पश्चाताप के आशु – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

“एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रामबाबू”” लाखों में कोई एक सुहागन सदा सुहागन रहता है” “चांद सितारों से मांग सदा भरी रहे” जाने और भी कई डायलॉग थे— जो आज मुझे याद आ रहे थे — ।

“मेरी आंखों से लगातार “आशु ” निकलते जा रहे थे और  मैं चाह कर भी उसे रोकने में असमर्थ थी—।

 बेटा तीन दिन हो गए तूने अन्न का एक दाना भी मुंह में नहीं डाला—- कल करवा चौथ भी है और तू— सारा दिन निर्जला व्रत रखती है तो कब तक भूखी रहेगी—? “चल– एक रोटी खा ले “!वसुंधरा जी बहू को समझाते हुए बोलीं।  

नहीं मां—! “जब तक संजू नहीं आ जाते मैं कोई अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगी– ।

 गौरी अपनी आंखें पोछते हुए बोली ।

‘ तीन दिन हो गए परंतु संजू की कोई खबर अब तक  हमें नहीं मिली– । मां–!”मैने थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी है 

पुलिस कहती है कि कोई भी जानकारी मिलेगी हम आपको तुरंत खबर कर देंगे– कहते हुए गौरी पुनः रोने लगी ।

अरे पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की क्या जरूरत थी वह लौट आएगा मुझे पक्का विश्वास है—- तू अगर हिम्मत नहीं रखेगी तो सिया को कौन संभालेगा चल हाथ मुंह धो ले मैं खाना लगती हूं— ।

” मां आप खा लो– मैं एक बारी  थाने से होकर आती हूं– ! 

 थाने से लौटते ही गौरी कमरे में सुबक-सुबक के रोने लगी थी कि तभी— “मम्मा आप रो क्यों  रही हो—-‘पापा कल तक जरूर लौट आएंगे ‘उन्होंने मुझसे–

इस कहानी को भी पढ़ें: 

पत्नी का हक – अमृत : Moral Stories in Hindi

 मुझसे क्या—?

 कुछ नहीं मम्मा मैं आपके लिए चाय बना के लाती हूं—!

 तेरह साल की सिया कुछ बोलते बोलते रुक गई और बात बदलते हुए वहां से चली गई ।

 इतनी तनाव की वजह से गौरी सिया की बातों पर ध्यान नहीं दिया और अतीत में खो गई ।

” लड़का काफी होनहार और पढ़ा लिखा है हमारी गोरी के लिए एकदम “परफेक्ट”! वासुदेव जी पत्नी रमा को फोटो दिखाते हुए बोले ।

” लड़का तो बहुत सुंदर और स्मार्ट है लेकिन— नौकरी नहीं करता हमें हमारी गोरी के लिए रूप नहीं गुण वाला लड़का चाहिए । रमा जी फोटो एक तरफ रखते हुए बोली ।

 अरे सब कर लेगा—“मैथ से एम ए कर रखा है । और मान लो की  सरकारी नौकरी नहीं भी किया तो  ट्यूशन तो पढ़ा ही सकता है आजकल ट्यूशन पढ़ाने वाले ही ज्यादा कमा रहे हैं परिवार भी एकदम छोटा–!

 मां और  बेटा—!

उसके पिताजी की मृत्यु एक रोड दुर्घटना में हो गई थी ।

वह भी  शिक्षक थे– । खाता-पीता घराना है गौरी को किसी चीज की कमी नहीं रहेगी–!

 ‘ एक दिन वासुदेव जी गौरी का रिश्ता पक्का कर आए ‘ और जल्द ही दोनों की शादी हो गई– ।

 सुहागरात के दिन:-

 “मैं इधर-उधर बड़े-बड़े कदमों से कमरे में टहल रही थी । बहुत तरह की बातें थी जो मेरे मन में उथल-पुथल मचा रही थी ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

छोटी बहन – भगवती सक्सेना गौड़

” पापा ने मुझसे एक बार भी नहीं पूछा की शादी के बारे में तुम्हारी क्या राय है— और सौंप दिया इस बेरोजगार के हाथ में— ।

” हाय-हाय” मेरी पढ़ाई का क्या होगा—?मुझे तो आगे पढ़ना था और मेरे सपनों का क्या– जो मैंने बचपन से देखा– अपने पैरों पर खड़ा होने का, एक ऊंची उड़ान भरने का—! क्या मेरे सपने अब  पूरे हो पाएंगे—?  पता नहीं इनकी क्या मानसिकता  होगी–??

