पथभ्रष्ट : Motivational Story In Hindi

रात के बारह बज रहे थे,माया देवी बार-बार घर के बाहर गेट की ओर देख रही थी। माया देवी के मन-मस्तिष्क में अनगिनत सवाल अपने बेटे रजनीश को लेकर उठ रहे थे,जिसका स्वाभाव पिछले तीन चार वर्षों से बिल्कुल बदल चुका था,

वह अक्सर शराब पीकर रात को देर से घर आता था,माया के तीन बच्चों में सबसे बड़ा रजनीश, उसका छोटा भाई प्रदीप,व छोटी बहन पल्लवी थी, प्रदीप बाहर हास्टल में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था, रजनीश और पल्लवी माया देवी के साथ रहते थे, रजनीश ग्रेजुएशन करने के बाद अपने चाचा रामसिंह जिनकी इलाके में एक दबंग बाहुबली की छवि थी,

रजनीश अक्सर उन्हीं के साथ रहता था, उसे जो चीज पसंद आती थी वह उसे हासिल करता था,चाहें वह सही तरीका हो या ग़लत उसे अपनाकर वह अपना मकसद पूरा करता था।

माया देवी के पति भीम सिंह और बेटी पल्लवी गहरी नींद में सो रहे थे, माया देवी की आंखों से नींद गायब थी, उसे तो बस रजनीश का इंतजार रहता था,तीस साल पहले जब माया देवी की भीम सिंह से शादी हुई थी तब से अब तक वह हमेशा अपने पति देवर व अन्य लोगों के स्वभाव से चिंतित रहती थी,

छोटी-छोटी बातों को अपने स्वाभिमान से जोड़कर देखते थे परिवार के सभी लोग,जरा-जरा सी बात पर बंदूकें तानने लगते थे, माया देवी कभी भी अपनी इच्छा से नहीं जी सकी थी,उसका दायित्व घर चलाने बच्चों को देखने तक ही सीमित था, प्रदीप का स्वाभाव घर के लोगों से अलग था,

वह अपनी मां की बातों का समर्थन करता था,बाकी परिवार पुरूष, कुछ महिलाएं छोटी सी रस्सी को भी अपनी शान के लिए सांप समझते सब के सब पथभ्रष्ट हो चुके माया देवी अपने घर परिवार के लोगो से कभी भी सहमत नहीं थी।

बाहर से गाड़ी की आवाज सुनकर माया देवी ने सुकून की सांस ली, रजनीश अपनी गाड़ी गेट के अंदर खड़ी करके गाड़ी का दरवाजा खोलने लगा गाड़ी के अंदर से उसके चाचा नशे में झूमते हुए बाहर निकलें, सामने माया देवी को देखकर रामसिंह दूर से बोले,”भाभी! प्रणाम” माया देवी ने दूर से सिर हिला दिया,”चाचा!

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अंदर चलों”रजनीश रामसिंह से बोला।”नहीं बच्चा! काफी देर हो चुकी है,अब मैं चलता हूं”रामसिंह रजनीश को बच्चा कहकर पुकारता था,वह बगल में बने अपने घर के दरवाजे की ओर बढ़ गया।”तूं रोज अपने चाचा के साथ नशे में ही देर रात घर आता है,

तुझे अपनी मां की जरा भी चिंता नहीं है”माया देवी कमरे के अंदर आकर रजनीश के ऊपर गुस्सा होते हुए बोली।”अरे अम्मा”तुम बेकार में परेशान होती हों, किसी की हिम्मत है,जो हमारे परिवार के लोगो से ऊंची आवाज में बात कर सकें”रजनीश नशे में झूमते हुए बोला।

“ठीक है,बाप, बेटे, चाचा,चाची, तुम सभी लोग जीवन का सही रास्ता भूलकर पथभ्रष्ट हों चुके हों, मेरे कहने से क्या होगा?”माया देवी उदास होकर अपने कमरे के अंदर चली गई। रजनीश अपनी मां से कुछ नहीं बोला और बिस्तर पर लुढ़क गया।

सुबह सुबह के आठ बज रहे थे,भीम सिंह कुर्सी पर बैठे माया देवी से कुछ बात कर रहे थे,उसी समय रामसिंह ने प्रवेश किया,”दादा! प्रणाम”भाभी! प्रणाम”रामसिंह कुर्सी पर बैठते हुए बोला।””रामसिंह टेंडर वाला काम हुआ कि नहीं”भीम सिंह रामसिंह की ओर देखते हुए बोले।”कैसे नहीं होगा दादा!पानी में रहकर कोई मगरमच्छ से कैसे बैर लेगा?”

