Moral Stories in Hindi : ” अहा कितना सुंदर कंगन है! बाबा आप मेरे ब्याह में यही कंगन देना मुझे… दोगे न? ” मेले में कंगन को देख सोना का दिल मचल उठा।
” हाँ बेटी, जरूर दूँगा।”
बेटी की सूरत देखकर ही तो हरिया जीता रहा अब तक। बहुत प्यार करता था सोना की माँ को। सोना उसकी आखिरी निशानी थी। हरिया अब और जी तोड़ मेहनत करने लगा।
बिन माँ की बच्ची को बड़े नाजो से पाला था उसने। आखिरी साँस लेते हुए सोना की माँ उससे बोल जो गयी थी… ‘ मेरी सोना का ख़याल रखना सोना के बापू।’
दिन में हरिया जमींदार के घर चाकरी करता था और रात में लकड़ी के खिलौने बनाता। फिर उसे मेले में ले जाकर बेच देता। दिन कब ढलकर शाम में और शाम रात में बदल जाती, उसे होश नहीं रहता। बस अपने आपको काम में पूरी तरह से डुबा डाला था। इससे दो फायदे थे – व्यस्तता की वजह से उसके पास दुःखी होने का समय नहीं रहता था तो दूसरी तरफ कुछ अतिरिक्त पैसे आते जिसे वह बेटी की शादी के लिए जमा करता रहता।
धीरे-धीरे सोना बड़ी होती गयी। उम्र के साथ उसके सुनहरे सौंदर्य ने उसके नाम को सार्थक कर दिया था। दप-दप करता उसका रंग उस सुंदरता में चार चाँद लगाने लगा था। उसके सौंदर्य की चर्चा आसपास के गाँवों में भी पहुंचने लगी।
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” इसके पहले कि जमींदार कुछ उल्टा-सीधा करे… हरिया, तुम जल्द से जल्द सोना का ब्याह कर दो ” हरिया का साथी ललन अक्सर उससे कहा करता।
गाँव वालों के मन में जमींदार की छवि अच्छी नहीं थी। जवानी के दिनों में इस दिलफेंक जमींदार की बुरी नजरों से गाँव की शायद ही कोई लड़की बच पायी थी। उसका आतंक इतना बढ़ गया था कि गाँव की लड़कियाँ घरों से बाहर निकलना ही भूल गयी थीं। फूली की फूफेरी बहन पिंकी एक बार उस गाँव में आयी थी जो उसका ननिहाल ही था।
उसने देखा कि गाँव की सभी लड़कियाँ हमेशा डरी-सहमी रहती थीं। वह शहर में पली-बढ़ी आत्मविश्वास से लबरेज आधुनिक सोच की लड़की थी। उसने एक दोपहर अन्य लड़कियों के साथ अमराई में झूला झूलने का प्रोग्राम बनाया। पहले तो सबने मना कर दिया, किंतु उसके द्वारा आश्वस्त करने पर वे स्वयं को नहीं रोक पायीं।
अभी वे सभी झूले पर बैठने ही जा रही थीं कि जमींदार वहाँ आ गया और अपनी गंदी नजरों से उन लड़कियों खासकर पिंकी के शरीर पर अपनी एक्सरे करती नजरें गड़ा दी। अन्य लड़कियाँ तो सूखे पत्ते की भाँति काँपने लगीं, पर पिंकी ने झूले के पास
रखे एक मोटे डंडे को उठाया और पूरी ताकत से जमींदार के गुप्तांग पर प्रहार कर दिया। जमींदार बिलबिला उठा। सारी लड़कियों के साथ पिंकी भी घर को भाग चली। डर के मारे किसी ने किसी को कुछ भी नहीं बताया।
जमींदार किसी तरह गिरता-पड़ता घर पहुँचा। भेद खुल जाने के डर से डाॅ के पास न जाकर घर में ही मरहम पट्टी कर ली। प्रहार जबर्दस्त था और समय पर डाॅक्टरी इलाज नहीं मिल पाने से मर्ज इतना बढ़ गया कि उसने अपना पौरुष भी खो दिया। शादी और बच्चों के सुख से वंचित बुढ़ापे की अवस्था में पहुँच गया। अपनी ग्लानि में डूबा वह अब पूरी तरह सुधर चुका था, पर एक बार जब किसी की साख टूट जाती है तो फिर उसका बनना अत्यंत ही मुश्किल होता है।
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बहुत प्रयास के बाद सोना के बापू को सोना के लिए एक रिश्ता जँच गया। कोई दहेज की बात नहीं, पर बारातियों का अच्छा स्वागत और बेटी को अच्छे संस्कार के साथ विदाई… बस यही मांग थी उनकी।
हरिया अपनी बेटी की शादी में उसके सारे अरमान पूरे करना चाहता था। उसे जमींदार की आँखों में पछतावे का भाव स्पष्ट दिखाई देता था। वह जमींदार के पास गया मदद मांगने।
“मालिक कुछ पैसों का बन्दोबस्त हो जाता तो बिटिया की शादी में मदद मिल जाती।”
” हाँ हाँ, क्यों नहीं… मैं जरूर मदद करूँगा। ”
जमींदार की मदद से शादी का बहुत अच्छा इंतजाम हो गया। कन्यादान के समय जमींदार ने हरिया से कहा, ” अगर तुम्हें आपत्ति न हो तो सोना बिटिया का कन्यादान मैं करना चाहता हूँ। ”
हरिया के साथ साथ पूरे गाँव वाले भी हैरान रह गए। जमींदार की शादी ही नहीं हो पायी थी जिस कारण उसे कोई संतान भी नहीं थी जिससे वह बहुत दुःखी रहता था। अतीत में की गई उस गलती के कारण वह इन सुखों से वंचित था जिसका वह प्रायश्चित कर अपना परलोक सुधारना चाहता था।
एक बहुत ही खूबसूरत सोने का कंगन देकर जमींदार ने सोना का कन्यादान किया और रोते हुए हरिया को गले से लगा लिया।
मौलिक तथा अप्रकाशित
गीता चौबे गूँज
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