परवरिश – निशा जैन :Moral stories in hindi

बधाई हो भाभी , आखिर आप भी दादी बनने वाली हैं। सुना है सुधा बहु पेट से है। किस्मत का खेल देखिए ….छः साल हो गए शादी के पर दादी बनने का सुख आपको अब मिल रहा है। मुझे देखो तो आपकी देवरानी होते हुए भी कब की दादी बन गई मैं , सुमित्रा की देवरानी सुमन ने बधाई तो दी पर बधाई कम और कटाक्ष ज्यादा लग रहा था।

सुमित्रा जवाब में मुस्कुराकर रह गई बस ….पर ये बात सुधा के कानों में भी पहुंच गई जब वो चाय लेकर रसोई से बाहर आ रही थी और उसको मन ही मन बहुत दुख हुआ जब उसकी चाची सास, उसकी सास से इस तरह बात कर रही थी पर छोटी होने के नाते उसने कुछ नहीं कहा।

बाद में वो अपनी सास से बोली मम्मी जी आपको चाचीजी इतना सुना रही थी और आपने जवाब भी नही दिया। मेरी वजह से आपको कितना सुनना पड़ता है ना, काश मैं भी आपको एक पोते का सुख दे पाती तो आप भी सबसे शान से कह पाती और कहते कहते भावुक हो गई सुधा

अरे पगली …. सुमन की तो आदत है ऐसे बोलने की और मैं तो कब से जानती हूं उसे। उससे दूसरो की खुशी देखी नही जाती इसलिए ईर्ष्या के भाव से वो बोलती है। तेरे ससुर जी थे तब भी ये उनके व्यवहार को देखकर हमेशा उखड़ी हुई रहती थी क्योंकि उनका सबसे मेलजोल था और उनके सारे काम अच्छे से हो जाते थे वहीं देवर जी का स्वभाव भी सुमन की तरह ईर्ष्यालु है तो कम ही लोगों से आना जाना है उनका। और उनके पोता हो गया तो और घमंड हो गया पर तू चिंता मत कर मुझे पोते की कोई चाह नही है। मुझे बस इसी बात की खुशी है कि तू मां बनने वाली है और मां बनना एक औरत के लिए सबसे बड़ी बधाई की बात होती है और दादी बनना उससे भी बड़ी बधाई चाहे फिर पोता हो या पोती ….

ये सुनकर सुधा अपनी सास सुमित्रा के गले लग गई और बोली आप जैसी सास मिली जरूर मैने पिछले जन्म में पुण्य किए होंगे

हां वो तो है …. सुमित्रा हंसते हुए बोली

समय अपनी गति से चलता रहा और सुधा एक प्यारी सी बेटी की मां बन गई। लेकिन डॉक्टर ने दूसरे बच्चे के लिए साफ मना कर दिया ये कहकर कि सुधा की प्रेग्नेंसी में बहुत कॉम्प्लिकेशंस है इसलिए दूसरा बच्चा किया तो या तो बच्चा बचेगा या सुधा

सुमित्रा ने डॉक्टर को साफ मना कर दिया कि हम कोई चांस नहीं लेना चाहते बस हमारी बहु हमे सही सलामत चाहिए।

सबने मिलकर अपनी बेटी का नाम खुशी रखा क्योंकि उसके आने से सबका जीवन खुशियों से जो भर गया था

सुमित्रा ने पूरे मोहल्ले में” खुशी ” के होने की खुशी में बेसन के लड्डू बंटवाए क्युकी सुधा को बेसन के लड्डू बहुत पसंद थे। किसी ने खुश होकर बधाई दी तो किसी ने कहा … किस्मत का खेल देखिए इतने सालों बाद बच्चा हुआ वो भी लड़की…अरे भाभी लड़की की बधाई में कौन लड्डू बांटता है , लड़का होता तो फिर भी समझ में आता । तभी सुमन बोली और क्या भाभी लड़का ही तो बुढ़ापे का सहारा बनेगा और वंश को आगे बढ़ाएगा। लगता है अजीत ( सुधा का पति) का वंश तो अब आगे बढ़ेगा ही नही… और कहकर हंस दी।

ऐसा मत बोलो सुमन … आजकल लड़की ,लड़का सब बराबर हैं । जब वंश लड़के के नाम से चल सकता है तो लड़की के नाम से क्यों नही ? और क्या शादी होने के बाद लड़की के माता पिता बदल जाते हैं या फिर अपने माता पिता पर लड़की का कोई अधिकार नहीं होता। एक लड़के की तरह एक लड़की भी बुढ़ापे का सहारा बनती है और मेरी मानो तो बेटे से ज्यादा अच्छी सेवा एक बेटी करती है अपने माता पिता की। रही वंश चलाने की बात …. उसमे अभी बहुत दिन हैं…. वंश कौन चलाएगा , कौन नही ये बाद की बात है । अभी तो संतान को अच्छे संस्कार देकर पाल पोस कर बड़ा करना जरूरी काम है।