रामसिंह हंसते हुए बोला।”मैं सोच रहा था बच्चा (रजनीश)कही भड़क न जाए”भीम सिंह व्यंग्यात्मक लहजे में बोले।”दादा अपना बच्चा!शेर का बच्चा हैं, उसका गीदड़ कभी सामना नहीं कर सकता”कहकर रामसिंह और भीम सिंह एक साथ हंसने लगे। माया देवी चुपचाप बैठी उन लोगों की बातें सुनकर भयभीत हो रही थी, आखिर वह कर भी क्या सकती थी।

“दादा आज मैं दूसरे काम से आपके पास आया हूं”रामसिंह भीम सिंह की ओर देखते हुए बोला।”कहो क्या बात है”भीम सिंह शांत लहजे से बोले।”मैं अपने बच्चा की बहू लाना चाहता हूं,अगर आप और भाभी आज्ञा दे तो बात आगे बढ़ाऊं”रामसिंह भीम सिंह और माया की ओर देखते हुए बोला।”अरे रामसिंह कौन नहीं चाहेगा,

बच्चा से पूछा है तुमने, जानते हों उसको लड़की पसंद होनी चाहिए” भीम सिंह हंसते हुए बोले।”दादा! बच्चा! उसे जानता है, और वह भी बच्चा को पसंद करती हैं,बस आपकी ही मंजूरी बची है?” रामसिंह मुस्कुराते हुए बोला।”अच्छा तो चाचा भतीजे ने मिलकर खिचड़ी पका ली है,

और हमसे पूछ रहे हो कि खिचड़ी बनाए की नहीं”कहकर भीम सिंह ठहाके मारकर हंसने लगे। माया देवी चुपचाप बैठी थी, रामसिंह और भीम सिंह की ठहाकों की आवाज गूंज रही थी।

कुछ दिनों बाद रजनीश की शादी उसकी और रामसिंह की पसंद की लड़की रागिनी से हो गई। रागिनी के परिवार की सोच समझ बिल्कुल रामसिंह और रजनीश के परिवार की ही तरह थी, कुछ दिन तक सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा, प्रदीप वापस हास्टल जा चुका था,

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पल्लवी और रागिनी आपस में घर की छोटी सी बात पर बहस करने लगती थी। माया देवी की समस्या और भी गंभीर हों चुकी थी, रागिनी भी रजनीश व अन्य लोगों की तरह ही अपने दिल में कठोरता का बोझ लिए अपनी शान शौकत को ही सर्वोपरि मानने वाली लड़की थी,

रजनीश को अपवादों से बचाने की बजाए वह उसे और भी ज्यादा प्रोत्साहित कर देती थी, माया देवी मन में हमेशा किसी अनहोनी को लेकर सवाल उठते रहते थे, क्योंकि उसकी सुनने वाला प्रदीप बाहर रहता था, पल्लवी भी अपने पिताजी और भाई की बातों का समर्थन किया करती थीं,

उसकी और रागिनी में अहम को लेकर नोंक-झोंक होती रहती थी, रागिनी के आने के बाद रजनीश सिर्फ उसी का हों चुका था,वह माया देवी के पास पहले की तुलना बैठना और बात करना कम कर दिया था।

शाम के सात बज रहे थे, रागिनी फोन पर बात करते हुए भड़कने लगी, वह जोर-किसी को ग़लत लहजे से मारने के लिए फोन पर चिल्ला रही थी, माया देवी रागिनी की आवाज सुनकर भयभीत होने लगी, पल्लवी भी रागिनी के पास आकर खड़ी हो गई। “क्या हुआ बहू क्या बात है”

भीम सिंह रागिनी के पास जातें हुए बोलें। रागिनी बिना रूके अपने घर पर हुई घटना के बारे में गुस्से से लाल होते हुए बताने लगी, जिसे सुनकर भीम सिंह का भी पारा चढ़ गया आखिर उनके समधी की बात थी। माया देवी चुपचाप रागिनी और भीम सिंह की बातें सुन रही थी, रागिनी के पिता से उनके पट्टीदार का भूमि विवाद हुआ था,

