पूर्णिमा और उसकी पड़ोसन शीला दोनों अपनी मृत्यु के बाद यमराज के सामने पहुंच गई। यमराज ने अपना वही खाता खोला। कुछ पढ़ा और सेवकों को कहा, “इसे 36 नंबर कमरे में ले जाओ।” पूर्णिमा खुश थी कि उसने तो बहुत दान पुण्य किया है इसलिए अच्छी जगह ही यमराज ने उसे भेजा होगा। फिर यमराज ने शीला की तरफ देखते हुए कहा ,”इसे मंदिर के पास वाली कुटिया में छोड़ आओ।” सुनकर शीला खुश हुई कि भगवान का मंदिर पास में मिल गया।
पूर्णिमा 36 नंबर कमरे में पहुंची तो दूतों ने कहा,” यह तेरा बिस्तर है, इधर तेरे खाने-पीने का सामान और उन ट्रंको में पहनने के कपड़े हैं।” पूर्णिमा को भूख लगी थी। फल उठाकर खाने लगी तो थोड़े गले और खराब थे। उसने सोचा ड्राई फ्रूट्स खाती हूं तो वह थोड़े कीड़े लगे हुए , पुराने थे। सब्जी बासी, चाय नाम मात्र दूध की, फिर ट्रंक खोले तो ढेरों चमकीली साड़ियां , सस्ती शॉल जिस तरह के कपड़े उसने जिंदगी में कभी नहीं पहने थे। फिर बिस्तर की तरफ देखा, बिल्कुल सस्ता , मोटे खुर्दरे से कपड़े का। वह परेशान हो गई। फिर उसे लगा भगवान से गलती हो गई । शीला की जगह मुझे और मेरी जगह शीला को भेज दिया। फिर वह भागती हुई सी शीला की कुटिया में गई। साफ-सुथरी , साफ सुथरा एक तरफ खाने का सामान और कपड़े। शांत वातावरण, मधुर संगीत। पूर्णिमा, शीला से बोली, “लगता है हमारे कमरे बदल गए हैं। चल मेरे साथ, यमराज से बात करते हैं ।”पूर्णिमा , शीला को लगभग खींचती हुई सी यमराज के पास ले गई। फिर बोली ,” भगवान गलती से आपने मुझे 36 नंबर में और इसे कुटिया में भेज दिया। मैं तो सारी उम्र इतना दान पुण्य किया कि पूछो मत और शीला तो कभी-कभी ही कुछ करती थी।”
यमराज बोले,” कोई गलती नहीं हुई। जो तूने दान किया । वह तेरे कमरे में है ।जो शीला ने किया वह उसकी कुटिया में है।”
“क्या मतलब भगवान?” पूर्णिमा ने पूछा।
“तू यह सोच कर कि मंदिर में चढ़ाना है। सस्ते फल खरीदती, सस्ती साड़ी और शॉल यहां तक कि बिस्तर भी दान किया तो मोटे सोटे कपड़े का। नौकर बाई को बासी सब्जियां , कम दूध की चाय , कीड़ों वाला ड्राई फ्रूट्स दिया। वह भी एहसान करके और सब को दिखा कर। दूसरी तरफ शीला मंदिर के लिए कोई एक आध फल लेती, पर सबसे अच्छा। कपड़ा देती तो यह सोच कर कि मेरे भगवान को चुभे ना। चलती फिरती, काम करते प्रभु के भजन ही गुनगुनाती रहती। किसी जरूरतमंद की मदद करती तो कानो कान किसी को पता नहीं चलने देती। अब तुम ही बताओ कि कहां गलती हुई है?”
पूर्णिमा की आंखों से पश्चाताप के आंसू झर रहे थे पर अब समय हाथ से निकल चुका था।
डॉ अंजना गर्ग