 ‘संजू को आता देख मैं घबरा गई ।

 अरे क्या हुआ—-?” मैं कोई शेर थोड़े ना हूं कि मुझे देखते ही डर गई—!

 देखो मैं कोई डरी-बरी नहीं हूं–वह तो तुम अचानक से आ गए–!

 मैंने तपाक से जवाब दिया ।

अच्छा—!

संजू हंसते हुए बोला।

” क्या हम बात कर सकते हैं—?

 हां जरूर–!

लेकिन खड़े-खड़े नहीं बैठ के– हंसते हुए संजू कुर्सी की तरफ इशारा किया।

 मैं बैठते हुए बोली वैसे आदमी तुम बुरे नहीं हो– फिर हम दोनों एक साथ हंस पड़े । 

मुझे आगे भी  पढ़ना है और अपने पैरों पर खड़ा होना है ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सफ़र पीहर का  – पूनम वर्मा

 हां तो तुम करो ना—

 जो तुम्हारी मर्जी है–! 

धन्यवाद—!

 वैसे तुम्हें क्या करना है–? मैं खुश होते हुए संजू से पूछी ।

” मैं अभी तो फिलहाल सामान्य प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा हूं और इधर मैंने रेलवे का फॉर्म भरा है देखते हैं आगे क्या कर सकता हूं—!

 चलो अब तुम काफी थक गई होगी  जाकर सो जाओ—!

 उस रात संजू से बात करने के बाद मुझे लगा कि यह बंदा तो मेरे लिए “परफेक्ट” हैं अभी-अभी मैं पापा को भला बुरा कह रही थी अब दूसरे ही छन मैं उन्हें धन्यवाद देने लगी— ।

 समय के साथ मैंने एक बच्ची को जन्म दिया । बच्ची के आ जाने से सभी घर में बहुत खुश थे–  लेकिन मेरा लक्ष्य और मेरी खुशी कहीं और थी ।

संजू शायद मेरी इच्छा को समझ गये–। 

 तुम अपनी पढ़ाई जारी रखो मैं हूं ना–! सिया का ख्याल रखने के लिए—!  तुम्हें घर परिवार की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं—!

  संजू का इतना सहयोग मेरे लिए काफी था ।इसी समय मैंने सारे प्रतियोगिता का फॉर्म भर दिया संजू के सपोर्ट से मुझे मेरी पढ़ाई के लिए समय मिलता रहा— और मैं एक दिन बैंक पीओ की परीक्षा को निकालने में सफल हो गई  ।

समय के साथ-साथ मेरी पोस्ट भी बढ़ने लगी । सफलता की वजह से  मुझमें कहीं ना कहीं घमंड कि बू आने लगी। फलस्वरुप जब-तब मेरी संजू से लड़ाई होने लगी । अक्सर बहस में “मैं सारी सफलता का श्रेय अपने आप को दे देती और कहती कि तुमने आखिर मेरे लिए किया ही किया है “संजू भी मुझसे अब उखड़े उखड़े से रहने लगे क्योंकि संघर्ष के दौरान तो मैं उनकी तारीफ करती—- और अब उनसे— लड़ाई ।  बेटी सिया भी अब नाइंथ में जा चुकी थी। पोस्ट बढ़ने के कारण मेरी व्यस्तता बढ़ गई थी— ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

दुल्हा बिकता है -मीनू जायसवाल

 फिर भी संजू इस दौरान घर को अच्छे से मैनेज करके चल रहे थे।  ‘एक बार मेरी मीटिंग की वजह से मैं देर रात घर लौटी तो देखा कि— सारा घर बिखरा पड़ा है ।  मुझे गुस्सा आ गया ।