ठीक है मैं चलती हूं मेरे पास बहुत काम है … कहकर सुमित्रा चली गई

पीछे से सुमन अपनी पड़ोसन से बोली… कभी लड़की को वंश चलाते या माता पिता की सेवा करते देखा है जो अब भाभी जी नई रीत चलाएंगी। अरे अब पोता नही हुआ तो कुछ तो बाते बनाएंगी न…. पडौसन ने भी सुमन की तरफदारी कर दी(आखिर अमूमन पड़ोसी तमाशा देखने के लिए ही तो होते हैं जो अच्छी सलाह तो कम देते हैं पर घी में आग डालने का काम तो जरूर कर ही देते हैं)

सुमित्रा ने जहां अपनी पोती की परवरिश संस्कार और अच्छी शिक्षाएं देकर की थी वहीं सुमन ने अपने पोते को लाड़ प्यार में जिद्दी और संस्कारहीन बना दिया था।

समय अपनी गति से चलता रहा और सुमित्रा और सुमन के पोते पोती भी बच्चे से जवान हो चुके थे।

कुछ सालों बाद….

सुमित्रा जी आज फिर से लड्डू क्या बात है? किस खुशी में लड्डू बांटे जा रहे हैं … मिसेज शर्मा ने पूछा

आज खुशी ने यू पी एस सी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। वो अब कलेक्टर बनने वाली है।उसकी तीन सालों की मेहनत रंग ले आई और उन लोगों के मुंह हमेशा के लिए बंद हो गए जो मेरी पोती के चरित्र पर उंगली उठाते थे कहते कहते गला रूंध गया सुमित्रा जी का

अरे बधाई हो आपको बहुत बहुत ….मिसेज शर्मा ने लड्डू मुंह में रखते हुए बोला

और सुमित्रा जी आप भी खुशी के मौके पर ऐसी फालतू बातों को लेकर बैठ गई।

नही मिसेज शर्मा मुझे आज भी याद है जब खुशी चौबीस साल की उम्र में पढ़ाई पूरी करने के बाद भी , अच्छे रिश्ते आने के बावजूद शादी नही करना चाहती थी और आगे अपनी सिविल सर्विस की तैयारी की पढ़ाई करना चाहती थी लोग कह रहे थे…जरूर लड़की का कहीं चक्कर चल रहा होगा तभी तो इतने अच्छे रिश्ते ठुकरा रही है और पढ़ाई तो बस बहाना है। और उन सब लोगों में कुछ हमारे अपने भी थे( सुमित्रा जी सुमन के बारे में बात कर रही थी) जो हमारी खुशी देखकर जलते थे।पर मेरी खुशी ने आज कामयाबी हासिल कर, मेरे बेटे , बहु और मेरे पूरे परिवार का नाम रोशन कर सबकी बोलती बंद कर दी है।

अरे हां सुमन जी के पोते आकाश का क्या हुआ ? वो क्या कर रहा है आजकल? बहुत दिनो से सुमन जी को देखा नही … मिसेज शर्मा ने पूछा

किस्मत का खेल देखिए मिसेज शर्मा जिस पोते पर सुमन घमंड करते नही थकती थी वो ही उसकी नाक कटा कर चला गया और एक मेरी पोती है जो अपनी उपलब्धियों से मेरे खानदान का नाम रोशन कर रही है

कहां चला गया आकाश? मिसेज शर्मा आश्चर्य से बोली

आकाश तो पिछले महीने विदेश चला गया और वहां ही रहेगा अब क्योंकि उसके ऑफिस की लड़की जिससे वो शादी करना चाहता था , विदेश में सेटल हो गई है। उसके साथ आकाश भी वहीं रहेगा अब। आकाश ने घरवालों के खिलाफ जाकर शादी कर ली है उससे। और लड़का अच्छा कमाता खाता है तो चला गया अपने मन मुताबिक।

पर यही काम कोई लड़की कर लेती ना तो सुमन पूरे मोहल्ले में ढोल पीट देती पर अब जब यही काम उसके पोते ने किया है तो कह रही है , कौनसा गलत काम किया है , सब बच्चे अपनी मर्जी से शादी करना चाहते हैं

चलिए छोड़िए उनको आप तो ये बताइए अब खुशी की शादी की बधाई के लड्डू कब बांट रही हैं? अब तो उसकी नौकरी भी लग गई है मिसेज शर्मा बोली

बस अब उसकी हां का इंतजार है , लड़के तो बहुत नजर में रख रखे हैं….. चलिए मैं चलती हूं, और लोगों को भी लड्डू खिलाने हैं………

खुशी अब तो शादी के लिए हां कह दो बेटी, तेरी बूढ़ी दादी की आंखे तरस गई तुझे शादी के जोड़े में देखने के लिए। और पता नही कब भगवान के घर से बुलावा आ जाए ….