जिसमें रागिनी के पिता को काफ़ी चोटे आई थी।”सुनिए” माया देवी रागिनी के पास से भीम सिंह को बुलाते हुए बोली।”हां बोलो क्या बात है, क्या कहना चाहती हों?”भीम सिंह माया देवी की ओर देखते हुए बोले।”मैं यह कहना चाहती हूं,कि यह बात आप और बहू रजनीश से न कहें,आप तो जानते हैं,

उसका दिमाग कैसा है”माया देवी विनम्रता से बोली।”तुम क्या सोचती हो,इतनी बड़ी बात बहू बच्चा से नहीं कहेगी, और क्यूं न कहें,उनकी इतनी हिम्मत की वह समधी जी पर हाथ छोड़ दें?”भीम सिंह माया देवी की ओर देखकर गुस्साते हुए बोलें।”मुझे डर है कि, रजनीश कुछ ग़लत न करें, पहले से ही उसके ऊपर मुकदमे चल रहे हैं,

सिर्फ आप ही बहू को रजनीश से कुछ कहने से रोक सकते है,वह मेरी बात तो मानेगी नहीं” माया देवी चिंतित होते हुए बोली।”तुम पता नहीं किस दुनिया में रहती हों,यह मुझे अब तक समझ में नहीं आया है”कहकर भीम सिंह माया देवी पर गुस्साते हुए वहां से चले गए। 

माया देवी का ख्याल बिल्कुल सही था, रजनीश के घर आते ही रागिनी ने उसे सारी बातें बताई, रजनीश ने उसी समय फोन पर अपने ससुर का हाल चाल, और पूरी घटना की जानकारी ली,और रागिनी के पापा पर हमला करने वालों को सबक सिखाने का निर्णय कर लिया था।

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दूसरे दिन सुबह रागिनी को लेकर रजनीश अपनी ससुराल चला गया, एक दिन बाद वह रागिनी को छोड़कर अपने घर वापस आ गया।दो दिन रामसिंह,भीम सिंह,और रजनीश बैठकर रागिनी के पिता पर हमला करने वालों को करारा जवाब देने की बात कर रहे थे, रजनीश ने अपने कुछ साथियों को भी शाम को चलने के लिए अपने घर बुलाया था। माया देवी यह सब जानकर किसी अनहोनी से चिंतित थी,”सुनो बेटा रजनीश!

माया देवी रजनीश को बुलाते हुए बोली।”हा बोलो अम्मा! क्या बात है?”रजनीश माया देवी के पास आते हुए बोला। माया देवी रजनीश को कमरे के अंदर ले जाकर बोली।”बेटा! हों सकें तो अपने गुस्से को काबू में रखना, मारपीट व गोली बन्दूक की नौबत ना ही आए,बेटा!

मुझे बहुत डर लगता है”कहकर माया देवी रजनीश को पकड़कर रोने लगी।”अरे अम्मा!तुम बेकार में परेशान होती हों,उनकी औकात ही नहीं है,तेरे बेटे से टकराने की”रजनीश माया देवी को दिलासा देते हुए बोला।”बेटा!अगर तूं अपनी मां को प्यार करता है,

तो कसम खा कि वहां पर ऐसा कुछ नहीं होगा, मैंने तुम लोगों कि सब बातें सुनी है” अरे अम्मा! तूं बेकार में परेशान होती है, कुछ नहीं होगा मुझे”कहते हुए रजनीश चला गया, माया देवी चुपचाप आंसू बहाते हुए उसे जाते हुए देख रही थी।

दूसरे दिन सुबह रजनीश दो गाड़ियों में अपने चाचा रामसिंह और अपने कुछ साथियों के साथ अपनी ससुराल के लिए रवाना हो गया। रात के आठ बज रहे थे,भीम सिंह किसी से फोन पर बात करते हुए परेशान हो रहे थे,

उनके बात करने के हाव-भाव से किसी अनहोनी होने की बात सोचकर माया देवी भयभीत हो रही थी,कुछ देर बाद भीम सिंह चुपचाप कुर्सी में बैठ गए वह किसी गहरी चिंता में डूबे हुए थे।

“क्या हुआ,आप क्यूं परेशान हैं,सब ठीक है न?”माया देवी भीम सिंह के पास आकर बैठते हुए बोली।”कुछ भी ठीक नहीं है माया! बच्चा ने वहां फायरिंग कर दी, दोनों तरफ से गोलियां चली, बच्चा की फायरिंग में दूसरे पक्ष के व्यक्ति की मौत हो गई, रामसिंह,बच्चा!

और उसके तीन साथियों को पुलिस पकड़कर ले गयी है”कहकर भीम सिंह खामोश हो गए।”मैंने तो पहले ही आपको मना किया था,मगर आप लोगों ने मेरी बात को कभी समझा ही नहीं” कहते हुए माया देवी फूट-फूट कर रोने लगी। “अरे तुम चिंता क्यूं कर रही हों मैं उन लोगों को छुड़ा लूंगा?”

भीम सिंह माया देवी को समझाते हुए बोलें। माया देवी चुपचाप अपने कमरे की ओर चली गई,पूरी घटना सुनकर वह समझ चुकी थी कि जिस बात के लिए वह हमेशा डरती रहती थी, आज वह हों चुका था, रजनीश हत्या के जुर्म में अपने साथियों के साथ सलाखों में पहुंच चुका था।

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एक साल बीत चुका था, रजनीश और रामसिंह को छुड़ाने की भीम सिंह की हर कोशिश नाकाम हो चुकी थी। रामसिंह को सात साल और रजनीश को उम्रकैद की सजा मिल चुकी थी।भीम सिंह ऊंची अदालत में रजनीश और रामसिंह को छुड़ाने के लिए चक्कर काट रहे थे। रजनीश के जेल जाने के एक साल बाद रागिनी अपनी ससुराल आई थी।

रागिनी के आने पर पड़ोस की औरतें रजनीश की चाची सभी लोग भीम सिंह के घर एकत्रित हुए थे, रागिनी को देखकर माया देवी के मन में घृणा के भाव उत्पन्न हो रहें थे, क्यों न होते आखिर उसकी वजह से ही उसका बेटा सलाखों के पीछे था, छोटे बेटे प्रदीप को अपवादों से दूर रखने के लिए अपने मन से समझौता किया था,

पल्लवी भी रागिनी से कुछ नहीं बोली वह भी उससे दूर नज़र आ रही थी। इन सब बातों को भांपते हुए रामसिंह की पत्नी रजनीश की चाची गुमसुम रागिनी को यह भरोसा दिला रही थी,कि कुछ ही दिनों में वे लोग रामसिंह व रजनीश छूट जाएंगे।चाची की बात सुनकर रागिनी रोने लगी,”देखो रागिनी बेटी!अब रोने से कुछ नहीं होगा जो होना था हों गया, शायद नियति को यही मंजूर था?”

रजनीश की चाची रागिनी को दिलासा देते हुए बोली।”नहीं यह नियति को मंज़ूर नहीं था,यह सब बुरे कर्मों का फल है,बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है, इसमें नियति का दोष नहीं है,दोष हमारा अपना हैं, जीवन की राहें ही जब पथभ्रष्ट होंगी,तो अंत हमेशा दुखद ही होता है”

माया देवी गुस्से में चीखती हुई बोली। माया देवी का ऐसा क्रोधित रूप देखकर सभी लोग शांत हो गये,बारी-बारी से सभी लोग वहां से खिसकने लगें।”माया! तुमने बिल्कुल ठीक कहा है,शायद मैं भी सच्चाई की राह छोड़कर पथभ्रष्ट हो था,

जिसका परिणाम आज सामने है”कहते हुए भीम सिंह की आंखों में आसूं आ गये, रागिनी का अक्खड़ स्वभाव शांत हो चुका था,सारी शाम शौकत रजनीश के जाने से छू मंतर हो चुकी थी,अगर उसने रजनीश को भड़काया नहीं होता तो शायद आज वह जेल में नहीं होता,वह माया देवी से लिपटकर अपनी गलती के लिए क्षमा मांगना चाहती थी, लेकिन शायद अब बहुत देर हो चुकी थी।

 #नियति

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

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