फीके बेरंग हो गये थे, उनमें रंग भर गये।
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना