रोली कॉल बेल बजाते थक गई थी पर दरवाजा नहीं खुला था। थोड़ा रुक कर उसने फिर बेल पर उँगली दबाई और इस बार भड़ाक् से दरवाजा खोल उसका पति दो कदम पीछे हटकर खड़ा हो गया। रोली ने अंदर आकर दरवाजा बंदकर अपने पति राकेश की ओर हैरत से देखकर पूँछा..
“कहाँ थे तुम ? मैं कब से बेल बजा रही थी।” राकेश ने तुरंत आँखें निकालते हुए कहा..
“इतनी देर से कहाँ थीं पहले यह तो बताओ?”
रोली बोली.. ” तुमसे कहकर ही तो गयी थी कि अपनी सहेली निशा के घर पर जा रही हूँ, आज उसने कुछ पुरानी सहेलियों को भी अपने घर बुलाया था और इसीलिये बातों में टाइम का पता नहीं चला और देर हो गई। “
राकेश चिल्लाया…
“झूठ बोल रही हो मैं सब जानता हूँ तुम्हारे बहाने। तुम ज़रूर ही अपने किसी यार से मिलने गई थीं तभी तो इतनी खुश नज़र आ रही हो।”
रोली अवाक् खड़ी ही रह गई। एकदम से उसे कुछ समझ ही नहीं आया वह इस ऊलजुलूल तोहमत का क्या जबाब दे। तभी राकेश फिर चिल्लाया..
” है !कोई जबाब तुम्हारे पास ? आज पकड़ी
गईं तो चुप हो गईं… “
रोली अब जैसे नींद से जागी और राकेश के सामने तनकर खड़ी हो गई और चिल्लाकर बोली …
” हाँ गई थी ..और जब मन होगा जाउँगी तुम से जो बने कर लो। मैंने जिन्दगी के दस साल इस घर को और तुम्हें दिये मुझे बदले में क्या मिला ? आज यह बेबफाई और बदनामी का मेडल ! मैंने कभी तुमसे पूँछा कि इतना लेट आफिस से या अपने दोस्तों के घर से क्यों लौटे ?
पर तुमने तो हमेशा मुझसे ही सवाल किये। क्या मुझे कोई अधिकार नहीं है अपने मन से कहीं आने जाने का ? अब तक मैं चुप रही.. पर आज तो हद ही हो गई.. तुमने.. मेरे चरित्र पर कीचड़ उछाला है। आज तुमने तो मेरा दिल छलनी कर दिया है। मैं तुम्हारे साथ अब तो बिल्कुल नहीं रह सकती..
मैं जा रही हूँ…और हाँ…अब मेरा वकील ही आयेगा तलाक के पेपर लेकर तुम्हारे पास…” यह कहकर …….
….रोली घर से बाहर निकल गई।
कुमुद चतुर्वेदी