‘शायद आज संजू सिया के साथ सारा दिन मूवी देखने में व्यस्त होंगें इसलिए घर यूं ही बिखरा छोड़ दिया होगा– । सोचते-सोचते कमरे में घुसी आव देखा ना ताव सोते हुए संजू को झकझोरते हुए उन्हें भला- बुरा कहने लगी  ।

वह चुपचाप सुनते रहे फिर बिना कुछ बोले चादर ओढ़ कर  सो गए मैं बोलते बोलते किचन में गई और सारी चीज  व्यवस्थित करते हुए सोचने लगी  “एक तो निकम्मे को काम करके खिलाओ और दूसरा घर की जिम्मेदारी भी निभाओ– ।

 सुबह जब मैं मां को चाय देने गई तब उन्होंने बताया कि संजू को कल दोपहर से ही बुखार आया हुआ था सिया और मैंने जैसे- तैसे कर  के खाना बनाया ।

 मुझे अब भी अफसोस नहीं हुआ कि मैं बिना कुछ जाने उन्हें भला- बुरा कह दिया क्योंकि मेरी सोच को घमंड रूपी कीड़े ने जकर रखा था  ।

“आज  संजू की गैर-हाजिरी ने मुझे ये एहसास दिलाया की मैं उनके बिना कुछ नहीं हूं  ।”

“मम्मा मुझे आपको कुछ दिखाना है—–  सिया ने गौरी का ध्यान तोड़ते हुए एक लेटर और डायरी थमाते हुए बोली ।

 गौरी ने जब लेटर पढ़ा तो वह दंग रह गई ये संजू की “स्टेशन मास्टर” की जॉइनिंग लेटर थी जो 10 साल पहले आई थी । ये तो जॉइनिंग लेटर है–पर—।

 हां मम्मा—यह पापा की जॉइनिंग लेटर है–आज से 10 साल पहले की !

 आपकी आगे बढ़ने की इच्छा इतनी तीव्र थी जिसकी वजह से उन्होंने अपने कैरियर का बलिदान दिया । यह लेटर पापा के डायरी में मुझे मिली  ।

 “मम्मा— पापा सिर्फ और सिर्फ आपके लिए अपनी सारी इच्छाओं को मारते गए और आप हर दिन पापा से लड़ा करती– । गौरी  फूट-फूट के रोने लगी ।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

कोहिनूर – सुनीता मिश्रा

‘प्लीज संजू वापस आ जाओ’ मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है अब मुझे कितना दंड दोगे— । तुम तो हीरा हो  मैं तुम्हें समझ ना सकी ।

 “आज करवा चौथ का दिन था परंतु घर में उदासी सी थी ।

 बेटा नहा कर कथा सुन ले—! वसुंधरा जी ने गौरी से कहा।

 पर मां मुझे आज कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा  ।

हां बेटा– ” मैं तुम्हारी तकलीफ समझ सकती हूं पर अपना कर्म करती जा–!

 भगवान चाहेंगे तो संजू जल्दी ही लौट आएगा उसका गुस्सा ज्यादा दिन नहीं टिकता । वसुंधरा जी गौरी को दिलासा देते हुए बोली ।

” आज शाम सभी छत पर चांद का इंतजार कर रहे थे परंतु गौरी अपने पति के इंतजार में दरवाजे पर टकटकी लगाई बैठी थी की तभी उसे एक आकृति पास आते दिखाई  दी– चुकी अंधेरा था इसलिए  साफ नजर नहीं आ रहा था परंतु जैसे-जैसे वह आकृति पास आती गई सब कुछ साफ होता गया और अब उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि वह कोई और नहीं  संजू था—। गौरी दौड़ के संजू से लिपट गई “मुझे माफ कर दो संजू तुम्हारे जाने के बाद पता चला कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूं मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती”

 मेरा “सिंदूर “ही मेरे लिए सब कुछ है !  आई लव यू—–! संजू भी खुश था क्योंकि कुछ दिन की दूरी से उसने अपनी पुरानी गौरी को फिर से पा लिया था ।

दोस्तों अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक शेयर एंड कमेंट्स जरूर कीजिएगा ।

धन्यवाद।

मनीषा सिंह

#सिंदूर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!