अभी बात पूरी भी नही कर पाई सुमित्रा जी कि खुशी बोल पड़ी … खबरदार दादी जो मुझसे दूर जाने की बार कही। और आपको कितनी बार बोल दिया मुझे आप लोगों को छोड़ कर नही जाना। कोई लड़का मेरे साथ शादी करके यहां रहने के लिए , तैयार है तो बताओ।

मुझे अपने लिए पति नही मां पापा के लिए बेटा चाहिए जो यहां मेरे साथ रहकर मेरे मां पापा को अपने माता पिता मानकर सेवा करे।

तो तुझे घर जवाई चाहिए ? अजीत और सुधा साथ बोले

हां तो इसमें हर्ज क्या है? जब मैं किसी के घर की बहु बन सकती हूं , वहां रह सकती हूं तो कोई मेरे घर का जवाई बन यहां नही रह सकता क्या?

जमाना बदल गया अब। एक लड़की कलेक्टर बन सकती है तो सब कुछ कर सकती है।

और मैं शादी कर भी लूं तो क्या गारंटी है कि वो मां पापा को अपना मानेगा ही।

कम से कम यहां रहकर मैं मां पापा के बुढ़ापे का सहारा तो बनूंगी ही , साथ में मुझे तसल्ली भी रहेगी कि उनको बेटे नही होने का कोई गम नही है। क्योंकि उनकी बेटी उनके पास मरते दम तक है।

और फिर चाची अम्मा( सुमन) को भी तो दिखाना है कि बेटियां नाम रोशन भी करती है और वंश भी चलाती है । और बुढ़ापे का सहारा भी बनती हैं। उनके बेटे ( आकाश) की तरह नही …..

खुशी की बात बीच में काटते हुए सुधा ने उसको चुप रहने का इशारा किया।

थोड़ी खोजबीन करने के बाद आखिर खुशी और उनके घरवालों की तलाश शादी डॉट कॉम के जरिए विवेक पर आकर पूरी हुई जो खुशी के साथ रहने के लिए तैयार था । वो मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता था और अपनी मां के साथ रहता था।

पर उसकी भी शर्त थी….

खुशी जैसे तुम अपने मां पापा की चिंता करती हो, वैसे मेरी मां को भी मैं अकेला नही छोड़ सकता इसलिए मेरी मां भी हमारे साथ रहेगी।

विवेक ये बोलने की बात नही ……

मां अपने बेटे के साथ नही रहेगी तो और कहां रहेगी?

और हां घर बेशक तुम्हारा होगा पर घर का खर्च मैं उठाऊंगा ताकि मैं भी अपने स्वाभिमान से जी सकूं

विवेक की ये बात ही काफी थी उसका व्यक्तित्व बताने के लिए ।

इससे ज्यादा किसी ने कुछ नही पूछा

धूमधाम से खुशी और विवेक की शादी हो गई और जहां खुशी के पति के रूप में सुधा और अजीत को दामाद के रूप में बेटा मिला तो विवेक की मां को भी बहु के रूप में खुशी मिल गई और सुमित्रा जी आज बधाइयां लेती हुई थक नही रही थी। आज अपनी किस्मत के इस खेल पर वो मन ही मन इतरा रही थी और अपने परिवार की खुशियों को किसी की नजर न लगे बस ये ही दुआएं भगवान से कर रही थी।

 

 

दोस्तों आपको क्या लगता है …. बेटी माता पिता के बुढ़ापे का सहारा नही बन सकती?

क्या बेटी माता पिता का नाम रोशन नही कर सकती?

बेटी के नाम से माता पिता का नाम या वंश नही चल सकता ?या बेटा ही ये काम कर सकता है ।

मुझे लगता है बेटी और बेटे में भेद करना छोड़कर अपनी संतान को अच्छे संस्कार और परवरिश देना ज्यादा मायने रखता है। आप मेरे विचार से सहमत है तो कमेंट करके जरूर बताएं और मेरी रचनाओं को अपना समय देकर मेरा उत्साहवर्धन करना ना भूलें

धन्यवाद

निशा जैन

 

2 thoughts on “परवरिश – निशा जैन :Moral stories in hindi”

  1. कहानी द्वारा विवाह द्वारा उत्पन्न समस्या का अच्छे से समाधान किया गया है।
    लेखक को धन्यवाद !

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  2. बहुत खूब,
    जब लड़कियों ने लड़कों की तरह जॉब करनी है तो वे लड़कों की तरह घर अपने अनुसार क्यों नहीं चला सकती ?हमारे समाज को अब बदलना होगा, अगर जॉब वाली बहु चाहिए तो अपने बेटे को भी बचपन से घर के काम सीखने दे, ताकि लड़के और लड़की मे कोई भेद न हो दोनों मिल कर काम करे और एक दूसरे के माता पिता जी का सम्मान करे

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